मानव संसाधन क्या है। मानव पूँजी क्या है। शिक्षा का महत्व। आर्थिक क्रियाएँ आर्थिक क्रियाएँ के प्रकार। आर्थिक क्रियाकलाप प्राथमिक द्वितीय और तृतीयक। PDF

संसाधन के रूप में लोग PDF

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मानव संसाधन क्या है। मानव पूँजी क्या है। शिक्षा का महत्व। आर्थिक क्रियाएँ आर्थिक क्रियाएँ के प्रकार। आर्थिक क्रियाकलाप प्राथमिक द्वितीय और तृतीयक।

 

☆ संसाधन :- संसाधन एक ऐसा स्त्रोत है जिसका उपयोग मनुष्य अपने लाभ के लिये करता है।

○ मानव संसाधन विकास :-

मानव संसाधन विकास के सभी पहलुओं का केंद्र बिन्दु, अत्यधिक बेहतर कार्यबल को विकसित करना है ताकि संगठन एवं व्यक्तिगत कर्मचारी अपने कार्य लक्ष्यों को सुयोजित एवं निष्पादित कर सकें।

 

○ संसाधन के प्रकार

संसाधन दो प्रकार के होते हैं- प्राकृतिक संसाधन और मानव निर्मित संसाधन।

○ संसाधन के रूप में लोग’ से अभिप्राय किसी देश में वर्तमान उत्पादन कौशल और क्षमताओं के संदर्भ में कार्यरत लोगों को वर्णन करने की एक विधि से है। सभी संसाधनों में जैसे भूमि, पूँजी और लोग से किसी भी देश के सबसे महत्वपूर्ण संसाधन उस देश की जनसंख्या (लोग) है

 

 

☆विभिन्न क्रियाकलापों के क्षेत्रक

1. प्राथमिक क्षेत्रक (Primary Sector) के क्रियाकलाप:- सीधे तौर पर प्रकृति से जुड़ी क्रियाकलापों को प्राथमिक क्षेत्रक के क्रियाकलाप कहते हैं।

जैसे- कृषि, मत्स्य पालन, पशु पालन, खनन क्रिया इत्यादि।

 

2. द्वितीय क्षेत्रक (Secondary Sector) के क्रियाकलाप:- वैसे क्रियाकलाप जिसे प्राथमिक उत्पादों को करहल कर फिर से निर्माण का कार्य किया जाता है वैसे क्रियाकलाप को द्वितीय क्षेत्रक के क्रियाकलाप कहा जाता है।

जैसे- कल-कारखाने, ईटा भट्टा, आटा चक्की इत्यादि।

 

3. तृतीय क्षेत्रक (Tertiary Sector) के क्रियाकलाप:- तृतीय क्षेत्रक के अंतर्गत वे क्रियाकलाप आते हैं। जो प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्र को मदद करते हैं।

जैसे- परिवहन, संचार, बैंकिंग, होटल इत्यादि।

 

 

☆ आर्थिक क्रियाएँ :- मानव द्वारा किए जा रहे है क्रियाकलाप जो राष्ट्रीय आय में मूल्य-वर्धन करते हैं।

 

आर्थिक क्रियाओं के प्रकार –

1. बाजार क्रियाएँ :- बाजार क्रियाओं में वेतन या लाभ के उद्देश्य से की गई क्रियाओं के लिए पारिश्रमिक का भुगतन किया जाता है। प्रकार की क्रियाएं उत्पादन, विनिमय और वस्तुओं तथा सेवाओं के वितरण से संबंधित होती है।

जैसे:- शिक्षक, वकील, ड्राइवर, मजदूर, किसान, व्यावसायिक।

 

2. गैर-बाजार क्रिया:- जो भावनात्मक एवं मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए की जाती है। उसे गैर आर्थिक क्रियाएं कहते हैं। ये क्रियाएं सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, शैक्षिक एवं सार्वजनिक हित से संबंधित हो सकती है।

जैसे– मां द्वारा घरों में खाना बनाना, पर्व-त्यौहारों में चंदा इकट्ठा करना, अपने गली मोहल्ले की साफ सफाई करना इत्यादि।

 

 

☆ जनसंख्या की गुणवत्ता

○ शिक्षा :- मानव संसाधन के निर्माण में शिक्षा एक महत्वपूर्ण कारक है। मानव को जब अधिक शिक्षित और प्रशिक्षित कर उसे मानसिक तौर पर अधिक विकसित कर दिया जाता है तब वह मानव से मानव पूंजी में बदल जाता है।

स्वास्थ्य :- मानव पूंजी निर्माण में स्वास्थ्य की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यदि व्यक्ति शिक्षित और प्रशिक्षित है लेकिन वह बीमार रहता है। तो वह किसी भी प्रकार के उत्पादन कार्य में शामिल नहीं हो सकेगा। उसकी उत्पादन और कार्यक्षमता शुन्य होगी। एक पुरानी कहावत भी है “स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का विकास होता है।

 

 

☆ सर्वशिक्षा अभियान :-

6 से 14 वर्ष की आयु वर्ग के सभी स्कूली बच्चों को वर्ष 2010 तक प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने की दिशा में सर्वशिक्षा अभियान एक महत्वपूर्ण कदम है।

• प्राथमिक शिक्षा सार्वभौमिक लक्ष्य को प्राप्त करना है।

• दोपहर के भोजन की योजना।

 

 

☆ बेरोजगारी :- जब कुशल व्यक्ति प्रचलित दरों पर कार्य करने को इच्छुक होता है। परंतु उसे कार्य नहीं मिलता है तो ऐसी स्थिति को बेरोजगारी कहते हैं

○ प्रच्छन्न बेरोजगारी :- जिसमें श्रमिक या व्यक्ति आवश्यकता से अधिक लोग लगे होते हैं। ऐसी स्थिति को प्रच्छन्न बेरोजगारी कहते हैं।

• सामान्यतः ऐसी स्थिति ग्रामीण क्षेत्रों के अंतर्गत कृषि क्षेत्रों में देखने को मिलती है। जहां लोग आवश्यकता से अधिक लगे होते हैं।

 

○ मौसमी बेरोजगारी:- यह बेरोजगारी की वह स्थिति है जिसमें श्रमिक या व्यक्ति को वर्ष के कुछ महीने काम नहीं मिलते हैं। जिन महिनों में काम मिलता है उसके लिए उन्हें पैसे दी जाती है। ऐसी स्थिति को मौसमी बेरोजगारी कहते हैं।

इस प्रकार की बेरोजगारी भी अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों के अंतर्गत कृषि क्षेत्र में देखने को मिलती है।

 

○ शिक्षित बेरोजगारी :- भारत के लिए एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। जो कि हर साल हजारों और लाखों की संख्या में शिक्षित और प्रशिक्षित युवक तैयार हो रहे हैं।

 

अगर आंकड़े की बात करें तो देश में 80 हजार से अधिक डिप्लोमाधारी, इंजीनियर, 25 हजार से अधिक डिग्री इंजीनियर, 35 लाख से अधिक स्नातक एवं स्नातकोत्तर डिग्रीधारी, 40 लाख से अधिक इंटरमीडिएट तथा एक करोड़ से माध्यमिक पास युवक रोजगार की बाट जोह रहे हैं।

सर्वे रिपोर्ट फरवरी, 2020 के अनुसार बेरोजगारी दर 7.78% थी।

 

 

○ मानव पूंजी :
मानव पूंजी को सबसे उत्तम मानते हैं। क्योंकि भूमि स्थाई है। जिसे बढ़ाया नहीं जा सकता। श्रम की भी एक सीमा होती है। जबकि भौतिक पूंजी मानव द्वारा निर्मित की जाती है। पूंजी को अधिक संसाधनों की आवश्यकता पड़ती है। इसे भी एक निश्चित सीमा के पश्चात नहीं बढ़ाया जा सकता। जबकि मान मानव पूंजी को किसी भी सीमा तक बढ़ाया जा सकता है और इसके प्रतिफल को कई गुणा किया जा सकता है।

 

○ भौतिक पूंजी :-

भौतिक पूंजी का निर्माण, प्रबंधन एवं नियंत्रण मानव पूंजी अर्थात मानव संसाधन द्वारा किया जाता है। मानव पूंजी केवल स्वंय के लिए कार्य नहीं करता है। बल्कि अन्य साधनों जैसे भूमि, श्रम और भौतिक पूंजी को भी क्रियाशील बनाती है। इस तरह मानव पूंजी उत्पादन का एक अभाज्य (Indispensable) साधन है।

 

 

मानव संसाधन इसलिए महत्त्वपूर्ण है :- क्योंकि मनुष्य की योग्यताएँ ही भौतिक पदार्थों को मूल्यवान संसाधन बनाने में सहायता करती है। संसाधनों का सावधानीपूर्वक उपयोग ताकि न केवल वर्तमान पीढी ही नहीं, अपितु भावी पीढ़ियों की आवश्यकताएँ भी पूरी होती रहें

 

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