इण्टरनेट कम्युनिकेशन का एक महत्वपूर्ण व दक्ष माध्यम है , जिसने काफी लोकप्रियता अर्जित की है । इण्टरनेट के माध्यम से लाखों व्यक्ति सूचनाओं , विचारों , ध्वनि , वीडियो क्लिप्स इत्यादि को कम्प्यूटरों के जरिए पूरी दुनिया में एक – दूसरे के साथ शेयर कर सकते हैं । यह विभिन्न आकारों व प्रकारों के नेटवर्कों से मिलकर बना होता है ।
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इण्टरनेट ( Internet )
इसका पूरा नाम इण्टरनेशनल नेटवर्क है जिसे वर्ष 1950 में विंट कर्फ ने शुरू किया इन्हें इण्टरनेट का पिता कहा जाता है । इण्टरनेट ” नेटवर्कों का नेटवर्क ‘ है , जिसमें लाखों निजी व सार्वजनिक लोकल से ग्लोबल स्कोप वाले नेटवर्क होते हैं । सामान्यतः , “नेटवर्क दो या दो से अधिक कम्प्यूटर सिस्टमों को आपस में जोड़कर बनाया गया एक समूह है।”
इण्टरनेट पर उपलब्ध डेटा , प्रोटोकॉल द्वारा नियन्त्रित किया जाता है । TCP / IP द्वारा एक फाइल कई छोटे भागों में फाइल सर्वर द्वारा बाँटा जाता है । जिन्हें पैकेट्स कहा जाता है । इण्टरनेट पर सभी कम्प्यूटर आपस में इसी प्रोटोकॉल का प्रयोग करके वार्तालाप करते हैं ।
इण्टरनेट का इतिहास ( History of Internet )
सन् 1969 में , लास एंजेल्स् ( Los Angeles ) में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया ( University of California ) तथा युनिवर्सिटी ऑफ यूटा ( University of Utah ) अरपानेट ( ARPANET- Advanced Research Projects Agency Network ) की शुरुआत के रूप में जुड़े । इस परियोजना का मुख्य लक्ष्य विभिन्न विश्वविद्यालयों तथा अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के कम्प्यूटरों को आपस में कनेक्ट करना था । यह दुनिया का पहला पैकेट स्विचिंग नेटवर्क था ।
मध्य 80 के दशक मे , एक और संघीय एजेंसी राष्ट्रीय विज्ञान फाउंटेशन ( National Science Foundation ) ने एक नया उच्च क्षमता वाला नेटवर्क NSFnet बनाया जो ARPANET से अधिक सक्षम था । NSFnet में केवल यही कमी थी कि यह अपने नेटवर्क पर केवल शैक्षिक अनुसंधान की ही अनुमति देता था , किसी भी प्रकार के निजी व्यापार की अनुमति नहीं । इसी they कारण निजी संगठनों , तथा लोगों ने अपने खुद के नेटवर्क का निर्माण करना शुरू कर दिया जिसने बाद में ARPANET तथा NSFnet से जुडकर इण्टरनेट का निर्माण किया ।
इण्टरनेट के लाभ ( Advantages of Internet )
इण्टरनेट के लाभ निम्नलिखित हैं
( a ) दूसरे व्यक्तियों से आसानी से सम्पर्क बनाने की अनुमति देता है ।
( b ) इसके माध्यम से दुनिया में कहीं भी , किसी से भी सम्पर्क बनाया जा सकता है ।
( c ) इण्टरनेट पर डॉक्यूमेन्ट को प्रकाशित करने पर पेपर इत्यादि की बचत होती है ।
( d ) यह कम्पनियों के लिए कीमती संसाधन है । जिस पर वे व्यापार का विज्ञापन तथा लेन – देन भी कर सकते हैं ।
( e ) एक ही जानकारी को कई बार एक्सेस करने के बाद उसे पुनः सर्च करने में कम समय लगता है ।
इण्टरनेट की हानियाँ ( Disadvantages of Internet
इण्टरनेट की हानियाँ निम्नलिखित हैं
( a ) कम्प्यूटर में वायरस के लिए यह सर्वाधिक उत्तरदायी है ।
( b ) इण्टरनेट पर भेजे गए सन्देशों को आसानी से चुराया जा सकता है ।
( c ) बहुत – सी जानकारी जाँची नहीं जाती । वह गलत या असंगत भी हो सकती है ।
( d ) अनैच्छिक तथा अनुचित डॉक्यूमेन्ट / तत्व कभी – कभी गलत लोगों ( आतंकवादी ) द्वारा इस्तेमाल कर लिए जाते हैं ।
( e ) साइबर धोखेबाज क्रेडिट / डेबिट कार्ड की समस्त जानकारी को चुराकर उसे गलत तरीके से इस्तेमाल कर सकते हैं ।
इण्टरनेट कनेक्शन्स ( Internet Connections )
बैण्डविड्थ व कीमत इन दो घटकों के आधार पर ही कौन से इण्टरनेट कनेक्शन को उपयोग में लाना है यह सर्वप्रथम निश्चित किया जाता है । इण्टरनेट की गति बैण्डविड्थ पर निर्भर करती है । इण्टरनेट एक्सेस के लिए कुछ इण्टरनेट कनेक्शन इस प्रकार है
1. डायल – अप कनेक्शन ( Dial – up Connection )
डायल – अप पूर्व उपस्थित टेलीफोन लाइन की सहायता से इण्टरनेट से जुड़ने का एक माध्यम है । जब भी उपोयोगकर्ता डायल – अप कनेक्शन को चलाता है , तो पहले मॉडम इण्टरनेट सर्विस प्रोवाइडर ( ISP ) का फोन नम्बर डायल करता है । जिसे डायल – अप कॉल्स को प्राप्त करने के लिए तैयार किया गया है व फिर आई एस पी ( ISP ) कनेक्शन स्थापित करता है । जिसमें सामान्य रूप से दस सेकण्ड्स लगते हैं । सामान्यतः शब्द ISP उन कम्पनियों के लिए प्रयोग किया जाता है । जो उपयोगकर्ताओं को इण्टरनेट कनेक्शन प्रदान करती है । उदाहरण के लिए , कुछ प्रसिद्ध ISP के नाम है- jio, idea, Airtel , MTNL , Vodafone आदि ।
2. ब्रॉडबैण्ड कनेक्शन ( Broad Band Connection )
ब्रॉडबैण्ड का इस्तेमाल हाई स्पीड इण्टरनेट एक्सेस के लिए सामान्य रूप से होता है । यह इण्टरनेट से जुड़ने के लिए टेलीफोन लाइनों को प्रयोग करता है । ब्रॉडबैण्ड उपयोगकर्ता को डायल – अप कनेक्शन से तीव्र गति पर इण्टरनेट से जुड़ने की सुविधा प्रदान करता है । ब्रॉडबैण्ड में विभिन्न प्रकार की हाई स्पीड संचरण तकनीकें भी सम्मिलित है , जोकि इस प्रकार
( a ) डिजिटल सब्स्क्राइबर लाइन ( DSL- Digital Subscriber Line )
यह एक लोकप्रिय ब्रॉडबैण्ड कनेक्शन है , जिसमें इण्टरनेट एक्सेस डिजिटल डेटा को लोकल टेलीफोन नेटवर्क के तारों ( ताँबे के ) द्वारा संचरित किया जाता है । यह डायल सेवा की तरह , किन्तु उससे अधिक तेज गति से कार्य करता है । इसके लिए DSL मॉडम की आवश्यकता होती है , जिससे टेलीफोन लाइन तथा कम्प्यूटर को जोड़ा जाता है ।
( b ) केबल मॉडम ( Cable Modem )
इसके अन्तर्गत केबल ऑपरेटर्स कोएक्सीयल केबल के माध्यम से इण्टरनेट इत्यादि की सुविधाएँ भी | प्रदान कर सकते हैं । इसकी ट्रांसमिशन स्पीड 1.5 Mbps या इससे भी अधिक हो सकती है ।
( c ) फाइबर ऑप्टिक ( Fiber Optic )
फाइबर ऑप्टिक तकनीक वैद्युतीय संकेतों के रूप में उपस्थित डेटा को प्रकाशीय रूप में बदल उस प्रकाश को पारदर्शी ग्लास फाइबर , जिसका व्यास मनुष्य के बाल के लगभग बराबर होता है , के जरिए प्राप्तकर्ता तक भेजता है ।
( d ) बॉडबैण्ड ऑवर पावर लाइन ( Broad Band Over Power Line )
निम्न तथा माध्यम वोल्टेज के इलेक्ट्रिक पावर डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क पर बॉडबैण्ड कनेक्शन की सर्विस को ब्रॉडबैण्ड ऑवर | पॉवर लाइन कहते हैं , यह उन क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है , जहाँ पर पॉवर लाइन के अलावा कोई और माध्यम उपलब्ध नहीं है । उदाहरण- ग्रामीण क्षेत्र इत्यादि ।
3. वायरलेस कनेक्शन ( Wireless Connection )
वायरलेस ब्रॉडबैण्ड ग्राहक के स्थान और सर्विस प्रोवाइडर के बीच रेडियो लिंक का प्रयोग कर घर या व्यापर इत्यादि को इण्टरनेट से जोड़ता है । वायरलैस ब्रॉडबैण्ड स्थिर या चलायमान होता है । इसे केबल या मॉडम इत्यादि की आवश्यकता नहीं होती व इसका प्रयोग हम किसी भी क्षेत्र में , जहाँ DSL व केबल इत्यादि नहीं पहुँच सकतें , कर सकते हैं ।
( a ) वायरलैस फिडेलिटी ( Wireless Fidelity- WiFi )
यह एक सार्वत्रिक वायरलैस तकनीक है , जिसमें रेडियो आवृत्तियों को डेटा ट्रांसफर करने में प्रयोग किया जाता है । वाई – फाई केबल या तारों बिना ही उच्च गति से इण्टरनेट सेवा प्रदान करती है । इसका प्रयोग हम रेस्तराँ , कॉफी शॉप , होटल , एयरपोर्टस , कन्वेशन , सेण्टर और सिटी पार्को इत्यादि में कर सकते हैं ।
( b ) वर्ल्ड वाइड इण्टरऑपरेबिलिटी फॉर माइक्रोवेव एक्सेस ( Wimax – World Wide Interoperability for Microwave Access )
वायमैक्स सिस्टम्स आवासीय तथा इण्टरप्राइजेज ग्राहकों को इण्टरनेट की सेवाएं प्रदान करने के लिए बनाई गई है । यह वायरलेस मैक्स तकनीक पर आधारित है । वायमैक्स मुख्यतः बड़ी दूरियों व ज्यादा उपयोगकर्ता लिए wi – fi की भाँति , किन्तु उससे भी ज्यादा गति से इण्टरनेट सुविधा प्रदान करने के लिए प्रयुक्त होता है । wi – max को Wimax forum ने बनाया था , जिसकी स्थापना जून , 2001 में हुई थी
( c ) मोबाइल वायरलेस ब्रॉडबैण्ड सर्विसेज ( Mobile Wireless Broadband Services )
ब्रॉडबैण्ड सेवाएँ मोबाइल व टेलीफोन सर्विस प्रोवाइडर से भी उपलब्ध है । इस प्रकार की सेवाएँ सामान्य रूप से मोबाइल ग्राहकों के लिए उचित है । इससे प्राप्त होने वाली स्पीड बहुत कम होती है ।
( d ) सेटेलाइट ( Satelite )
सेटेलाइट , टेलीफोन तथा टेलीविजन सेवाओं के लिए आवश्यक लिंक उपलब्ध कराते हैं । इसके साथ ब्रॉडबैण्ड सेवाओं में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है।
इंट्रानेट ( Intranet )
एक संगठन के भीतर निजी कंप्यूटर नेटवर्को का समूह इंट्रानेट कहलाता है । इंट्रानेट डेटा साझा करने की क्षमता तथा संगठन के कर्मचारियों के समग्र ज्ञान को बेहतर बनाने के लिए नेटवर्क प्रौद्योगिकियों ( Network Technologies ) के प्रयोग द्वारा व्यक्तियों या व्यक्तियों के समूह के बीच संचार की सुविधा को आसान करता है ।
एक्स्ट्रानेट ( Extranet )
एक्स्ट्रानेट एक निजी नेटवर्क है जो सुरक्षित रूप से विक्रेताओं ( Vendors ) , भागीदारों ( Partners ) , ग्राहकों ( Customers ) या अन्य व्यवसायों के साथ व्यापार की जानकारी साझा करने के लिए इंटरनेट प्रौद्योगिकी ( Internet Technologies ) सार्वजनिक दूरसंचार प्रणाली ( Public Telecommunication System ) का उपयोग करता है । एक्स्ट्रानेट को एक संगठन के इंट्रानेट के रुप में भी देखा जा सकता है जो संगठन से बाहर के उपयोगकर्ताओं के लिए बढ़ा दिया गया हो।
इण्टीग्रेटेड सर्विसेज डिजिटल नेटवर्क ( Integrated Services Digital Network – ISDN )
यह एक डिजिटल टेलीफोन सेवा है , जिसका उपयोग ध्वनि डेटा व कण्ट्रोल सूचनाओं इत्यादि को एकल टेलीफोन लाइन पर संचरित करने में किया जाता है । इसका प्रयोग वृहद्स्तर पर व्यापारिक उद्देश्यों के लिए होता है ।
इण्टरकनैक्टिंग प्रोटोकॉल्स ( Interconnecting Protocols )
प्रोटोकॉल नियमों का वह सेट है जोकि डेटा कम्युनिकेशन्स की देखरेख करता है ।
कुछ प्रोटोकॉल इस प्रकार है ।
( a ) TCP / IP ( Transmission Control Protocol / Internet Protocol )
TCP / IP , end to end कनैक्टिविटी ( जिसमें डेटा की फॉर्मेटिंग , एड्रैसिंग संचरण के रूट्स और इसे प्राप्त करने की विधि इत्यादि सम्मिलित हैं ) प्रदान करता है।
इस प्रोटोकॉल के मुख्य रूप से दो भाग हैं
( i ) TCP ( ii ) IP
( i ) TCP यह सन्देश को प्रेषक के पास ही पैकेटों के एक सेट में | बदल देता है । जिसे प्राप्तकर्ता के पास पुनः इकट्ठा कर सन्देश को वापस हासिल कर लिया जाता है । इसे कनेक्शन ऑरिएण्टड ( Connection Oriented ) प्रोटोकॉल भी कहते हैं
( ii ) IP यह विभिन्न कम्प्यूटरों को नेटवर्क स्थापित करके आपस में संचार करने की अनुमति प्रदान करता है । IP नेटवर्क पर पैकेट भेजने का कार्य सँभालती है । यह अनेक मानकों ( Standard ) के आधार पर पैकेटों के एड्रेस को बनाए रखता है । प्रत्येक IP पैकेट में स्रोत तथा गन्तव्य का पता होता है ।
( b ) फाइल ट्रांसफर प्रोटोकॉल ( File Transfer Protocol FTP )
प्रोटोकॉल के द्वारा इण्टरनेट उपयोगकर्ता अपने कम्प्यूटरों से फाइलों को विभिन्न वेबसाइटों पर उपलोड कर सकते हैं या वेबसाइट से अपने पीसी में डाउनलोड कर सकते हैं । FTP सॉफ्टवेयर के उदाहरण हैं- Filezilla , Kasablanca , ftp , Konqueror इत्यादि ।
( c ) हाइपरटैक्स ट्रांसफर प्रोटोकॉल ( Hypertext Transfer Protocol )
यह इस बात को सुनिश्चित करता कि सन्देशों को किसी प्रकार फॉर्मेट ( Format ) व संचरित किया जाता है व विभिन्न कमाण्डों के उत्तर में वेब सर्वर तथा ब्राउजर क्या ऐक्शन लेंगे । HTTP एक स्टेटलेस प्रोटोकॉल ( Stateless Protocol ) है , क्योंकि इसमें प्रत्येक निर्देश स्वतन्त्र होकर क्रियान्वित होते है ।
( d ) हाइपरटेक्स्ट मार्कअप लैंग्वेज ( Hypertext Markup Language )
इसका प्रयोग वेबपेजों के डिजाइन बनाने में इस्तेमाल होता है । मार्कअप लैंग्वेज , मार्कअप ( <- – > ) टैग का एक सेट होता है | जो वेब ब्राउजर को यह बताता है कि वेब पेज पर शब्दों , इमेजों इत्यादि को उपयोगकर्ता के लिए किस प्रकार प्रदर्शित करना है ।
( e ) टेलनेट प्रोटोकॉल ( Telnet Protocol )
टेलनेट सेशन वैध यूजरनेम तथा पासवर्ड को प्रविष्ट करने पर शुरू हो जाता है । यह एक नेटवर्क प्रोटोकॉल है , जिसमें वर्चुअल कनेक्शन का इस्तेमाल करके द्विदिशीय टेक्स्ट ऑरिएण्टड कम्युनिकेशन को लोकल एरिया नेटवर्क पर प्रदान किया जाता है।
( f ) यूजनेट प्रोटोकॉल ( Usenet Protocol )
इसके अन्तर्गत कोई केन्द्रीय सर्वर या एडमिनिस्ट्रेटर नहीं होता है । इस सेवा के तहत इण्टरनेट उपयोगकर्ताओं का एक समूह किसी भी विशेष विषय पर अपने विचार / सलाह आदि का आपस में आदान – प्रदान कर सकते हैं ।
( g ) पॉइण्ट – टू – पॉइण्ट प्रोटोकॉल ( Point to Point Protocol )
यह एक डायल अकाउण्ट है जिसमें कम्प्यूटर को इण्टरनेट पर सीधे जोड़ा जाता है । इस आकार के कनेक्शन में एक मॉडम की आवश्यकता होती है , जिसमें डेटा को 9600 बिट्स / सेकण्ड से भेजा जाता है ।
( h ) वायरलैस एप्लीकेशन प्रोटोकॉल ( Wireless Application Protocol )
वैप ( WAP ) ब्राउजर , मोबाइल डिवाइसों में प्रयोग होने वाले वेब ब्राउजर है । यह प्रोटोकॉल Web Browser को सेवाएं प्रदान करता है ।
( i ) वॉयस ऑवर इण्टरनेट प्रोटोकॉल ( Voice Over Internet Protocol )
यह IP नेटवर्कों पर ध्वनि संचार का वितरण करने में प्रयोग होती है , जैसे- IP कॉल्स
इण्टरनेट से सम्बन्धित जानकारी ( Internet Related Terms )
( a ) वर्ल्ड वाइड वेब ( World Wide Web )
वर्ल्ड वाइड वेब ( www ) विशेष रूप से स्वरूपित डॉक्यूमेन्टस का समर्थन करने वाले इंटरनेट सर्वर की एक प्रणाली है यह 13 मार्च 1989 को पेश किया गया था । डॉक्यूमेन्टस मार्कअप लैंग्वेज HTML में फॉर्मेटिड होते हैं तथा दूसरे डॉक्यूमेण्टस के लिए लिंक , साथ ही ग्राफिक्स , ऑडियों और वीडियो फाइल का समर्थन भी करते है । उपयोगकर्ता फ्रेण्डली , इण्टरऐक्टिव , मल्टीमीडिया डॉक्यूमेन्टों ( ग्राफिक्स , ऑडियों , वीडियो , एनिमेशन और टेक्स्ट ) इत्यादि इसके विशिष्ट फीचर्स हैं ।
( b ) वेब पेज ( Web Page )
वेब बहुत सारे कम्प्यूटर डॉक्यूमेन्टों या वेब पेजों का संग्रह है । ये डॉक्यूमेण्टस HTML में लिखे जाते हैं तथा वेब ब्राउजर द्वारा प्रदर्शित किए जाते है । ये दो प्रकार के होते हैं- स्टैटिक ( Static ) तथा डायनेमिक ( Dynamic ) । स्टैटिक वेब पेज हर बार एक्सेस करने पर एक ही सामग्री दिखाते हैं तथा डायनेमिक वेब पेज की सामग्री हर बार बदल सकती है ।
( c ) वेबसाइट ( Website )
एक वेबसाइट वेब पेजों का संग्रह होता है , जिसमें सभी वेब पेज हाइपरलिंक द्वारा एक – दूसरे से जुड़े होते हैं । किसी भी वेबसाइट का पहला पेज होमपेज कहलाता है । उदाहरण Http://iete.org इत्यादि ।
( d ) वेब ब्राउजर ( Web Browser )
वेब ब्राउजर एक सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन है , जिसका प्रयोग वर्ल्ड वाइड वेब कंटेण्ट को ढूँढने , निकालने व प्रदर्शित करने में होता है।
ये प्रायः दो प्रकार को होते है
( i ) टेक्स्ट वेब ब्राउजर ( Text Web Browser )
इस वेब ब्राउजर में टेक्स्ट आधारित सूचना को प्रदर्शित किया जाता है । उदाहरण Lynx
( ii ) ग्राफिकल वेब ब्राउजर ( Graphical Web Browser )
यह टेक्स्ट तथा ग्राफिक सूचना दोनों को सपोर्ट करता है । उदाहरण Firefox , Chrome , Netscape , Internet Explorer इत्यादि ।
( e ) वेब सर्वर ( Web Server )
यह एक कम्प्यूटर प्रोग्राम है , जोकि HTML पेजों या फाइलों की जरूरतों को पूरा करता है । वेब क्लाइण्ट उपयोगकर्ता से सम्बन्धित आग्रहित ( Requested ) प्रोग्राम है । प्रत्येक वेब सर्वर जोकि इण्टरनेट से जुड़े होते हैं , का एक अद्वितीय एड्रेस होता है | जिसे IP एड्रेस कहते हैं । उदाहरण- Apache HTTPServer , Internet Information Services इत्यादि ।
( f ) वेब एड्रेस ( Web Address )
इण्टरनेट पर वेब एड्रेस किसी विशिष्ट वेब पेज की लोकेशन को पहचानता है । एड्रेस को URL ( Uniform Resource Locater ) भी कहते हैं । URL इण्टरनेट से जुड़े होस्ट कम्प्यूटर पर फाइलों के इण्टरनेट एड्रेस को दर्शाते हैं । टिम बर्नर्स ली ( Tim Berners lee ) ने वर्ष 1991 में पहला URL बनाया , जोकि वर्ल्ड वाइड वेब पर हाइपरलिंक्स को प्रकाशित करने में इस्तेमाल होता है ।
उदाहरण
“http://www.google.com/services/index.htm “
” http – प्रोटोकॉल आइडेण्टिफायर
( Protocol Identifier )
www – वर्ल्ड वाइड वेब
google.com – डोमेन नेम
/ services / – डायरेक्टरी
index.htm – वेब पेज
( g ) डोमेन नेम ( Domain Name )
डोमेन नेटवर्क संसाधनों का एक समूह है , जिसे उपयोगकर्ता के समूह को आवण्टित किया जाता है । डोमेन नेम इण्टरनेट पर जुड़े हुए कम्प्यूटरों को पहचानने व लोकेट करने के काम में आता है । डोमेन नेम सदैव अद्वितीय होना चाहिए । इसमें हमेशा डॉट ( . ) द्वारा अलग किए गए दो या दो से अधिक भाग होते हैं ।
उदाहरण- google.com , yahoo.com इत्यादि । डोमेन संगठनों तथा देशों के प्रकार द्वारा व्यवस्थित किए जाते हैं । डोमेन नेम में अन्तिम भाग संगठन या देश के प्रकार को अंकित करता है । उदाहरण के लिए
सामान्यतः , यदि डोमेन नेम के अन्तिम भाग में तीन अक्षर है तो वह संगठन को दर्शाता है तथा दो अक्षर है तो वह देश का दर्शाता है ।
( h ) डोमेन नेम सिस्टम ( Domain Name System )
यह डोमेन नेम को आई पी एड्रेस में अनुवादित करता है । सर्वर्स को पहचानने के लिए डोमेन नेम सिस्टम का प्रयोग होता है । सर्वर्स की ऐड्रेसिंग , नम्बरों पर भी आधारित होती है । उदाहरण- 204.157.54.9 इत्यादि , सभी IP एड्रेसेज हैं ।
( i ) ब्लॉग्स ( Blogs )
यह एक वेबपेज या वेबसाइट होती है , जिसमें किसी व्यक्ति विशेष की राय / सलाह , दूसरी साइटों के लिंक नियमित रूप से रिकॉर्ड होते हैं । किसी भी सामान्य ब्लॉग में टेक्स्ट , इमेज्स व अन्य ब्लागों , वेबपेजों या किसी अन्य टॉपिक से सम्बन्धित मीडिया के लिंक होते हैं , इनमें मुख्य रूप से टेक्सचुअल , कलात्मक चित्र , फोटोग्राफ , वीडियों , संगीत इत्यादि सम्मिलित हैं ।
( j ) न्यूज़ग्रुप्स ( Newsgroups )
यह एक ऑनलाइन डिस्कशन ग्रुप होता है , जिसके अन्तर्गत इलैक्ट्रॉनिक बुलेटिन बोर्ड सिस्टम तथा चैट सेशन्स के द्वारा बातचीत करने की अनुमति प्रदान की जाती है । यह न्यूजग्रुप्स विषयों को उनके पदक्रम में संगठित करने के काम में आता है । जिसमें न्यूजग्रूप का पहला अक्षर प्रमुख विषय की श्रेणी को व उपश्रेणियाँ उपविषय द्वारा दर्शायी जाती है ।
( k ) सर्च इंजन ( Search Engine )
सर्च इंजन इण्टरनेट किसी भी विषय के बारे में सम्बन्धित जानकारियों के लिए प्रयोग होता है । यह एक प्रकार की ऐसी वेबसाइट होती है , जिसके सर्च बार में किसी भी टॉपिक को लिखते है , जिसके बाद उससे सम्बन्धित सभी जानकारियां प्रदर्शित हो जाती हैं । इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं google – http://www.google.com yahoo – http://www.yahoo.com इत्यादि ।
इण्टरनेट सेवाएँ ( Internet Services )
इण्टरनेट से उपयोगकर्ता कई प्रकार की सेवाओं का लाभ उठा सकता है , जैसे कि इलेक्ट्रॉनिक मेल , मल्टीमीडिया डिस्प्ले , शॉपिंग , रियल टाइम ब्रॉडकास्टिंग इत्यादि।
इनमें में कुछ महत्वपूर्ण सेवाएँ इस प्रकार हैं
( a ) चैटिंग ( Chatting )
यह वृहत स्तर पर भी उपयोग होने वाली टेक्स्ट आधारित संचारण है , जिससे इण्टरनेट पर आपस में बातचीत कर सकते हैं । इसके माध्यम से उपयोगकर्ता चित्र , वीडियो , ऑडियों इत्यादि भी एक – दूसरे के साथ शेयर कर सकते हैं । उदाहरण- skype , yahoo , messenger इत्यादि।
( b ) ई – मेल ( Electronic – mail )
ई – मेल के माध्यम से कोई भी उपयोगकर्ता किसी भी अन्य व्यक्ति को इलेक्ट्रॉनिक रूप में सन्देश भेज सकता है तथा प्राप्त भी कर सकता है । ई – मेल को भेजने के लिए किसी भी उपयोगकर्ता का ई – मेल ऐड्रेस होना बहुत आवश्यक है , जोकि विश्व भर में उस ई – मेल सर्विस पर अद्वितीय होता है । ई – मेल में SMTP ( Simple Mail Transfer Protocol ) का भी इस्तेमाल किया जाता है । इसके अन्तर्गत वेब सर्वर पर कुछ मैमोरी स्थान प्रदान कर दिया जाता है , जिसमें सभी प्रकार के मेल संग्रहीत होते हैं । ई – मेल सेवा का उपयोग उपयोगकर्ता विश्वभर में कहीं से भी कभी भी कर सकता है । उपयोगकर्ता ई – मेल वेबसाइट पर उपयोगकर्ता नेम ( जोकि सामान्यतः उसका ई – मेल एड्रेस होता है ) व पासवर्ड की सहायता से लॉग इन कर सकता है और अपनी प्रोफाइल को मैनेज कर सकता है । ई – मेल एड्रेस में दो भाग होते है जो एक प्रतीक @ द्वारा अलग होते है पहला भाग यूजरनेम तथा दूसरा भाग डोमेन नेम होता है । उदाहरण के लिए , variousinfo.co.in@gmail.com । यहाँ पर variousinfo.co.in यूजरनेम तथा gmail.com डोमेन नेम है ।
( c ) वीडियो कॉन्फ्रेन्सिंग ( Video Conferencing )
वीडियो कॉन्फ्रेन्सिंग के माध्यम से कोई व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह किसी अन्य व्यक्ति या समूह के साथ दूर होते हुए भी आमने – सामने रहकर वार्तालाप कर सकते हैं । इस कम्युनिकेशन में उच्च गति इण्टरनेट कनेक्शन की आवश्यकता होती है व इसके साथ एक कैमरे , एक माइक्रोफोन , एक वीडियो स्क्रीन तथा एक साउण्ड सिस्टम की भी जरूरत होती है।
( d ) ई – लर्निंग ( E – learning )
इसके अन्तर्गत कम्प्यूटर आधारित प्रशिक्षण , इण्टरनेट आधारित प्रशिक्षण , ऑनलाइन शिक्षा इत्यादि सम्मिलित हैं जिसमें उपयोगकर्ता को किसी विषय पर आधारित जानकारी को इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रदान किया जाता है । इस जानकारी को वह किसी भी आउटपुट माध्यम पर देखकर स्वयं को प्रशिक्षित कर सकता है । यह कम्प्यूटर या इण्टरनेट से ज्ञान को प्राप्त करने का एक माध्यम है।
( e ) ई – बैंकिंग ( E – banking )
इसके माध्यम से उपयोगकर्ता विश्वभर में कहीं से भी अपने बैंक अकाउण्ट को मैनेज कर सकता है । यह एक स्वचालित प्रणाली का अच्छा उदाहरण है , जिसमें उपयोगकर्ता की | गतिविधियों ( पूँजी निकालने , ट्रांसफर करने , मोबाइल रिचार्ज करने इत्यादि ) के साथ उसका बैंक अकाउण्ट भी मैनेज होता रहता है । ई बैकिंग से किसी भी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस ( PC , Mobile आदि ) इत्यादि पर इण्टरनेट की सहायता की जा सकती है । इसके मुख्य व व्यावहारिक उदाहरण हैं- बिल पेमेण्ट सेवा , फण्ड ट्रांसफर , रेलवे रिजर्वेशन , शॉपिंग इत्यादि।