MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 15 ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास
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MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 15 ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास
MP Board Class 9th Social Science Chapter 15 पाठान्त अभ्यास
MP Board Class 9th Social Science Chapter 15 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
सही विकल्प चुनकर लिखिए
प्रश्न 1.
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में संसाधनों पर स्वामित्व होता है –
(i) निजी नियन्त्रण
(ii) सरकारी नियन्त्रण
(iii) (i) और (ii) दोनों
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(i) निजी नियन्त्रण
प्रश्न 2.
सिंचाई सुविधाएँ बढ़ाने के लिए किस शासक ने नहरें प्रमुखता से बनवायी? (2015)
(i) मोहम्मद तुगलक
(ii) अकबर
(iii) शाहजहाँ
(iv) हुमायूँ।
उत्तर:
(i) मोहम्मद तुगलक
प्रश्न 3.
अंग्रेजों के आगमन के पूर्व ग्रामीण अर्थव्यवस्था थी (2014)
(i) मुद्रा आधारित
(ii) आत्मनिर्भर
(iii) आयात पर निर्भर,
(iv) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(ii) आत्मनिर्भर
प्रश्न 4.
2001 में भारत में ग्रामीण जनसंख्या का प्रतिशत था
(i) 21.4
(ii) 32.8
(iii) 65.1
(iv) 72.2
उत्तर:
(iv) 72.2
प्रश्न 5.
भारत में भूमि सुधार कब प्रारम्भ किया गया?
(i) स्वतन्त्रता के पश्चात्
(ii) अंग्रेजों के आगमन से पूर्व
(iii) वैदिक काल में
(iv) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(i) स्वतन्त्रता के पश्चात्
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
- …………. एक प्रणाली है जिसके द्वारा मनुष्य जीविकोपार्जन करता है।
- आजकल वर्षभर में प्रमुख रूप से ………… फसलें ली जाती है।
- अंग्रेजों के आगमन से पूर्व कृषि का उद्देश्य ………… था।
- …………. ने जमींदारी प्रथा चलाई। (2016)
उत्तर:
- अर्थव्यवस्था
- तीन फसलें
- जीवन निर्वाह
- लॉर्ड कार्नवालिस।
सत्य/असत्य
प्रश्न 1.
फसलों के उचित बिक्री मूल्य हेतु सरकार न्यूनतम मूल्य निर्धारण करती है।
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 2.
अंग्रेजों के आगमन के बाद गाँव आत्मनिर्भर हो गए। (2018)
उत्तर:
असत्य
प्रश्न 3.
अनार्थिक खेतों को मिलाकर चकबन्दी के द्वारा आर्थिक खेत बनाए।
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 4.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद राष्ट्रीय आय में कृषि का योगदान बढ़ता जा रहा है।
उत्तर:
असत्य
MP Board Class 9th Social Science Chapter 15 अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
अर्थव्यवस्था से क्या आशय है?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था से आशय आर्थिक संसाधनों के स्वामित्व से है। इसमें वह सम्पूर्ण क्षेत्र सम्मिलित किया जाता है जहाँ उसकी आर्थिक गतिविधियाँ संचालित होती हैं।
प्रश्न 2.
अंग्रेजों के आगमन के पूर्व भारत के गाँव किस प्रकार के थे?
उत्तर:
अंग्रेजों के आगमन के पूर्व भारत के गाँव आत्मनिर्भर, समृद्ध एवं खुशहाल थे।
प्रश्न 3.
गाँवों की आत्मनिर्भरता से क्या आशय है? (2011)
उत्तर:
आत्मनिर्भरता से आशय यह है कि ग्रामवासी अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति अपने गाँव में ही पूर्ण कर सकें।
प्रश्न 4.
प्राचीन समय में गाँव की कार्यशील जनसंख्या के प्रमुख अंग कौनसे थे ?
उत्तर:
प्राचीन समय में गाँव की कार्यशील जनसंख्या या समुदाय के तीन प्रमुख अंग थे-कृषक, दस्तकार तथा ग्राम अधिकारी।
MP Board Class 9th Social Science Chapter 15 लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
अंग्रेजों के आगमन से पूर्व भारतीय ग्रामीण कार्यशील समुदाय की संरचना बताइए।
उत्तर:
प्राचीन समय में गाँव की कार्यशील जनसंख्या या समुदाय के तीन प्रमुख अंग थे-कृषक, दस्तकार तथा ग्राम अधिकारी।
(1) कृषक:
ग्रामीण अर्थव्यवस्था का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग कृषक होता है। प्राचीन समय में प्रत्येक कृषक का गाँव में अपना घर तथा भूमि में हिस्सा होता था। वे साधन सम्पन्न होते थे। खेती का उद्देश्य प्रायः जीवन निर्वाह होता था।
(2) दस्तकार :
गाँव में बढ़ई, लुहार, कुम्हार, कारीगर, मोची, जुलाहे आदि सभी प्रकार के दस्तकार पाये जाते थे। ये ग्रामीण समुदाय की विभिन्न आवश्यकताओं को गाँव में ही पूरा कर देते थे। उनके कार्यों का पारिश्रमिक अनाज या वस्तु के रूप में दिया जाता था।
(3) ग्राम अधिकारी:
ग्राम अधिकारी मुख्यत: तीन प्रकार के होते थे –
- मुखिया गाँव का प्रमुख अधिकारी होता था। यह किसानों से लगान की वसूली कर शासक को देने के लिए उत्तरदायी था।
- मालगुजारी का रिकार्ड रखने वाला।
- कोटवार जो आपराधिक एवं अन्य महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ शासक को प्रदान करता था।
प्रश्न 2.
अंग्रेजों के आगमन के पश्चात् कृषि भूमि का हस्तान्तरण क्यों होने लगा? (2009, 12, 13)
उत्तर:
अंग्रेजों ने लगभग 200 वर्षों तक हमारे देश पर शासन किया। उन्होंने भारत एवं भारतीयों का हर प्रकार से शोषण किया। उन्होंने ऐसी नीतियाँ अपनाई जिसके कारण खुशहाल भारत गरीबी और भुखमरी से जूझने लगा। कृषि एवं उद्योग पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। कृषकों में निर्धनता व्याप्त होने के कारण कृषक ऋण लेकर अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने लगे। किन्तु किन्हीं कारणोंवश ऋणों को वापस न कर पाने के कारण वे ऋणों के बोझ तले दबने लगे। समय पर ऋण चुका नहीं पाने के कारण साहूकार व महाजन ऋण के बदले उनकी जमीन पर कब्जा करने लगे। इस प्रकार कृषि भूमि का हस्तान्तरण कृषकों से साहूकारों एवं महाजनों को होने लगा। परिणामस्वरूप कृषक भूमिहीन एवं बेघर होने लगे। अतः स्पष्ट है कि अंग्रेजों ने जो जमींदारी प्रथा चलाई, उसका कृषि एवं कृषकों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा।
प्रश्न 3.
प्राचीन भारत में वस्तु विनिमय प्रणाली क्यों प्रचलित थी?
(2008, 09, 12)
उत्तर:
प्राचीन भारत में मनुष्य की आवश्यकताएँ सीमित होती थीं। परन्तु वह अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति, स्वयं नहीं कर सकता था। उसे अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अन्य व्यक्तियों पर निर्भर रहना पड़ता था। उस समय मुद्रा का चलन नहीं था। सभी ग्रामीण दस्तकारों तथा महाजनों से अपनी-अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ प्राप्त कर लेते थे और बदले में अनाज या फिर अन्य वस्तुएँ देते थे। इसी कारण इस प्रणाली को वस्तु विनिमय प्रणाली कहा गया। पण्डित, वैद्य, नाई, धोबी सभी व्यक्तियों की सेवाओं का भुगतान अनाज या अन्य वस्तुओं के रूप में किया जाता था। अन्य शब्दों में “वस्तु विनिमय प्रणाली, विनिमय की वह प्रणाली होती थी जिसमें वस्तु के बदले वस्तु या सेवा का प्रत्यक्ष आदान-प्रदान होता था। इसमें मुद्रा का प्रयोग नहीं किया जाता था।”
प्रश्न 4.
जनसंख्या का गाँव से शहरों की ओर पलायन क्यों होने लगा? समझाइए। (2008, 09, 13)
अथवा
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् जनसंख्या का गाँव से शहरों की ओर पलायन क्यों होने लगा? समझाइए। (2009)
उत्तर:
प्राचीन समय में सीमित आवश्यकताओं व यातायात व संचार के साधनों के अभाव में ग्रामीण जनसंख्या गाँवों में ही निवास करती थी, वह समृद्ध और खुशहाल थी। वह अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति गाँव में ही कर लेती थी। परन्तु अंग्रेजों के आगमन के पश्चात् खुशहाल व समृद्ध ग्रामीण जनता गरीबी व भुखमरी से जूझने लगी। ग्रामीण बेरोजगार हो गये। कृषक ऋणों के बोझ तले दब गये, उनकी भूमि उनसे छिन गयी। वे भूमिहीन और बेघर हो गये। भूमि की उत्पादकता कम हो गयी। अंग्रेजों द्वारा चलाई गई जमींदारी प्रथा से कृषि एवं कृषकों पर बुरा असर पड़ा। इन सभी बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण ग्रामीण जनता शहरों की ओर पलायन करने लगी। 1951 में कुल जनसंख्या में ग्रामीण जनसंख्या का प्रतिशत 82.7 था जो वर्ष 2011 में 68.84 प्रतिशत रह गया। जबकि शहरी जनसंख्या का प्रतिशत 1951 में 17:3 था जो सन् 2011 में बढ़कर 31.16 हो गया।
आँकड़ों से स्पष्ट होता है कि बुनियादी सुविधाओं के अभाव में ग्रामीण जनसंख्या शहरों की ओर पलायन करने लगी है।
MP Board Class 9th Social Science Chapter 15 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत की प्राचीन ग्रामीण अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ बताइए। (2009, 16)
अथवा
अंग्रेजों के आगमन से पूर्व भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था की कोई पाँच विशेषताएँ लिखिए। (2017)
उत्तर:
प्राचीन काल में देश की अधिकांश जनसंख्या गाँवों में रहती थी। वस्तुतः गाँव ही अर्थव्यवस्था की प्रमुख इकाई होते थे। उस समय गाँव आत्मनिर्भर, समृद्ध एवं खुशहाल थे। प्राचीन ग्रामीण अर्थव्यवस्था आज के गाँवों से बहुत भिन्न थी। इसकी विशेषताओं को निम्न प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं –
(1) कार्यशील समुदाय की संरचना :
प्राचीन ग्रामीण अर्थव्यवस्था में गाँव की कार्यशील जनसंख्या के प्रमुख तीन प्रकार होते थे-कृषक, दस्तकार तथा ग्राम अधिकारी।
(2) आत्मनिर्भरता :
प्राचीन समय में गाँव आत्मनिर्भर एवं स्वावलम्बी हुआ करते थे। ग्रामवासी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति गाँव में ही कर लेते थे। क्योंकि उस समय ग्रामीण जनता की आवश्यकताएँ सीमित होती थीं और यातायात और संचार के साधनों का अभाव होता था।
(3) वस्तु विनिमय प्रणाली :
प्राचीन अर्थव्यवस्था में वस्तु विनिमय प्रणाली का प्रचलन था। सभी ग्रामवासी दस्तकारों व महाजनों से अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ प्राप्त करते थे। इसके बदले उन्हें अनाज और वस्तुएँ दी जाती थीं। पण्डित, वैद्य, नाई, धोबी सभी की सेवाओं का पारिश्रमिक उस समय में अनाज या वस्तुओं के रूप में किया जाता था।
(4)श्रम की गतिहीनता :
प्राचीन अर्थव्यवस्था में परिवहन के साधनों के अभाव के कारण श्रम गतिहीन होता था। परिवहन के साधनों के अतिरिक्त जाति प्रथा, भाषा एवं खान-पान की कठिनाई आदि का प्रभाव भी श्रम की गतिहीनता पर पड़ता था। फलस्वरूप ग्रामवासी अपने गाँव में ही रहना अधिक पसन्द करते थे।
(5) सरल श्रम विभाजन :
उस काल में ग्रामवासियों में आर्थिक क्रियाएँ बँटी हुई थीं। कार्य का बँटवारा दो आधार पर किया जाता था –
- वंशानुगत या परम्परा के आधार पर; जैसे-कृषि एवं पशुपालन व्यवसाय।
- जातिगत परम्परा के आधार पर; जैसे-लुहार, सुनार, बढ़ई, मोची, नाई, धोबी आदि।
(6) बाह्य दुनिया से सम्पर्क का अभाव :
प्राचीन समय में हर गाँव अपने आप में सम्पूर्ण इकाई था। जहाँ प्रत्येक व्यक्ति अपनी समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति कर लेता था। बाहरी दुनिया से उसका किसी प्रकार का सम्पर्क नहीं रहता था।
(7) राज्य के प्रति उदासीनता :
ग्रामवासियों का मुख्य उद्देश्य जीवन निर्वाह करना होता था। उनका राज्य की गतिविधियों की ओर कोई विशेष रुझान नहीं होता था।
प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद ग्रामीण अर्थव्यवस्था में क्या परिवर्तन हुए एवं विकास हेतु शासन ने क्या प्रयास किए? लिखिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद ग्रामीण अर्थव्यवस्था में निम्न परिवर्तन हुए
(1) उपलब्ध भूमि के आधार पर समुदाय की संरचना :
वर्तमान में कृषकों को उनके पास उपलब्ध भूमि के स्वामित्व के आधार पर निम्न भागों में बाँट सकते हैं –
- बड़े कृषक
- मंझोले कृषक
- छोटे कृषक तथा
- भूमिहीन कृषक।
(2) बहुविध फसलें :
फसलें तीन प्रकार की होती हैं-रबी, खरीफ एवं जायद। रबी जाड़ों की फसल, खरीफ वर्षाकाल की फसल और जायद गर्मी की फसल होती है। वर्तमान में परम्परागत फसलों के अतिरिक्त कुछ नगदी फसलों का प्रचलन भी हो गया है, जैसे-फूलों की खेती, तिलहन की खेती आदि।
(3) जनसंख्या का शहरों की ओर पलायन :
गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, बुनियादी सुविधाओं की कमी आदि अनेक कारणों से ग्रामीण जनता शहरों की ओर पलायन कर रही है। 1951 में कुल जनसंख्या में ग्रामीण जनसंख्या का प्रतिशत 82.7 प्रतिशत था जो वर्ष 2011 में 68.84 प्रतिशत रह गया है। जबकि शहरी जनसंख्या का प्रतिशत 1951 में 17:3 था जो 2011 में बढ़कर 31.16 हो गया। आँकड़ों से स्पष्ट होता है कि ग्रामीण जनसंख्या का शहरों की ओर पलायन होने लगा है।
(4) मौद्रिक प्रणाली का प्रादुर्भाव :
गाँवों में प्राचीन समय में प्रचलित वस्तु विनिमय प्रणाली अब लुप्त हो गयी है। वर्तमान में सभी जगह मुद्रा का प्रयोग होने लगा है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी विनिमय की क्रय-विक्रय की मौद्रिक प्रणाली पूरी तरह लागू हो गयी है।
(5) अपर्याप्त संचार एवं आवागमन सुविधाएँ :
आज प्रत्येक गाँव को संचार एवं परिवहन के साधनों के माध्यम से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है, परन्तु सड़कें कच्ची होने के कारण वर्षा के समय बहुत से गाँवों का अपने आस-पास के क्षेत्रों में सम्पर्क टूट जाता है। वर्षा के समय ट्रक, बस, रेल, ट्रैक्टर, जीप, मोटर साइकिल व साइकिल का प्रयोग होता है। वर्तमान में अधिकांश गाँव टेलीफोन एवं दूरदर्शन के माध्यम से भी जुड़ गये हैं।
(6) सहायक एवं कुटीर उद्योगों का विकास :
स्वतन्त्रता के पश्चात् ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ एवं उन्नत बनाने के उद्देश्य से कुटीर एवं लघु उद्योगों के विकास पर अत्यधिक ध्यान दिया गया है। कृषक और ग्रामवासी अपने खाली वक्त में इन उद्योगों के माध्यम से अपनी आय में वृद्धि कर पा रहे हैं।
(7) तकनीकी उन्नति :
गाँवों में किसानों ने पुरानी तकनीक को छोड़कर नई को अपनाना शुरू कर दिया है। अब सिंचाई के लिए रहट की जगह पम्प का, हल की जगह हैरो व बैलगाड़ी की जगह ट्रक एवं ट्रैक्टर-ट्राली का प्रयोग किया जाने लगा है। किसान बड़ी मशीनों का प्रयोग भी करने लगे हैं। किसानों द्वारा थ्रेशर का प्रयोग करना अब आम बात हो गयी है।
(8) शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार-आधुनिक ग्रामवासी शिक्षा एवं स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होते जा रहे हैं। गाँव में प्राथमिक, पूर्व माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक सरकारी स्कूल खुल गये हैं। लड़कों के साथ लड़कियाँ भी स्कूल व कॉलेजों में पढ़ने लगी हैं। गाँवों में चिकित्सा की भी पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध हो गई हैं।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास हेतु शासन के प्रयास
सरकार द्वारा किये गये प्रयासों की विवेचना निम्न प्रकार है –
(1) भूमि सुधार :
- सरकार ने जमींदारी प्रथा का उन्मूलन एवं चकबन्दी करके अनार्थिक जोतों को लाभप्रद बनाया है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि बहाल करने और उसके हस्तान्तरण पर रोक लगाने के लिए सरकारी बंजर भूमि, भूदान से प्राप्त भूमि, निर्धारित अधिकतम सीमा से प्राप्त भूमि आदि का वितरण किया गया है।
- सरकार द्वारा फसल बीमा योजना शुरू की गयी है।
- गाँवों में वित्त आपूर्ति हेतु ग्रामीण बैंकों तथा सरकारी बैंकों की स्थापना की गयी है।
- फसलों की उचित बिक्री हेतु सरकार द्वारा न्यूनतम मूल्य का निर्धारण किया गया है। साथ ही फसलों के विपणन एवं भण्डारण की सुविधा भी मुहैया करवायी है।
- केन्द्र सरकार की प्रधानमन्त्री सड़क योजना के माध्यम से प्राचीन इलाकों को बारहमासी सड़कों से जोड़ने का लक्ष्य रखा है।
(2) आवास स्वच्छता एवं स्वास्थ्य :
- स्वास्थ्यप्रद आवास व्यवस्था हेतु सरकार ने इन्दिरा आवास योजना चलाई है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता हेतु केन्द्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम चलाया गया है।
- गाँवों में परिवार कल्याण केन्द्र एवं आँगनबाड़ी आदि के माध्यम से खान-पान, स्वास्थ्य शिक्षा सम्बन्धी जागरूकता का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है।
- स्कूलों में सफाई, पेयजल एवं शिक्षण की बुनियादी आवश्यकताओं पर भी ध्यान दिया जा रहा है।
(3) कुटीर एवं लघु उद्योग :
- अखिल भारतीय हस्त करघा उद्योग बोर्ड, भारतीय कुटीर उद्योग, खादी ग्रामोद्योग आदि संस्थाओं द्वारा उद्योगों की समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करना।
- कुटीर व लघु उद्योगों को वित्तीय सहायता प्रदान करने हेतु लघु उद्योग विकास बैंक की स्थापना करना।
- विपणन में सहायता प्रदान करने वाले सरकारी विभागों द्वारा इनके उत्पादों की खरीद सुनिश्चित की जाती है। इसके अतिरिक्त देश-विदेश में मेले, प्रदर्शनी व हाट आदि का भी अयोजन किया जाता है।
- उद्योगों को तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित किये गये हैं।
- इन उद्योगों को संरक्षण प्रदान करके बड़े उद्योगों से इनकी प्रतिस्पर्धा को समाप्त किया गया है।
उपर्युक्त सरकारी प्रयासों द्वारा गाँवों के विकास का प्रयास किया जा रहा है। हमें राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के आदर्शों को आधार बनाते हुए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाना है।
प्रश्न 3.
कुटीर एवं लघु उद्योग भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था को उन्नत बनाने में किस प्रकार सहायक हैं? समझाइए। (2015)
उत्तर:
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को उन्नत बनाने में कुटीर एवं लघु उद्योगों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। गाँधीजी के अनुसार, “भारत का मोक्ष उसके कुटीर उद्योग-धन्धों में निहित है।” कुटीर और लघु उद्योग भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास की आधारशिला है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में लघु व कुटीर उद्योगों का औचित्य –
(1) आर्थिक विकास :
प्रत्येक गाँव में स्थानीय कच्चे माल की उपलब्धता के आधार पर छोटे-छोटे घरेलू उद्योग विकसित किये जा सकते हैं। जिससे रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई है और कृषक व ग्रामवासी अपने खाली समय में इन उद्योगों के माध्यम से अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं। आय में वृद्धि होने से उनका जीवन-स्तर भी ऊँचा हो जाएगा।
(2) रोजगार :
गाँधीजी के अनुसार ग्रामोद्योग का अत्यधिक विकास कर हम राष्ट्र की महान् सेवा कर सकते हैं। केवल कुटीर एवं लघु उद्योग ही कम पूँजी के साथ अधिक श्रमिकों को रोजगार प्रदान कर सकते हैं। प्रच्छन्न बेरोजगारी और मौसमी बेरोजगारी के समाधान में लघु एवं कुटीर उद्योगों का विशेष महत्त्व है। इन उद्योगों को श्रमिकों के घरों पर ही बहुत कम पूँजी लगाकर खोला जा सकता है और आवश्यकतानुसार बन्द भी किया जा सकता है; जैसे-दियासलाई, मधुमक्खी पालन, साबुन निर्माण आदि। इस प्रकार स्पष्ट है कि लघु व कुटीर उद्योग बड़े उद्योगों की अपेक्षा ग्रामवासियों की बेरोजगारी दूर करने में सहायक होते हैं।
(3) आय वितरण :
कुटीर एवं लघु उद्योगों का स्वामित्व अधिक से अधिक लोगों के हाथ में होता है, जिससे आय का वितरण समान होता है। इन उद्योगों में श्रमिकों का शोषण भी नहीं होता है। आज देश में धनी और निर्धन के बीच एक बहुत बड़ी खाई है जो वृहत् उद्योगों के बढ़ने के साथ बढ़ती जा रही है।
(4) भारतीय ग्रामीण व्यवस्था के अनुरूप :
भारत कृषि प्रधान राष्ट्र है यहाँ की लगभग 68% जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती है, परन्तु कृषकों को वर्षपर्यन्त कार्य नहीं मिल पाता है। इस दृष्टि से भी लघु व कुटीर उद्योग अत्यन्त उपयोगी हैं।
(5) कृषि पर जनसंख्या का भार कम करना :
भारत में कृषि पर जनसंख्या का भार निरन्तर बढ़ता जा रहा है। प्रतिवर्ष लगभग 30 लाख व्यक्ति खेती पर आश्रित होने के लिए बढ़ जाते हैं। जिससे कृषि का विभाजन और अपखण्डन होता है। इस समस्या के समाधान की दृष्टि से लघु व कुटीर उद्योग बहुत उपयोगी हैं।
(6) कलात्मक वस्तुओं का निर्माण :
भारत की परम्परागत कलात्मक वस्तुओं के निर्माण में कुटीर व लघु उद्योगों का विशेष महत्त्व है। इन वस्तुओं के निर्यात से विदेशी मुद्रा की प्राप्ति भी होती है।
(7) तकनीकी ज्ञान की कम आवश्यकता :
पूँजी की भाँति भारत में तकनीकी ज्ञान का अभाव है। लघु उद्योगों व कुटीर उद्योगों को तकनीकी ज्ञान की बहुत कम आवश्यकता पड़ती है। इस दृष्टि से लघु व कुटीर ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
(8) शीघ्र उत्पादक उद्योग :
लघु व कुटीर उद्योग शीघ्र उत्पादक उद्योग होते हैं अर्थात् इन उद्योगों में विनियोग करने और उत्पादन प्रारम्भ होने में अधिक समय नहीं लगता है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि कुटीर व लघु उद्योगों का ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान है। सरकार ने भी इन क्षेत्रों में इन्हें विकसित करने के अनेक प्रयास किये हैं।
प्रश्न 4.
प्राचीन एवं आधुनिक ग्रामीण अर्थव्यवस्था का तुलनात्मक अध्ययन कीजिए। (2009, 14, 16)
उत्तर:
प्राचीन एवं आधुनिक ग्रामीण अर्थव्यवस्था का तुलनात्मक अध्ययन
इस प्रकार स्पष्ट होता है कि वर्तमान में गाँव व ग्रामीणों का पहले से अधिक विकास हुआ। ये पहले की अपेक्षा अधिक जागरूक हो गये हैं। वे अपना और अपने परिवार के कल्याण के बारे में सोचते हैं। वे शिक्षा, प्रशिक्षण, स्वास्थ्य, स्वच्छता, राजनीति के बारे में जानने समझने लगे हैं।
प्रश्न 5.
एक आदर्श ग्राम की विशेषताएँ क्या-क्या होती हैं ? लिखिए। (2008, 14, 15, 17)
अथवा
एक आदर्श ग्राम की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए। (कोई पाँच) (2010, 18)
उत्तर:
देश को अग्रणी बनाने के लिये ग्राम सुधार आवश्यक है। यदि ऐसा हो जाए तो भारत एक समृद्ध, सम्पन्न एवं खुशहाल देश बन सकता है। हमें अपने गाँवों को आदर्श बनाने के प्रयास करने होंगे। एक आदर्श ग्राम की अग्रलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए –
- उन्नत कृषि व्यवस्था :
कृषि के विकास हेतु चकबन्दी, सामूहिक कृषि का प्रयोग, उपज में वृद्धि हेतु जैविक तथा रासायनिक उर्वरक, कृषि के लिये उन्नत बीजों का प्रयोग एवं सिंचाई की आधुनिक सुविधाओं का प्रयोग किया जाना चाहिए। उपज के भण्डारण हेतु उपयुक्त व्यवस्था एवं सहकारिता एवं शासकीय सहायता से उपज की बिक्री की व्यवस्था होनी चाहिए। - आवासीय सुविधाएँ :
गाँवों में आवास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। मकान साफ-सुथरे होने चाहिए। साथ ही घर में स्नानगृह, शौचालय आदि की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। जानवरों के लिये अलग बाड़ा एवं गोबर से बायोगैस बनाने की व्यवस्था भी होनी चाहिए। - पेयजल व्यवस्था :
ग्रामवासियों के लिये स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था की जानी चाहिए। इसके लिये कुएँ, तालाब, बाबड़ी आदि का जीर्णोद्वार होना चाहिए। ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि उसमें कचरा आदि न जा पाये। ग्रामवासियों को भू-जल संवर्द्धन का महत्त्व समझाना चाहिए। - शिक्षा का व्यवस्था :
गाँव में प्रत्येक बच्चे को प्राथमिक शिक्षा देने का प्रयास करना चाहिए। बालिका शिक्षा के प्रति विशेष जागरूकता अपनानी चाहिए। गाँवों में परम्परागत शिक्षा के साथ-साथ प्रौढ़ । शिक्षा की व्यवस्था भी होनी चाहिए। - स्वास्थ्य सुविधाएँ :
प्रत्येक गाँव में प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र व अनुभवी चिकित्सक की व्यवस्था होनी चाहिए। चिकित्सा केन्द्र में आवश्यकतानुसार दवाइयों का प्रबन्ध होना चाहिए जिससे ग्रामवासियों को कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़े। साथ ही शासन की विभिन्न स्वास्थ्य सम्बन्धी योजनाओं का लाभ ग्रामवासी प्राप्त कर सकें। - परिवार व संचार सुविधाएँ :
गाँवों में परिवहन व संचार साधनों की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। परिवहन व्यवस्था हेतु पक्की सड़कें होनी चाहिए जो आस-पास के कस्बों और गाँवों को जिला मुख्यालय से जोड़े। टेलीफोन, डाकघर तथा इण्टरनेट की सुविधा भी उपलब्ध होनी चाहिए। - ऊर्जा एवं पर्यावरण जागरूकता :
गाँवों में बिजली की व्यवस्था होनी चाहिए। सम्भव हो तो वैकल्पिक ऊर्जा का प्रयोग की समय-समय पर करना चाहिए। ग्रामवासियों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करनी चाहिए। वृक्षों के उपयोग व वृक्षारोपण के प्रति ग्रामीणों को सक्रिय रहना चाहिए जिससे गाँवों में हरियाली व्याप्त हो सके। - औद्योगिक विकास :
गाँवों में कृषि पर आधारित उद्योगों का विकास होना चाहिए, जैसे-डेयरी उद्योग, कुक्कुट उद्योग आदि। गाँवों में ऐसे उद्योगों का विकास होने से ग्रामवासियों को उन्हीं के गाँव में रोजगार प्राप्त हो सकता है। जिससे उनकी आय में वृद्धि हो सकती है। - वित्तीय सुविधाएँ :
गाँवों में वित्तीय सुविधाओं के लिये ग्रामीण बैंक व सहकारी बैंक आदि की सुविधा होनी चाहिए। गाँवों में स्वसहायता बचत समूहों के निर्माण के प्रति ग्रामीणों में जागरूकता पैदा करके उनकी बचत की आदत में वृद्धि करायी जा सकती है। - प्रशासनिक व्यवस्था :
गाँवों में पंचायत व्यवस्था होनी चाहिए। ग्राम पंचायत के सदस्यों व सरपंच को गाँव के विकास के प्रति जागरूक होना चाहिए। जिससे गाँवों में स्वच्छता, पेयजल व्यवस्था, स्वास्थ्य व सुरक्षा सम्बन्धी व्यवस्थाएँ ग्रामवासियों को प्राप्त हो सकें। ग्राम पंचायत में प्रशासकीय पारदर्शिता बढ़ानी चाहिए।
प्रश्न 6.
किसी गाँव को आत्मनिर्भर व विकासशील बनाने के लिये क्या-क्या प्रयास करने की आवश्यकता होती है? लिखिए। (2009)
उत्तर:
किसी गाँव को आत्मनिर्भर व विकासशील बनाने के लिये निम्नलिखित प्रयासों की आवश्यकता होती है –
- सिंचाई के साधनों का विकास :
गाँवों में कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिये सिंचाई के साधनों पर ध्यान देना आवश्यक है। इसके लिये नहरों, कुओं, तालाबों एवं नलकूपों की व्यवस्था की जानी चाहिए। - प्रशिक्षण कार्यक्रम एवं जन जागृति के प्रयास :
ग्रामीणों को जैविक खाद बनाने की विधि व उसके महत्त्व से परिचित कराने हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाये जाने चाहिए तथा गाँवों में स्वच्छता बनाये रखने के लिये जन जागृति के प्रयास किये जाने चाहिए। - भण्डार गृहों की स्थापना :
गाँवों में कृषि उत्पादन को सुरक्षित रखने के लिये भण्डार गृहों की स्थापना की जाए जिससे उनकी फसल खराब न हो पाये। - पशुओं की दशा में सुधार :
गाँवों में पशुओं के महत्त्व को देखते हुए उनकी हीन दशा सुधारने के लिये अच्छे व पौष्टिक चारे, पेयजल, चिकित्सा एवं नस्ल सुधारने हेतु पर्याप्त प्रयास करने चाहिए। - कृषि आधारित उद्योगों का विकास :
कृषि आश्रित लघु उद्योगों; जैसे-डेयरी उद्योग, मुर्गी पालन उद्योग आदि के विकास पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए। इससे रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि होगी। - अनावश्यक व्यय को रोकना :
न्यूनतम आय होने पर भी ग्रामवासी पारिवारिक व सामाजिक कार्यक्रमों पर अधिक खर्च करते हैं। उदाहरणार्थ-विवाह कार्यों पर बीस हजार से दस लाख की राशि, शोक कार्यों पर दस से चालीस हजार की राशि व त्यौहारों पर 500 से 2000 की राशि खर्च कर दी जाती है। अतः व्यर्थ के व्ययों को रोकने के प्रयास किये जाने चाहिए तथा ग्राम पंचायत में इसकी चर्चा की जानी चाहिए। - बचत की प्रवृत्ति को बढ़ावा :
गाँवों में स्वसहायता बचत समूहों के निर्माण के प्रयास किये जा सकते हैं। जिससे ग्रामवासियों में बचत की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिले। - शिक्षा का प्रसार :
ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के प्रसार एवं प्रचार की आवश्यकता है। जिससे किसानों को रूढ़िवादिता, अन्धविश्वासों के विचारों से उबारा जा सके। आकाशवाणी और टेलीविजन इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
MP Board Class 9th Social Science Chapter 15 अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न
MP Board Class 9th Social Science Chapter 15 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
बहु-विकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
समाजवादी अर्थव्यस्था में संसाधनों पर कैसा नियन्त्रण होता है?
(i) निजी नियन्त्रण
(ii) सरकारी नियन्त्रण
(iii) (i) और (ii) दोनों
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ii) सरकारी नियन्त्रण
प्रश्न 2.
मिश्रित अर्थव्यवस्था में संसाधनों पर किस प्रकार का नियन्त्रण पाया जाता है?
(i) निजी नियन्त्रण
(ii) सरकारी नियन्त्रण
(iii) (i) और (ii) दोनों
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(i) निजी नियन्त्रण
प्रश्न 3.
भारतीय अर्थव्यवस्था है
(i) पूँजीवादी
(ii) समाजवादी
(iii) मिश्रित
(iv) साम्यवादी।
उत्तर:
(iii) मिश्रित
प्रश्न 4.
अकबर के शासन काल में सही ढंग से भू-मापन किसने कराया? (2009)
(i) मोहम्मद तुगलक
(ii) टोडरमल
(iii) तानसेन
(iv) शाहजहाँ।
उत्तर:
(ii) टोडरमल
प्रश्न 5.
बड़े कृषक किसे कहते हैं?
(i) जिसके पास 2 से लेकर 10 हेक्टेअर तक भूमि है
(ii) जिसके पास 2 हेक्टेयर से भी कम भूमि है
(iii) जिसके पास 20 हेक्टेयर से अधिक भूमि है
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(i) जिसके पास 2 से लेकर 10 हेक्टेअर तक भूमि है
प्रश्न 6.
छोटे कृषकों की श्रेणी में वे कृषक आते हैं
(i) जिनके पास 2 से लेकर 10 हेक्टेअर तक भूमि है
(ii) जिनके पास 2 हेक्टेअर से भी कम भूमि है
(iii) जिनके पास 20 हेक्टेअर से अधिक भूमि है
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ii) जिनके पास 2 हेक्टेअर से भी कम भूमि है
प्रश्न 7.
जमींदारी प्रथा के जन्मदाता कौन थे?
(i) लॉर्ड कार्नवालिस
(ii) लॉर्ड कर्जन
(iii) लॉर्ड माण्टबेटन
(iv) लॉर्ड लेनिन।
उत्तर:
(i) लॉर्ड कार्नवालिस
प्रश्न 8.
सर्वप्रथम बंगाल में जमींदारी प्रथा किस वर्ष में प्रारम्भ की गई?
(i) 1870
(ii) 1875
(iii) 1793
(iv) 17451
उत्तर:
(iii) 1793
रिक्त स्थान की पूर्ति
- समाजवादी अर्थव्यवस्था में संसाधनों पर ……… नियन्त्रण होता है।
- वस्तुओं का, वस्तुओं के बदले में लेन-देन …………. कहलाता है।
- छोटे कृषक वे होते हैं जिनके पास ………… से भी कम भूमि है।
उत्तर:
- सरकार का
- वस्तु विनियम
- 2 हेक्टेअर।
सत्य/असत्य
प्रश्न 1.
अंग्रेजों के आगमन के पूर्व ग्रामीण अर्थव्यवस्था आयात पर निर्भर थी। (2010)
उत्तर:
असत्य
प्रश्न 2.
अकबर के शासनकाल में टोडरमल ने सही ढंग से भू मापन कराया।
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 3.
मझोले कृषक वे होते हैं जिनके पास 5 हेक्टेअर से अधिक भूमि होती है।
उत्तर:
असत्य
प्रश्न 4.
प्राचीन ग्रामीण अर्थव्यवस्था में वस्तु विनियम प्रणाली प्रचलित थी। (2009)
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 5.
भारत में आज गाँवों की संख्या 6,00,000 है। (2011)
उत्तर:
सत्य
सही जोड़ी मिलाइए
उत्तर:
- → (ङ)
- → (घ)
- → (क)
- → (ग)
- → (ख)
एक शब्द/वाक्य में उत्तर
प्रश्न 1.
अंग्रेजों के आगमन के पूर्व भारत के गाँव किस प्रकार के थे?
उत्तर:
आत्मनिर्भर
प्रश्न 2.
ग्रामीण अर्थव्यवस्था का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग। (2012)
उत्तर:
कृषक
प्रश्न 3.
जिनके पास 2 से लेकर 10 हेक्टेअर भूमि है। (2012)
उत्तर:
बड़े कृषक
प्रश्न 4.
वस्तुओं का, वस्तुओं के बदले लेन-देन की प्रणाली। (2009, 10)
उत्तर:
वस्तु विनियम प्रणाली
प्रश्न 5.
अर्थव्यवस्था में संसाधनों पर निजी नियन्त्रण कहलाता है। (2011)
उत्तर:
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था
प्रश्न 6.
सिंचाई सुविधाएँ बढ़ाने के लिये किस शासक ने नहरें प्रमुखता से बनाई? (2008)
उत्तर:
मोहम्मद तुगलक
प्रश्न 7.
ग्रामीण क्षेत्रों के विकास हेतु किस उद्योग का अत्यधिक महत्त्व है? (2013)
उत्तर:
कुटीर एवं लघु उद्योग।
MP Board Class 9th Social Science Chapter 15 अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
अर्थव्यवस्था के प्रकार लिखिए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था तीन प्रकार की होती है :
- पूँजीवादी अर्थव्यवस्था
- समाजवादी अर्थव्यवस्था तथा
- मिश्रित अर्थव्यवस्था।
प्रश्न 2.
एक गाँव की अर्थव्यवस्था से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
एक गाँव की अर्थव्यवस्था में वहाँ पर स्थित खेत, दुकानें और अन्य सभी प्रतिष्ठान जहाँ व्यक्ति काम करते हैं, शामिल किये जाते हैं। इस प्रकार अर्थव्यवस्था जीविकोपार्जन का क्षेत्र होता है।
प्रश्न 3.
भारत कैसा देश है और यहाँ का मुख्य व्यवसाय क्या है?
उत्तर:
भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहाँ का मुख्य व्यवसाय कृषि है।
प्रश्न 4.
वैदिक काल में अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार क्या था?
उत्तर:
वैदिक काल में अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि था। पशुपालन, आखेट और दस्तकारी का भी अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान था।
प्रश्न 5.
गुणवत्ता की दृष्टि से कहाँ की मलमल विश्व प्रसिद्ध है?
उत्तर:
गुणवत्ता की दृष्टि से ढाका की मलमल विश्व प्रसिद्ध है। अतः वस्त्र निर्माण का इस युग में विशेष विकास हुआ।
प्रश्न 6.
भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास को कितने भागों में विभाजित किया जा सकता है?
उत्तर:
भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास को तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं –
- अंग्रेजों के आगमन के पूर्व ग्रामीण अर्थव्यवस्था
- अंग्रेजों के आगमन के पश्चात् ग्रामीण अर्थव्यवस्था तथा
- स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् ग्रामीण अर्थव्यवस्था।
प्रश्न 7.
प्राचीन समय में ग्रामीण समुदाय के कार्यों का पारिश्रमिक किस रूप में दिया जाता था?
उत्तर:
प्राचीन समय में गाँव में बढ़ई, लुहार, कुम्हार, कारीगर, मोची, जुलाहे आदि का पारिश्रमिक अनाज या वस्तु के रूप में दिया जाता था।
प्रश्न 8.
ग्राम अधिकारी के रूप में मुखिया का क्या कार्य होता था?
उत्तर:
मुखिया गाँव का प्रमुख अधिकारी होता था। इसका कार्य किसानों से लगान की वसूली कर शासक को देना था।
प्रश्न 9.
वस्तु विनिमय प्रणाली किसे कहते थे?
उत्तर:
वस्तु विनिमय प्रणाली, विनिमय की वह प्रणाली होती थी जिसमें वस्तु के बदले वस्तु या सेवा का प्रत्यक्ष आदान-प्रदान होता था। इसमें मुद्रा का प्रयोग नहीं किया जाता था।
प्रश्न 10.
अंग्रेजों के आगमन के पश्चात् भारत के गाँवों की क्या दशा थी?
उत्तर:
अंग्रेजों ने भारत और भारतीयों का हर प्रकार से शोषण किया। उन्होंने ऐसी नीतियाँ अपनाईं जिसके कारण खुशहाल भारत गरीबी और भुखमरी से जूझने लगा। कृषि और उद्योग पर भी बुरा प्रभाव पड़ा।
प्रश्न 11.
ग्रामीण जनसंख्या शहरों की ओर पलायन क्यों कर रही है?
उत्तर:
गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी और बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण ग्रामीण जनसंख्या शहरों की ओर पलायन कर रही है।
प्रश्न 12.
न्यूनतम मूल्य का निर्धारण कौन करता है?
उत्तर:
न्यूनतम मूल्य का निर्धारण सरकार द्वारा फसलों की उचित बिक्री मूल्य हेतु किया जाता है।
प्रश्न 13.
आदर्श ग्राम कैसा होना चाहिए?
उत्तर:
एक आदर्श ग्राम में कृषि विकसित होनी चाहिए, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं आवास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। इसके साथ ग्राम में स्वच्छता के प्रति जागरूकता एवं उपलब्ध संसाधनों का सम्पूर्ण प्रयोग होना चाहिए।
प्रश्न 14.
चकबन्दी से क्या आशय है?
उत्तर:
चकबन्दी वह प्रक्रिया है जिसमें किसान की छितरी छोटी-छोटी जोतों के बदले उसी किस्म की उतने ही आकार के एक या दो भूखण्ड दे दिये जाते हैं। यह ऐच्छिक और अनिवार्य दोनों होती है।
प्रश्न 15.
भूमि सुधार क्या है?
उत्तर:
भूमि सुधार किसी संगठन या भूमि व्यवस्था की संस्थागत व्यवस्था में होने वाले प्रत्येक परिवर्तन से है। भूमि स्वामित्व एवं भूमि जोत में होने वाला सुधार भूमि सुधार के अन्तर्गत आता है।
MP Board Class 9th Social Science Chapter 15 लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
अर्थव्यवस्था से क्या आशय है ? यह कितने प्रकार की हो सकती है?
अथवा
अर्थव्यवस्था का आशय स्पष्ट कीजिए। (2008, 09)
उत्तर:
अर्थव्यवस्था एक प्रणाली है जिसके द्वारा मनुष्य जीविकोपार्जन करता है तथा अर्थव्यवस्था एक क्षेत्र विशेष में विद्यमान उत्पादन इकाइयों से बनती है। दूसरे शब्दों से हम कह सकते हैं कि अर्थव्यवस्था का अर्थ एक देश के उन सभी खेतों, कारखानों, दुकानों, खदानों, बैंकों, सड़कों, स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, अस्तपाल आदि से है जो लोगों को रोजगार देते हैं एवं वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करते हैं तथा जिनका प्रयोग वहाँ की जनता द्वारा किया जाता है। अर्थव्यवस्था तीन प्रकार की हो सकती है-
- पूँजीवादी अर्थव्यवस्था
- समाजवादी अर्थव्यवस्था तथा
- मिश्रित अर्थव्यवस्था।
प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् आधुनिक ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् 2011 की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार वर्तमान में भारत की कुल जनसंख्या का 64.84 प्रतिशत भाग गाँवों में निवास करती है तथा शहरी क्षेत्रों से केवल 31.16 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। इसी प्रकार आज गाँवों की संख्या 6,38,588 है जबकि शहरों की संख्या मात्र 5,161 ही है। आज भी भारत गाँवों का देश है। यहाँ की अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान है। देश की दो-तिहाई जनसंख्या अपनी आजीविका के लिये प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर ही निर्भर है।
परन्तु देश के सकल उत्पाद में कृषि का योगदान केवल 26 प्रतिशत है। पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा देश का आर्थिक विकास तीव्र गति से हुआ है। साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी इससे अछूती नहीं रही है। गाँवों का स्वरूप बदलने लगा है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में अनेक परिवर्तन दृष्टिगोचर होने लगे। जिसमें से प्रमुख परिवर्तन मौद्रिक प्रणाली का प्रार्दुभाव, सहायक एवं कुटीर उद्योगों का विकास, तकनीकी उन्नति, शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार, संचार एवं आवागमन की पर्याप्त सुविधाएँ आदि हैं।
प्रश्न 3.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद ग्रामीण समुदाय की संरचना में क्या परिवर्तन हुए?
उत्तर:
ग्रामीण समुदाय की संरचना-स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् कृषकों को उनके पास उपलब्ध भूमि के स्वामित्व के आधार पर चार भागों में बाँटा जा सकता है –
- बड़े कृषक :
बड़े कृषकों के अन्तर्गत वह कृषक आते हैं जिनके पास 2 हेक्टेअर से लेकर 10 हेक्टेअर तक भूमि है। - मॅझोले कृषक :
मँझोले कृषक वह होते हैं जिनके पास 2 हेक्टेअर या उससे कुछ अधिक भूमि होती है। - छोटे कृषक :
छोटे कृषक वह कहलाते हैं जिनके पास मात्रं 2 हेक्टेअर से भी कम भूमि होती है। - भूमिहीन कृषक :
भूमिहीन कृषकों के पास अपनी कोई भूमि नहीं होती है। वह बँटाई पर भूमि लेकर खेती करते हैं या फिर दूसरों के खेतों में मजदूरी करते हैं।
प्रश्न 4.
अंग्रेजों के आगमन के पश्चात् भारत में ग्रामीण अर्थव्यवस्था की विशेषताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
अंग्रेजों के आगमन के पश्चात् भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ लिखिए। (2008, 18)
उत्तर:
भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ
- दस्तकारी एवं हस्तकला का पतन :
अंग्रेजों की नीतियों के फलस्वरूप गाँवों में दस्तकारी व हस्तकला का पतन होने लगा। गाँव के दस्तकार बेरोजगार हो गये। गाँवों की समृद्धि और खुशहाली समाप्त हो गयी। - आत्मनिर्भरता की समाप्ति :
कृषि के व्यापारीकरण के परिणामस्वरूप उपज को गाँवों के बाहर ले जाकर बेचा जाने लगा तथा गाँव की आवश्यकताओं की पूर्ति का सामान भी बाहर से आने लगा। इस प्रकार गाँवों की आत्मनिर्भरता स्वयं ही समाप्त हो गयी। - कृषि भूमि का हस्तान्तरण :
निर्धनता के फलस्वरूप कृषक, महाजनों व साहूकारों से ऋण लेने लगे; पर ऋण की वापसी न कर पाने से महाजनों व साहूकारों ने उनकी जमीन पर कब्जा कर लिया। इस प्रकार कृषि भूमि का हस्तान्तरण साहूकारों व महाजनों को होने लगा। फलस्वरूप कृषक भूमिहीन हो गये। - कृषि का पिछड़ापन :
अंग्रेजों द्वारा शुरू की गयी जमींदारी प्रथा का कृषि व कृषकों पर बहुत बुरा असर पड़ा। कृषक निर्धन एवं ऋणग्रस्त होते गये। शासन और जमींदारों ने भूमि की उत्पादकता और सुधार की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जिससे भूमि की उत्पादकता कम होती गई। परिणामस्वरूप किसानों का शोषण किया जाने लगा।
प्रश्न 5.
किसी ग्राम का आर्थिक अध्ययन करते समय हमें किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर:
आर्थिक अध्ययन से तात्पर्य है कि एक क्षेत्र विशेष में उपलब्ध संसाधन, वहाँ की जनसंख्या, आजीविका के साधन, आर्थिक स्थिति, परिवहन व संचार के साधन, वानिकी, उद्यानिकी, हाट-बाजार, वित्त, सामाजिक एवं सामुदायिक स्थितियों का अध्ययन करना। किसी गाँव के आर्थिक अध्ययन के लिए सबसे पहले अध्ययन का उद्देश्य निर्धारित करना होता है। तत्पश्चात् अध्ययन का क्षेत्र सुनिश्चित कर अध्ययन की योजना बनायी जाती है। किसी भी अध्ययन के लिये आवश्यक सांख्यिकी आँकड़ों की भी आवश्यकता पड़ती है। इसके लिये सामान्यतः तालिका और प्रश्नावली का निर्माण किया जाता है।
उस गाँव का अध्ययन करके, उस गाँव में उपलब्ध संसाधनों व सुविधाओं को ध्यान में रखकर, उस गाँव की असुविधाओं व समस्याओं के समाधान के लिये ग्रामवासियों का सहयोग लेना श्रेयस्कर होता है।
MP Board Class 9th Social Science Chapter 15 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् ग्रामीण अर्थव्यवस्था की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् 2011 की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार वर्तमान में भारत की कुल जनसंख्या का 64.84 प्रतिशत भाग गाँवों में निवास करती है तथा शहरी क्षेत्रों से केवल 31.16 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। इसी प्रकार आज गाँवों की संख्या 6,38,588 है जबकि शहरों की संख्या मात्र 5,161 ही है। आज भी भारत गाँवों का देश है। यहाँ की अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान है। देश की दो-तिहाई जनसंख्या अपनी आजीविका के लिये प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर ही निर्भर है। परन्तु देश के सकल उत्पाद में कृषि का योगदान केवल 26 प्रतिशत है। पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा देश का आर्थिक विकास तीव्र गति से हुआ है। साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी इससे अछूती नहीं रही है। गाँवों का स्वरूप बदलने लगा है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में अनेक परिवर्तन दृष्टिगोचर होने लगे। जिसमें से प्रमुख परिवर्तन मौद्रिक प्रणाली का प्रार्दुभाव, सहायक एवं कुटीर उद्योगों का विकास, तकनीकी उन्नति, शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार, संचार एवं आवागमन की पर्याप्त सुविधाएँ आदि हैं।