प्रश्न; छायावाद से आप क्या समझते हैं? छायावाद की परिभाषा दिजिए।
अथवा”, छायावादी काव्य की विशेषताएं बताइए।
अथवा”, छायावाद कविता की विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर–
छायावाद
हिन्दी
साहित्य के आधुनिक चरण मे द्विवेदी युग के पश्चात हिन्दी काव्य की जो धारा
विषय वस्तु की दृष्टि से स्वच्छंद प्रेमभावना, पकृति मे मानवीय क्रिया
कलापों तथा भाव-व्यापारों के आरोपण और कला की दृष्टि से लाक्षणिकता प्रधान
नवीन अभिव्यंजना-पद्धति को लेकर चली, उसे छायावाद कहा गया। आज हम छायावाद
की विशेषताएं जानेगें।
प्रकृति पर चेतना के आरोप को भी छायावाद कहा गया है। छायावाद के प्रमुख कवि
जयशंकर प्रसाद ने छायावाद की व्याख्या इस प्रकार की हैं ” छायावाद कविता
वाणी का वह लावण्य है जो स्वयं मे मोती के पानी जैसी छाया, तरलता और युवती
के लज्जा भूषण जैसी श्री से संयुक्त होता है। यह तरल छाया और लज्जा श्री ही
छायावाद कवि की वाणी का सौंदर्य है।”
छायावाद की परिभाषा (chhayavad ki paribhasha)
जयशंकर प्रसाद के अनुसार,”
कविता के क्षेत्र में पौराणिक युग की किसी घटना अथवा देश-विदेश के सुन्दर
बाह्य वर्णन से भिन्न जब वेदना के आधार पर स्वानुभूतिमयी अभिव्यक्ति होने
लगी तब हिंदी में उसे छायावाद नाम से अभिहित किया गया।”
डाॅ. रामकुमार वर्मा के अनुसार,” परमात्मा की छाया आत्मा में पड़ने लगती है और आत्मा की छाया परमात्मा में यही छायावाद हैं।”
सुमित्रानंदन पंत के अनुसार,” प्राकृतिक चित्रों में कवि की अपनो भावनाओं के सौंदर्य की और कवि की भावनाओं में प्रकृति सौंदर्य की छाया ही छायावाद हैं।”
गंगाप्रसाद पाण्डेय के अनुसार,” विश्व की किसी वस्तु में अज्ञात सप्राण छाया की झाँकी पाना अथवा उसका आरोप करना ही छायावाद हैं।”
छायावादी काव्य की मुख्य विशेषताएं (chhayavad ki visheshta)
छायावाद की निम्नलिखित विशेषताएं हैं–
1. व्यक्तिवाद की प्रधानता
छायावाद मे व्यक्तिगत भावनाओं की प्रधानता है। वहाँ कवि अपने सुख-दुख एवं
हर्ष-शोक को ही वाणी प्रदान करते हुए खुद को अभिव्यक्त करता है।
2. सौन्दर्यानुभूति
यहाँ सौन्दर्य का अभिप्राय काव्य सौन्दर्य से नही, सूक्ष्म आतंरिक सौन्दर्य
से है। बाह्रा सौन्दर्य की अपेक्षा आंतरिक सौन्दर्य के उद्घाटन मे उसकी
दृष्टि अधिक रमती है। सौन्दर्योपासक कवियों ने नारी के सौन्दर्य को नाना
रंगो का आवरण पहनाकर व्यक्त किया है।
3. श्रृंगार भावना
छायावादी काव्य मुख्यतया श्रृंगारी काव्य है किन्तु उसका श्रृंगार
अतीन्द्रिय सूक्ष्म श्रृंगार है। छायावाद का श्रृंगार उपभोग की वस्तु नही,
अपितु कौतुहल और विस्मय का विषत है। उसकी अभिव्यंजना मे कल्पना और
सूक्ष्मता है।
4. प्रकृति चित्रण
छायावादी काव्य
अपने प्रकृति-चित्रण के लिए प्रसिद्ध है। इस धारा के कवियों ने प्रकृति के
माध्यम से अपने मनोभावों को अत्यंत सजीव अभिव्यक्ति प्रदान की है। प्रकृति
छायावादी कवियों की सहचरी है। उसके सौंदर्य के सम्मुख इन कवियों को किशोरी
का रूप-सौदर्य भी फीका-सा लगता है। छायावादी कवियों ने प्रकृति का मानवीकरण
शैली में अत्यंत ह्रदयग्राही चित्रण किया है। छायावादी कवियों ने प्रकृति
के कोमल और कठोर रूपों के अत्यंत ह्रदयग्राही चित्रण किया है। छायावादी
कवियों ने प्रकृति के कोमल और कठोर रूपों के अत्यंत प्रभावी और सजीव चित्र
उतारे हैं।
5. मानवतावाद
छायावादी कविता में मानवता के प्रति विशेष
आग्रह दृष्टिगोचर होता है। रामकृष्ण एवं विवेकानन्द द्वारा प्रचलित
मानवतावाद, रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा प्रचलित विश्व-बन्धुत्व की भावना तथा
महात्मा गाँधी द्वारा प्रचलित मानवतावाद– इन सबका प्रभाव छायावादी कविताओं
में देखा जा सकता है। प्रसाद में मानव मात्र की समानता, विश्व-बन्धुत्व,
करूण के भाव सर्वत्र व्याप्त हैं। कामायनी की नायिका श्रद्धा स्पष्ट शब्दों
में कहती हैं–
औरों को हँसते देखो मनु, हँसो और सुख पावो।
अपने सुख को विस्तृत कर लो, सबको सुखी बनाओ।।
6. वेदना एवं करूणा का आधिक्य
ह्रदयगत भावों की अभिव्यक्ति की अपूर्णता, अभिलाषाओं की विफलता, सौंदर्य की
नश्वरता, प्रेयसी की निष्ठुरता, मानवीय दुर्बलताओं के प्रति संवेदनशीलता,
प्रकृति की रहस्यमयता आदि अनेक कारणों से छायावादी कवि के काव्य मे वेदना
और करूणा की अधिकता पाई जाती है।
7. अज्ञात सत्ता के प्रति प्रेम
अज्ञात सत्ता के प्रति कवि मे ह्रदयगत प्रेम की अभिव्यक्ति पाई जाती है। इस
अज्ञात सत्ता को कवि कभी प्रेयसी के रूप मे तो कभी चेतन प्रकृति के रूप मे
देखता है। छायावाद की यह अज्ञात सत्ता ब्रह्म से भिन्न है।
8. देश प्रेम की ज्वलंत भावना
इन
कवियों में अपने देश के अतीत गौरव की बड़ी तीव्र भावना है, विशेषतः प्रसाद
में। उन्होंने देश के प्राचीन गौरव का बड़ा ओजस्वी एवं प्रेरणादायक वाणी
में गायन किया हैं–
अरूण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितित को मिलता एक सहारा।।
9. जीवन-दर्शन
छायावादी कवियों ने जीवन के प्रति भावात्मक दृष्टिकोण को अपनाया है। इसका
मूल दर्शन सर्वात्मवाद है। सम्पूर्ण जगत मानव चेतना से स्पंदित दिखाई देता
है।
10. नवीन अलंकार
छायावादी कवियों ने अलंकार विधान
में पर्याप्त परिवर्तन किया है। अभी तक ‘मूर्त’ की उपमा दी जाती थी, किन्तु
छायावादी कवियों ने ‘मूर्त’ के लिये ‘अमूर्त’ उपमानों का सफल प्रयोग किया
है। विशेषण विपर्यय और मानवीकरण इस युग की अलंकारिक विशेषताएं हैं।
11. नवीन छन्द
छायावादी
युग में विभिन्न प्रकार के छन्द सामने आये। कहीं-कहीं पर तो दो-दो विभिन्न
प्रकार के मात्रिक छन्दों को मिला कर नवीन छन्द बनाये गये। कहीं-कहीं पर
अतुकान्त छन्द तथा मुक्त छन्दों का भी प्रयोग किया गया है। मुक्त छन्द
छायावादी कवियों की (विशेषकर निराला की) महत्वपूर्ण देन हैं।
12. नारी के प्रति नवीन भावना
छायावाद मे श्रृंगार और सौंदर्य का संबंध मुख्यतया नारी से है। रीतिकालीन
नारी की तरह छायावादी नारी प्रेम की पूर्ति का साधनमात्र नही है। वह इस
पार्थिव जगत की स्थूल नारी न होकर भाव जगत की सुकुमार देवी है।
13. अभिव्यंजना शैली
छायावादी कवियों ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए लाक्षणिक,
प्रतीकात्मक शैली को अपनाया है। उन्होंने भाषा मे अभिधा के स्थान पर लक्षणा
और व्यंजना का प्रयोग किया है।
Final Words
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