Diode-transistor logic DTL-डायोड-ट्रॉजिस्टर लॉजिक क्या है , TTL-ट्रॉजिस्टर-ट्रॉजिस्टर लॉजिक (Transistor-transistor logic)

लॉजिक गेट-लॉजिक संक्रियाओं की सर्किटों गेटा प्राप्ति  (LoGIC GATES-CIRCUIT REALISATION OF LOGIC FUNCTIONS)

लॉजिक सर्किटों में प्रयुक्त अवयवों के आधार पर अनेक रूपों में इनकी रचना
की जा सकती है। एकीकृत सर्किट (integrated circuits) में दो प्रमुख तकनीक
प्रयुक्त होती है, द्विध्रुवीय (bipolar) तथा धातु-ऑक्साइड अर्धचालक (MOS)।
द्विध्रुवीय तकनीक लघुमान एकीकरण (SSI, small scale integration) तथा
मध्यम मान एकीकरण (MSI, medium scale integratin) में अधिक उपयुक्त रहती है
जब कि धातु- ऑक्साइड – अर्धचालक (MOS, metal oxide semiconductor) तकनीक
बृहत्मान एकीकरण में अधिक प्रभावी है। यहाँ हम केवल द्विध्रुवीय-कुलों
(bipolar families) के कुछ सरल लॉजिक सर्किटों का ही वर्णन करेंगे।

द्विध्रुवीय वर्ग में तीन प्रमुख कुल हैं-

(i) DTL – डायोड-ट्रॉजिस्टर लॉजिक (Diode-transistor logic)।

(ii) TTL – ट्रॉजिस्टर-ट्रॉजिस्टर लॉजिक (Transistor-transistor logic) ।

(iii) ECL – उर्त्सक युग्मित लॉजिक (Emitter coupled logic)।

लॉजिक – सर्किट के लिये अनेक निवेश निर्धारित किये जा सकते हैं। निवेशों
की संख्या जो कि सर्किट से जोड़े जा सकते हैं उसका पंख निवेशांक (fan-in)
कहलाता है। इसी प्रकार एक लॉजिक सर्किट जितने अन्य सर्किटों को संचालित कर
सकता है उनकी संख्या पंख निर्गमांक (fan-out ) कहलाती है।

लॉजिक सर्किटों में सामान्यतः +5V व 0V धनात्मक लॉजिक (positive logic) में अवस्था 1 व 0 को निरूपित करते हैं। ऋणात्मक लॉजिक (negative logic) में – 5V व 0V अवस्था 1 व 0 को
निरूपित करते हैं। इस खण्ड में लॉजिक सर्किटों के विवेचन में हम धनात्मक लॉजिक
का ही उपयोग करेंगे।

(i) NOT या प्रतिलोमी (Inversion) संक्रिया – NOT या प्रतिलोमी सक्रिया
उभयनिष्ठ उत्सर्जक (CE) विधा में प्रयुक्त ट्रॉजिस्टर से प्राप्त की जा
सकती है। निवेश (आधार) पर उच्च वोल्टता की अवस्था 1 प्रयुक्त करने पर
ट्रॉजिस्टर संतृप्त क्षेत्र में कार्य करता है जिससे निर्गम (संग्राहक) पर
निम्न वोल्टता की अवस्था 0 प्राप्त होती है। इसके विपरीत निवेश पर अवस्था 0
आरोपित करने पर ट्रॉजिस्टर अंतक क्षेत्र में कार्य करता है व निर्गत
वोल्टता उच्च स्तर (अवस्था 1 ) में होती है।

NOT या प्रतिलोमी (Inversion) संक्रिया

लॉजिक-सर्किट चित्र (8.9-1) में प्रदर्शित है। जब V = 0 तो आधार खुले
सर्किट में होता है और ट्रॉजिस्टर अंतक क्षेत्र में कार्य करता है। इस
स्थिति में आधार वोल्टता

VBE = VBB /RB R+RB

यह वोल्टता ऋणात्मक होने से ट्रॉजिस्टर निश्चित ही अंतक क्षेत्र में होगा। जब Vi उच्च वोल्टता की अवस्था 1 में है तो आधार धारा IB इतनी चाहिये कि वह ट्रॉजिस्टर को संतृप्त
क्षेत्र में ले जा सके। यदि Icsal संतृप्त अवस्था में संग्राहक धारा है तो

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संतृप्त अवस्था में आधार-उत्सर्जक के मध्य विभवान्तर VBE (sat) नियत होता है 

(Si ट्रॉजिस्टर के लिये VBE sat = 0.8V)।

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इस प्रकार I1 व I2 के मान ज्ञात कर तत्पश्चात् Ig का मान प्राप्त कर समीकरण (1) की R, RB व Ri के उपयुक्त चयन से तुष्टि की जा सकती है

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(ii) AND गेट (AND Gate ) – डायोड लॉजिक (DL) व्यवस्था – AND सक्रिया
प्राप्त करने का सबसे सरल साधन डायोड – लॉजिक (DL) सर्किट है। यह सर्किट चित्र
( 8.9-2 ) में प्रदर्शित किया गया है। इस सर्किट में निवेशों की संख्या के
बराबर डायोड प्रयुक्त होते हैं। धनात्मक लॉजिक व्यवस्था में सब डायोडों के P
टर्मिनल एक प्रतिरोध R के गेटा वोल्टता स्रोत (+5V) के धना से जोड़ दिये
जाते हैं। डायोडों के N – टर्मिनल स्रोत- प्रतिरोधों R के गेटा निवेश
स्रोतों से जोड़ दिये जाते हैं।

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यदि कोई भी निवेश अवस्था स्तर [V(0)] पर होगा तो उस निवेश से जुड़ा
डायोड अग्रबायसित होगा जिससे वह डायोड चालन अवस्था में होगा और निर्गम पर
वोल्टता निम्न स्तर V(0) पर होगी। जब सब डायोडों के निवेश उच्च वोल्टता स्तर V(1) पर होंगे तो सब डायोडों पर उत्क्रमित बायस होगा और वे अचालन अवस्था में होंगे तथा निगम पर वोल्टता V = V(1) होगी। इस प्रकार AND संक्रिया सम्पन्न होगी।

ऋणात्मक लॉजिक व्यवस्था में डायोड उपरोक्त व्यवस्था के सापेक्ष उत्क्रमित होंगे।

बायोड-ट्रॉजिस्टर लॉजिक (DTL) व्यवस्था-इस व्यवस्था में डायोड
ध्रुवण-नियंत्रित (polarity) स्विच की भाँति कार्य करते हैं तथा ट्रॉजिस्टर
उत्सर्जक अनुगामी (emitter follower) की भाँति कार्य कर धारा लब्धि प्रदान
करते हैं। DTL AND सर्किट चित्र (8.9-3) में दिया गया है।

इस सर्किट में यदि कोई भी निवेश V(0) स्तर पर होगा तो उससे संबंधित डायोड
चालन अवस्था में होगा और ट्रॉजिस्टर के आधार पर वोल्टता शून्य होगी।
ट्रॉजिस्टर इस स्थिति में अंतक क्षेत्र में होगा और निर्गम पर वोल्टता
शून्य स्तर पर होगी ।

जब सब निवेश उच्च वोल्टता स्तर V ( 1 ) पर होंगे तो डायोडों पर बायस
उत्क्रमित होगा जिससे ट्रॉजिस्टर के आधार पर वोल्टता V ( 1 ) अर्थात् +5V
हो जायेगी। ट्रॉजिस्टर अब संतृप्त क्षेत्र में कार्य करेगा जिससे निर्गम पर
वोल्टता V = V(1) के बराबर होगी ।

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ट्राँजिस्टर-ट्रॉजिस्टर लॉजिक (TTL) व्यवस्था – दो निवेश के लिये
ट्रॉजिस्टर AND गेट चित्र ( 8.9–4) में दिखाया गया है। निवेश ट्रॉजिस्टर
के आधार पर होता है। प्रत्येक निवेश के लिये एक ट्रॉजिस्टर प्रयुक्त किया
जाता है। निवेश पर ट्रॉजिस्टर श्रेणीक्रम में जुड़े होते हैं जिससे एक भी
ट्रॉजिस्टर के ऑफ होने पर धारा प्रवाहित नहीं होती है।

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जब भी कोई निवेश शून्य वोल्टता स्तर पर होता है तो उस निवेश में संबंधित
ट्रॉजिस्टर अतंक क्षेत्र (cut off region) में आ जाता है तथा संग्राहक
धारा प्रवाहित नहीं होती है। इस स्थिति में बिन्दु Y पर वोल्टता धनात्मक हो
जाती  है व Q3 संतृप्त अवस्था में कार्य करता है जिससे निर्गम पर वोल्टता
निम्न स्तर पर अर्थात् अवस्था 0 प्राप्त होती है। जब सब निवेश (A व B
दोनों, चित्र (8.9–4 में) उच्च निवेश वोल्टता स्तर V(1) पर होते हैं तो
निवेश से संबंधित सब ट्रॉजिस्टर Q, व Q2 संतृप्त अवस्था में होते हैं व Y
पर वोल्टता लगभग शून्य प्राप्त होती है। इस स्थिति में Q3 अंतक क्षेत्र में
अर्थात् ऑफ अवस्था में आ जाता है जिससे निर्गम पर वोल्टता अवस्था 1 के
अनुरूप प्राप्त होती है।

(iii) OR गेट ( OR Gate ) – डायोड – लॉजिक (DL) व्यवस्था – डायोड लॉजिक
व्यवस्थता में जितने निवेश हों उतने ही संख्या में डायोड प्रयुक्त किये
जाते हैं। धनात्मक लॉजिक (positive logic) में प्रत्येक निवेश डायोड के P-
टर्मिनल से स्रोत प्रतिरोध के साथ जुड़ा होता है। डायोडों के N – टर्मिनल
परस्पर संबंधित होते हैं एक उपयुक्त प्रतिरोध R के गेटा भू- टर्मिनल से
जोड़ दिये जाते हैं। डायोडों के N-टर्मिनल व भू- टर्मिनल निर्गम टर्मिनल
होते हैं। गेट सर्किट चित्र ( 8.9-5 ) में दिखाया गया है।

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इस सर्किट में जब किसी भी एक निवेश पर या एक से अधिक निवेश पर उच्च
वोल्टता स्तर V ( 1 ) होगा तो डायोड अग्र बायसित हो जायेगा व V(1) वोल्टता
निर्गम प्रतिरोध R पर प्रकट होगी अर्थात् निर्गम पर अवस्था ( 1 ) प्राप्त
होगी। जब सब निवेश अवस्था 0 में होंगे तो निर्गम पर भी अवस्था 0 प्राप्त
होगी। इस प्रकार सर्किट में OR संक्रिया का संचालन होगा।

डायोड – ट्राँजिस्टर लॉजिक (DTL) व्यवस्था – DTL OR गेट चित्र (8.9-6 )
में दिखाया गया है। जब कोई एक अथवा अधिक निवेश उच्च वोल्टता स्तर V(1)
पर होते हैं तो डायोड से चालन गेटा ट्रॉजिस्टर के आधार पर वही वोल्टता
आरोपित हो जाती है व ट्रॉजिस्टर संतृप्त क्षेत्र में कार्य करता है। इस
अवस्था में उत्सर्जक प्रतिरोध RE पर अर्थात् निर्गम पर वोल्टता V(1) के
तुल्य प्राप्त होती है।

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जब सब निवेश शून्य वोल्टता पर ( अवस्था ( में) होते हैं तो सब डायोड
ऑफ अवस्था में रहते हैं व ट्रॉजिस्टर आधार पर भी 0 वोल्टता होती है। इस
स्थिति में ट्रॉजिस्टर अतंक क्षेत्र (cut off region) में कार्य करता है व
निर्गम पर वोल्टता निम्न स्तर अर्थात् स्तर पर प्राप्त होती है।

ट्राँजिस्टर-ट्राँजिस्टर लॉजिक (TTL) व्यवस्था – ट्रॉजिस्टर OR गेट
चित्र (8.9-7) में दिखाया गया है इसमें निवेशों के साथ जुड़े ट्रॉजिस्टर
समांतर क्रम में जोड़े जाते हैं। जिससे एक भी निवेश पर उच्च धनात्मक
वोल्टता V(1) होने पर उससे जुड़ा ट्रॉजिस्टर ऑन अवस्था में आ जाता है व
संतृप्त क्षेत्र में कार्य करने से बिन्दु Y पर वोल्टता लगभग शून्य हो जाती
है। इस स्थिति में निर्गम ट्रॉजिस्टर Q3 ऑफ अवस्था में आ जाता है व निर्गम
पर उच्च वोल्टता स्तर V(1) की अवस्था 1 प्राप्त होती है। जब सभी निवेश
शून्य वोल्टता स्तर पर होते हैं। तब बिन्दु Y धनात्मक वोल्टता पर होता है व
Q3 संतृप्त अवस्था में। अतः इस स्थिति में निर्गम पर निम्न वोल्टता स्तर
की अवस्था प्राप्त होती है।

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(iv) NAND गेट (NAND Gate) – AND गेट और NOT गेट अर्थात् प्रतिलोम
के संयोजन से NAND गेट प्राप्त होता है। DTL-NAND गेट चित्र (8.9–8)
में प्रदर्शित किया गया है।

कोई भी निवेश अवस्था 0 में होने पर AND गेट के निर्गम पर अवस्था 0
प्राप्त होती है व NAND गेट के निर्गम पर प्रतिलोमित अवस्था 1 प्राप्त
होती है। सभी निवेश अवस्था 1 में होने पर ही NAND गेट के निर्गम पर
अवस्था 0 प्राप्त होती है।

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चित्रानुसार किसी भी निवेश के शून्य वोल्टता पर होने पर डायोड के चालन
से बिन्दु Y व ट्रॉजिस्टर का आधार भी शून्य वोल्टता स्तर पर आ जाता है। यह
ट्रॉजिस्टर को ऑफ अवस्था में ला देता है जिससे निर्गम पर उच्च वोल्टता
प्राप्त होती है।

जब सब निवेश उच्च वोल्टता स्तर V(1) पर होते हैं तो डायोड अचालन अवस्था
में होते हैं। बिन्दु Y व ट्रॉजिस्टर का आधार धनात्मक वोल्टता पर आ जाता है
जिससे ट्रॉजिस्टर ऑन अवस्था (संतृप्त ) में आ जाता है व निर्गम पर निम्न वोल्टता स्तर ( अवस्था 0 ) प्राप्त होती है।

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डायोड-ट्रॉजिस्टर लॉजिक के स्थान पर प्रतिरोध– ट्रॉजिस्टर लॉजिक व्यवस्था
भी प्रयुक्त की जा सकती है। सर्किट चित्र (8.9–9) में दिया गया है। R व Rg
के उपयुक्त मान लेकर यह व्यवस्था संभव है कि किसी भी निवेश के पर आधार पर
वोल्टता शून्य या ऋणात्मक हो और जिससे ट्रॉजिस्टर अवस्था ) में आ जाये व
निर्गम पर उच्च वोल्टता स्तर V(1) प्राप्त हो। जब सभी निवेश उच्च वोल्टता
स्तर पर हों तब आधार पर धनात्मक वोल्टता हो जाती है जिससे ट्रॉजिस्टर
संतृप्त क्षेत्र में कार्य करता है व निर्गम पर निम्न वोल्टता की V(0)
अवस्था प्राप्त होती है।

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(v) NOR गेट ( NOR Gate ) – DTL- NOR गेट चित्र (8.9–10) में
प्रदर्शित है। NOR गेट के लिये किसी भी निवेश के उच्च वोल्टता स्तर V(1)
पर होने पर निर्गम पर V(0) अवस्था प्राप्त होती है। चित्रानुसार कोई भी
निवेश जब उच्च वोल्टता स्तर पर होता है तो ट्रॉजिस्टर का आधार धनात्मक
वोल्टता पर आ जाता है जिससे ट्रॉजिस्टर संतृप्त क्षेत्र में कार्य करता है।
इस अवस्था में निर्गम पर निम्न वोल्टता स्तर V(0) प्राप्त होता है।

सभी निवेश V(0) (निम्न वोल्टता स्तर) पर होने पर ट्रॉजिस्टर अंतक
क्षेत्र में कार्य करता है व निर्गम पर उच्च वोल्टता की V ( 1 ) अवस्था
प्राप्त होती है।

दो निवेश के लिये RTL NOR गेट चित्र (8.9-11) में दिखाया गया है। किसी
भी निवेश के V(1) स्तर पर होने पर उससे जुड़ा ट्रॉजिस्टर संतृप्त क्षेत्र
में कार्य करेगा। सब संग्राहक परस्पर संबंधित होने से निर्गम पर निम्न स्तर
V (0) प्राप्त होगा। जब सब निवेश V(0) अवस्था में होते हैं तभी सब
ट्रॉजिस्टर अंतक अवस्था में होंगे व निर्गम पर उच्च वोल्टता स्तर V (1)
प्राप्त होगा।

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