MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 17 भारत में उद्योगों की स्थिति
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MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 17 भारत में उद्योगों की स्थिति
MP Board Class 9th Social Science Chapter 17 पाठान्त अभ्यास
MP Board Class 9th Social Science Chapter 17 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
सही विकल्प चुनकर लिखिए
प्रश्न 1.
लघु औद्योगिक इकाइयों की अधिकतम विनियोग सीमा है
(i) 1 करोड़ रुपये
(ii) 5 करोड़ रुपये
(iii) 3 करोड़ रुपये
(iv) 7 करोड़ रुपये।
उत्तर:
(ii) 5 करोड़ रुपये
प्रश्न 2.
विश्व में कुल जूट उत्पादन का भारत में पैदा होता है
(i) 25 प्रतिशत
(ii) 10 प्रतिशत
(iii) 50 प्रतिशत
(iv) 35 प्रतिशत।
उत्तर:
(iii) 50 प्रतिशत
प्रश्न 3.
इनमें से किसका सम्बन्ध सूचना प्रौद्योगिकी से है?
(i) मोटर कार
(ii) सुन्दर कपड़े
(iii) कम्प्यू टर
(iv) सोना चाँदी।
उत्तर:
(iii) कम्प्यू टर
MP Board Class 9th Social Science Chapter 17 अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत में काँच निर्मित वस्तुओं का निर्यात किन देशों में किया जाता है?
उत्तर:
भारत में निर्मित काँच से बनी वस्तुओं का निर्यात पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, अफगानिस्तान, कुवैत, ईरान, इराक, सऊदी अरब, म्यांमार व मलेशिया आदि देशों में किया जाता है।
प्रश्न 2.
भारत में असली रेशम उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र कौन से हैं?
उत्तर:
- कश्मीर घाटी
- पूर्वी कर्नाटक व तमिलनाडु के पठारी व पहाड़ी क्षेत्र
- पश्चिमी बंगाल का हुगली क्षेत्र
- असम का पर्वतीय भू-भाग।
प्रश्न 3.
भारत में उत्पादित लाख के.प्रमुख ग्राहक देश कौन से हैं?
उत्तर:
भारत की लाख के प्रमुख ग्राहक चीन, अमेरिका, रूस और ब्रिटेन हैं। इसके अलावा जर्मनी, ब्राजील, इटली, फ्रांस तथा जापान हैं।
प्रश्न 4.
कृषि आधारित उद्योग कौन से हैं? (2008, 13)
उत्तर:
वस्त्र उद्योग, चीनी उद्योग, कागज उद्योग, पटसन उद्योग, वनस्पति उद्योग कृषि पर आधारित उद्योग हैं।
प्रश्न 5.
देश में स्थापित सीमेण्ट कारखानों की उत्पादन क्षमता कितनी है?
उत्तर:
वर्तमान में देश में 190 बड़े सीमेण्ट कारखाने हैं जिनकी उत्पादन क्षमता 324.5 मिलियन टन है। इसके अलावा देश में 360 लघु सीमेण्ट कारखाने हैं जिनकी उत्पादन क्षमता 11.10 मिलियन टन है।
प्रश्न 6.
भारत में रेशम उत्पादन की दृष्टि से कौन से राज्य महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
भारत में असली रेशम उत्पादन के चार प्रमुख क्षेत्र हैं-
- कश्मीर घाटी
- पूर्वी कर्नाटक व तमिलनाडु के पठारी व पहाड़ी क्षेत्र
- पश्चिमी बंगाल का हुगली क्षेत्र
- असम का पर्वतीय भू-भाग।
MP Board Class 9th Social Science Chapter 17 लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत में विभिन्न उद्योगों को किन-किन आधारों पर वर्गीकृत किया गया है? समझाइए।
उत्तर:
उद्योगों को हम उनके स्वामित्व, उपयोगिता, आकार, माल की प्रकृति एवं कच्चे माल की उपलब्धता के आधार पर विभिन्न भागों में बाँट सकते हैं। जैसा कि नीचे दिये गये चार्ट से स्पष्ट है –
उद्योगों का वर्गीकरण
प्रश्न 2.
भारत के प्रमुख कुटीर उद्योगों की स्थिति का विवरण दीजिए। (2009, 14)
उत्तर:
भारत के प्रमुख कुटीर उद्योग
रेशम उद्योग :
रेशम एक कृषि आधारित उद्योग है और भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए यह एक उपयुक्त उद्योग है। यह गाँव एवं श्रम आधारित उद्योग है, जो न्यूनतम निवेश पर अधिकतम लाभ की वापसी देता है। विश्व में भारत दूसरा बड़ा रेशम उत्पादक है और विश्व के कुल कच्चे रेशम उत्पादन का 18 प्रतिशत पूरा करता है। इस उद्योग में 78.50 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है, जिसमें अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों के हैं। इस उद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए सन् 1949 में केन्द्रीय रेशम बोर्ड की स्थापना की गई।
लाख उद्योग :
भारत लाख का प्रमुख उत्पादक राष्ट्र है। सन् 1950 से पहले केवल भारत में ही लाख साफ की जाती थी, परन्तु अब थाईलैण्ड में भी यह काम होता है। इसका भारत के लाख उद्योग पर प्रभाव पड़ा है। पहले विश्व की 85 प्रतिशत लाख भारत में तैयार होती थी, जो वर्तमान में घटकर 50 प्रतिशत रह गई है। भारत में लाख का सबसे अधिक उत्पादन छोटा नागपुर पठार में होता है। यहाँ देश का 50 प्रतिशत उत्पादन होता है। इसके अतिरिक्त छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, उड़ीसा, गुजरात व उत्तर प्रदेश का मिर्जापुर जिला लाख के प्रमुख उत्पादक केन्द्र हैं। इस उद्योग से लगभग 10,000 लोगों को रोजगार प्राप्त है।
काँच उद्योग :
कुटीर उद्योग के रूप में यह उद्योग प्रमुख रूप से फिरोजाबाद व बेलगाँव में केन्द्रित हैं। फिरोजाबाद में काँच के 225 से भी अधिक छोटे-बड़े कारखाने हैं काँच की विभिन्न प्रकार की चूड़ियाँ बनाई जाती हैं। एटा, शिकोहाबाद, फतेहाबाद व हाथरस में भी यह उद्योग कुटीर उद्योग के रूप में संचालित हैं।
प्रश्न 3.
भारत में चर्म उद्योग में किन वस्तुओं का निर्माण होता है?
उत्तर:
यह एक पारम्परिक उद्योग है। चमड़े से कई प्रकार की वस्तुएँ; जैसे-कोट, जर्सी, पर्स, बटुए, थैले, खेल का सामान, खिलौने, कनटोपं, बेल्ट, दस्ताने, जूते व चप्पल आदि बनाये जाते हैं। देश में चमड़े की वस्तुओं का सर्वाधिक उत्पादन तमिलनाडु, कोलकाता, कानपुर, मुम्बई, औरंगाबाद, कोल्हापुर, देवास, जालंधर और आगरा में होता है। चमड़े की वस्तुओं के उत्पादन का 75 प्रतिशत भाग लघु और कुटीर उद्योगों द्वारा उत्पादित किया जाता है।
प्रश्न 4.
भारत में कागज उद्योग की स्थिति समझाइए।
उत्तर:
कागज उद्योग-भारत में कुटीर उद्योग के अन्तर्गत कागज-निर्माण का इतिहास पुराना है। भारत में आधुनिक ढंग की पहली कागज मिल बालीगंज (कोलकाता) में 1870 में स्थापित की गयी। देश में पहला अखबारी कागज उद्योग मध्य प्रदेश के नेपानगर में 1947 में स्थापित किया गया था। कागज बनाने के लिए कच्चे माल के रूप में लकड़ी की लुग्दी, घास, बाँस, कपड़े व चिथड़े, जूट आदि का प्रयोग होता है। भारत के कागज उद्योग को विश्व के 20 बड़े कागज उद्योगों में से गिना जाता है। यहाँ 16,000 करोड़ रुपये का उत्पादन होता है, प्रत्यक्ष रूप से 3 लाख और परोक्ष रूप से 10 लाख लोगों को रोजगार मिलता है। भारत में प्रति व्यक्ति कागज की खपत सिर्फ 7-2 किलोग्राम है जोकि विश्व औसत (50 किग्रा) से बहुत कम है।
भारत में कागज के प्रमुख उत्पादक राज्य आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार तथा केरल हैं।
प्रश्न 5.
भारत में काँच उद्योग पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
काँच उद्योग-काँच उद्योग भारत का प्राचीन उद्योग है, किन्तु भारत में विकसित काँच उद्योग की शुरूआत द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् ही सम्भव हो सकी। वर्तमान में इस उद्योग में आधुनिक एवं नवीनतम तकनीकों से काँच का उत्पादन किया जा रहा है। देश में इस समय काँच के 56 बड़े कारखानों में से 15 ऐसे आधुनिक कारखाने हैं, जो उत्तम किस्म के काँच के सामान का निर्माण पूर्णतः मशीनों द्वारा करते हैं।
आधुनिक उद्योग के रूप में यह उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिमी बंगाल, पंजाब, मध्य प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु व ओडिशा में केन्द्रित हैं। देश में काँच बनाने के सबसे अधिक कारखाने पश्चिम बंगाल में हैं। कुटीर उद्योग के रूप में यह उद्योग प्रमुख रूप से फिरोजाबाद व बेलगाँव में केन्द्रित है।
प्रश्न 6.
सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग भारत का सबसे तेज बढ़ता हुआ उद्योग है। समझाइए। (2008, 09, 13, 14)
उत्तर:
सूचना एवं प्रौद्योगिकी उद्योग :
सूचना एवं प्रौद्योगिकी उद्योग से आशय उस उद्योग से है, जिसमें कम्प्यूटर और उसके सहायक उपकरणों की सहायता से ज्ञान का प्रसार किया जाता है। इसके अन्तर्गत कम्प्यूटर, संचार, प्रौद्योगिकी और सम्बन्धित सॉफ्टवेयर को शामिल किया जाता है। इसके अन्तर्गत उस सम्पूर्ण व्यवस्था को शामिल किया जाता है, जिसके द्वारा संचार माध्यम और उपकरणों की सहायता से सूचना पहुँचाई जाती है। यह ज्ञान आधारित उद्योग है। वर्ष 2000-01 में इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात 33,138 करोड़ रुपये था जो 2008-09 में बढ़कर 2,35,300 करोड़ रुपये पहुँच गया। भारत में सकल घरेलू उत्पाद में उद्योग का योगदान वर्ष 1999-2000 में 1.2 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2013 में 8 प्रतिशत हो गया है। इससे ज्ञात होता है कि यह उद्योग भारत का सबसे तेज गति से बढ़ता हुआ उद्योग है।
MP Board Class 9th Social Science Chapter 17 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत में वृहद् उद्योगों की स्थिति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में वृहद् उद्योग
सूती वस्त्र उद्योग :
भारत में सूती वस्त्रों की अत्यन्त पुरानी परम्परा है। देश की प्रथम सूती कपड़ा मिल सन् 1818 में कोलकाता में स्थापित की गई थी। देश की सूती कपड़ा मिलें मुख्य रूप से महाराष्ट्र, तमिलनाडु और गुजरात में हैं। यह उद्योग भारत का सबसे बड़ा एवं व्यापक उद्योग है। देश के औद्योगिक उत्पादन में इसका योगदान 14 प्रतिशत है, जबकि देश के कुल निर्यात आय में इसका हिस्सा 19 प्रतिशत है। आयात में इसका हिस्सा 3 प्रतिशत है। यह उद्योग लगभग 9 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान कर रहा है। इस उद्योग में लगभग 5,000 करोड़ रुपये की पूँजी लगी है। सरकार ने कपड़ा आदेश (विकास एवं विनिमय)1993 के माध्यम से कपड़ा उद्योग को लाइसेन्स मुक्त कर दिया।
लोहा तथा इस्पात उद्योग :
लोहा-इस्पात उद्योग देश का एक आधारभूत उद्योग है। विनियोग की दृष्टि से यह संगठित क्षेत्र के सबसे महत्त्वपूर्ण एवं विशालतम उद्योगों में से एक है।
भारत में यह उद्योग अति प्राचीन है लेकिन आधुनिक तरीके से लोहे का उत्पादन 1875 में आरम्भ हुआ, जब बंगाल आयरन वर्क्स कम्पनी ने कुल्टी (पश्चिम बंगाल) में अपने संयन्त्र की स्थापना की। परन्तु बड़े पैमाने पर उत्पादन 1907 में जमशेदपुर में टाटा आयरन इण्डस्ट्रीज कम्पनी (टिस्को) की स्थापना के साथ आरम्भ हुआ। भारत में कुल 10 कारखाने हैं जिसमें से 9 सार्वजनिक क्षेत्र में एवं केवल एक निजी क्षेत्र (टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी, जमशेदपुर, पश्चिमी बंगाल) में है। सार्वजनिक क्षेत्र के कारखाने भिलाई, दुर्गापुर, राउरकेला, बोकारो, विशाखापट्टनम् एवं सलेम में है।
इस समय देश में 196 लघु इस्पात संयन्त्र हैं। इनमें से 179 इकाइयाँ चालू हैं तथा शेष बन्द हैं। वर्तमान में इस उद्योग में 90,000 करोड़ रुपये की पूँजी लगी है तथा इसमें 5 लाख लोगों को रोजगार प्राप्त है।
जूट उद्योग :
वर्ष 1859 में कलकत्ता के निकट पहली जूट मिल स्थापित हुई थी। इस उद्योग में करीब – 4 लाख श्रमिकों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रोजगार मिला हुआ है। भारत की 90% जूट मिलें पश्चिम बंगाल में कोलकाता के समीप हुगली नदी के किनारे स्थित हैं। इस राज्य की जलवायु तथा उपजाऊ भूमि जूट-उत्पादन के अनुकूल है। देश में 83 पटसन मिलें हैं जिनमें से 6 कपड़ा मन्त्रालय के अधीन सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम राष्ट्रीय पटसन उत्पाद निगम की हैं। पटसन उत्पादनों का वार्षिक निर्यात 1400-1500 करोड़ रुपये के बीच है। घरेलू खपत और निर्यात का अनुपात 80 : 20 हैं।
चीनी उद्योग :
चीनी उद्योग के विकास का प्रारम्भ 1903 से होता है और 1931 में भारत में चीनी बनाने के 29 कारखाने स्थापित हो गये थे 1950-51 में इनकी संख्या बढ़कर 139 हो गयी थी 1995 में भारत में 435 कारखाने थे जिनकी स्थापना मुख्यतः गन्ना उत्पादक क्षेत्रों या उसके समीपवर्ती क्षेत्रों में ही की गयी थी। चूंकि गन्ना शीघ्र ही सूख जाता है, इसलिए इसको शीघ्रता से कारखानों तक पहुंचाने एक अनिवार्यता होती है।
सीमेण्ट उद्योग :
भारत में संगठित रूप से समुद्री सीपियों से सीमेण्ट तैयार करने का प्रथम कारखाना सन् 1904 में मद्रास में स्थापित किया गया था, लेकिन वह असफल हो गया। इसके पश्चात् 1913 में टाटा एण्ड सन्स कम्पनी के निर्देशन में पोरबन्दर (गुजरात) में इण्डियन सीमेण्ट कम्पनी लिमिटेड की स्थापना की गयी जिसकी सफलता से प्रेरित होकर सन् 1914 तक देश में 5 सीमेण्ट कारखाने स्थापित किये गये, जिनका कुल उत्पादन 76 हजार टन वार्षिक था।
वर्तमान स्थिति-वर्तमान में 190 बड़े सीमेण्ट संयन्त्र हैं, जिनकी संस्थापित क्षमता करीब 324.5 मिलियन टन है। इसके अलावा देश में करीब 360 लघु सीमेण्ट संयन्त्र भी हैं जिनकी अनुमानित क्षमता 11-10 मिलियन टन है। वर्तमान समय में सीमेण्ट उद्योग में 800 करोड़ रुपये से भी अधिक पूँजी विनियोजित है तथा तीन लाख लोगों को रोजगार प्राप्त है। मार्च 1989 से सीमेण्ट उद्योग को मूल्य तथा विक्रय से नियन्त्रण मुक्त करने और उदार नीतियाँ अपनाये जाने के कारण इसमें उत्पादन वृद्धि के साथ-साथ तकनीक क्षेत्र में भी उल्लेखनीय प्रगति हुई है।
सूचना एवं प्रौद्योगिकी उद्योग :
सूचना एवं प्रौद्योगिकी उद्योग से आशय उस उद्योग से है, जिसमें कम्प्यूटर और उसके सहायक उपकरणों की सहायता से ज्ञान का प्रसार किया जाता है। इसके अन्तर्गत कम्प्यूटर, संचार, प्रौद्योगिकी और सम्बन्धित सॉफ्टवेयर को शामिल किया जाता है। इसके अन्तर्गत उस सम्पूर्ण व्यवस्था को शामिल किया जाता है, जिसके द्वारा संचार माध्यम और उपकरणों की सहायता से सूचना पहुँचाई जाती है। यह ज्ञान आधारित उद्योग है। वर्ष 2000-01 में इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात 33,138 करोड़ रुपये था जो 2008-09 में बढ़कर 2,35,300 करोड़ रुपये पहुँच गया। भारत में सकल घरेलू उत्पाद में उद्योग का योगदान वर्ष 1999-2000 में 1.2 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2013 में 8 प्रतिशत हो गया है। इससे ज्ञात होता है कि यह उद्योग भारत का सबसे तेज गति से बढ़ता हुआ उद्योग है।
प्रश्न 2.
लघु उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा क्या-क्या प्रयास किये गये हैं? लिखिए। (2008)
उत्तर:
लघु उद्योगों के विकास के लिए किये गये सरकारी प्रयास
(1) निगमों एवं मण्डलों की स्थापना केन्द्रीय सरकार ने विभिन्न निगमों एवं मण्डलों की स्थापना की है। इनसे कुटीर व लघु उद्योगों के विकास को बहुत प्रोत्साहन मिला है। इनमें –
- अखिल भारतीय कुटीर उद्योग मण्डल, 1948
- केन्द्रीय सिल्क बोर्ड 1950
- अखिल भारतीय हस्तकला बोर्ड 1952
- अखिल भारतीय हथकरघा बोर्ड, 1952
- अखिल भारतीय खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड, 1953
- लघु उद्योग मण्डल, 1954
- नारियल-जूट मण्डल, 1954
- राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम, 1955, तथा
- भारतीय दस्तकारी विकास निगम, 1958 आदि प्रमुख हैं। ये अखिल भारतीय संस्थाएँ अपने-अपने क्षेत्रों में उद्योगों के विकास हेतु राज्य सरकारों एवं उद्योग संगठनों के सहयोग से तकनीकी शिक्षा, विपणन सुविधाओं तथा वस्तुओं के प्रमापीकरण की व्यवस्था कर रही है।
(2) वित्तीय सहायता :
लघु कुटीर उद्योगों को पूँजी तथा अन्य आर्थिक सहायता प्रदान करने के क्षेत्र में भी सरकार ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सरकार द्वारा जिन साधनों से लघु एवं कुटीर उद्योगों को वित्तीय सहायता प्रदान कराई गई है, वे निम्न हैं –
- स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया द्वारा ऋण योजना चालू करना।
- रिजर्व बैंक द्वारा गारण्टी की योजना चालू करना।
- राज्य वित्त निगमों द्वारा ऋण प्रदान करना।
- राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम द्वारा किराया क्रय पद्धति के आधार पर यन्त्रों के खरीदने की सुविधाएँ प्रदान किया जाना।
- सहकारी बैंकों और अनुसूचित बैंकों द्वारा ऋण की सहायता प्रदान करना।
- राज्य सरकारों द्वारा आर्थिक सहायता प्रदान करना।
(3) व्यापक सहायता कार्यक्रम :
भारत सरकार ने छोटे उद्यमियों की सहायतार्थ हेतु एक व्यापक सहायता कार्यक्रम बनाया है। लघु उद्योग विकास संगठन (SIDO) के अन्तर्गत लघु उद्योग सेवा संस्थान, शाखा संस्थान एवं विस्तार केन्द्र हैं, जिनके द्वारा आर्थिक, तकनीकी व प्रबन्धकीय सेवाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं। राज्यों के उद्योग निदेशालय भूमि या फैक्ट्री शेड आबंटित करते हैं तथा इनके लिए कच्चा माल तथा पूँजी उपलब्ध कराने में सहायता देते हैं।
(4) सरकार द्वारा क्रय में प्राथमिकता :
सरकार ने स्वयं भी लघु उद्योगों से अधिक मात्रा में वस्तुएँ क्रय करके उनके विकास में सहायता दी है। सरकार कुछ वस्तुओं का क्रय पूर्ण रूप से लघु उद्योगों से करती है।
(5) दुर्लभ कच्चे माल का आबंटन :
सरकार दुर्लभ देशी तथा विदेशी कच्चे माल के आबंटन में लघु उद्योगों के हितों का विशेष ध्यान रखती है और उन्हें प्राथमिकता देती है। 1991 की नई आयात नीति में सरकार द्वारा लघु इकाइयों को आयात लाइसेंस देने में अधिक उदारता बरती गई थी। अब इन्हें 5 लाख रुपये तक के आयात के लाइसेंस स्वतन्त्र विदेशी मुद्रा से प्राप्त हो सकेंगे।
(6) सम्मिलित उत्पादन कार्यक्रम :
सरकार ने बड़े तथा लघु एवं कुटीर उद्योगों के लिए एक सम्मिलित उत्पादन कार्यक्रम की योजना बनाई है। इस योजना के अनुसार लघु उद्योगों का उत्पादन क्षेत्र सीमित रखा गया है। बड़े उद्योगों की उत्पादन क्षमता में विस्तार पर रोक लगाने की व्यवस्था है। बड़े उद्योगों पर उत्पादन कर लगाया जाता है जबकि, लघु व कुटीर उद्योगों के उत्पादन को कर-मुक्त रखा गया है। बड़े उद्योगों से प्राप्त उत्पादन कर को लघु व कुटीर उद्योगों के विकास पर खर्च किया जाता है तथा अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण में आदान-प्रदान का समन्वय स्थापित किया जाता है।
(7) विपणन सम्बन्धी सुविधाएँ :
केन्द्र सरकार ने एक केन्द्रीय कुटीर उद्योग एम्पोरियम की स्थापना की है जो देश-विदेश में कुटीर उद्योगों द्वारा निर्मित वस्तुओं के विक्रय की व्यवस्था करता है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र, असम, जम्मू कश्मीर तथा तमिलनाडु आदि राज्यों में भी कुटीर उद्योग एम्पोरियम स्थापित किये गये हैं। औद्योगिक सहकारी संस्थाओं द्वारा निर्यात एवं थोक बाजार में इसकी विक्रय व्यवस्था करने के लिए सन् 1966 में औद्योगिक सहकारी संस्थाओं का महासंघ स्थापित किया गया था।
(8) तकनीकी सहायता :
लघु उद्योगों को तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए केन्द्रीय सरकार ने केन्द्रीय लघु उद्योग संगठन के अधीन एक औद्योगिक विस्तार सेवा प्रारम्भ की है। इस योजना के अन्तर्गत 28 लघु उद्योगशालाएँ, 31 प्रादेशिक सेवाशालाएँ और 37 प्रसार उत्पादन प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित किये गये हैं। लघु उद्योगों को तकनीकी परामर्श देने के लिए विदेशी विशेषज्ञ बुलाये जाते हैं तथा फोर्ड फाउण्डेशन ऑफ इण्डिया की सहायता से भारतीय विशेषज्ञ प्रशिक्षण के लिए विदेश भेजे जाते हैं।
(9) औद्योगिक बस्तियों का निर्माण :
लघु उद्योगों के विकास हेतु देश के विभिन्न भागों में औद्योगिक बस्तियाँ स्थापित की गयी हैं। इसके लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा राज्य सरकारों को ऋण दिया जाता है। इनका प्रमुख उद्देश्य उद्योगों को शहरी क्षेत्रों से हटाकर उचित स्थान पर ले जाना है।
(10) जिला उद्योग केन्द्र :
इन केन्द्रों की स्थापना मई, 1978 में प्रारम्भ की गयी। इनकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण तथा अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में व्यापक रूप से फैले छोटे और अत्यन्त छोटे ग्रामीण और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए जिला स्तर पर एक केन्द्र स्थापना करना है। इसका एक अन्य उद्देश्य पूँजी निवेश के दौरान तथा पूँजी निवेश के पश्चात् जहाँ तक सम्भव हो सभी अनिवार्य सेवाएँ और सहयोग जिला स्तर पर भी उपलब्ध कराना है। इस कार्यक्रम में ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे कस्बों में ऐसे उद्योगों की स्थापना पर अधिक जोर दिया जाता है जिनसे इन इलाकों में रोजगार के ज्यादा अवसर उपलब्ध कराये जा सकें।
प्रश्न 3.
लघु एवं कुटीर उद्योगों का महत्त्व लिखिए। (2009)
अथवा
भारतीय अर्थव्यवस्था में लघु उद्योगों का महत्त्व लिखिए। (2017)
उत्तर:
भारतीय अर्थव्यवस्था में कुटीर एवं लघु उद्योगों का महत्त्व :
महात्मा गाँधी के अनुसार, “भारत का कल्याण उसके कुटीर उद्योगों में निहित है।” भारतीय योजना आयोग के अनुसार, “लघु एवं कुटीर उद्योग हमारी अर्थव्यवस्था के महत्त्वपूर्ण अंग हैं जिनकी कभी उपेक्षा नहीं की जा सकती।” भारतीय अर्थव्यवस्था में लघु एवं कुटीर उद्योगों का महत्त्व निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट किया जा सकता है-
- रोजगार का सृजन :
इन उद्योगों का सबसे महत्त्वपूर्ण लाभ यह है कि इनसे रोजगार के अधिक अवसर विकसित होते हैं, क्योंकि इन उद्योगों में प्रायः श्रम प्रधान तकनीक का प्रयोग किया जाता है। इन उद्योगों में कम पूँजी लगाकर अधिक लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त होते हैं। - कलात्मक वस्तुओं का निर्माण :
कुटीर उद्योगों में अधिकांश कार्य हाथों द्वारा किया जाता है जो कलात्मक वस्तुओं को सम्भव बनाते हैं; जैसे-ऊनी, रेशमी वस्त्रों पर कढ़ाई, कालीन व गलीचों का निर्माण, हाथी दाँत का सामान आदि ऐसे कुटीर उद्योग हैं जिनसे काफी मात्रा में विदेशी मुद्रा अर्जित की जाती है। इस प्रकार का उत्पादन वृहत् उद्योगों में सम्भव नहीं है। - शीघ्र उत्पादक उद्योग :
लघु एवं कुटीर उद्योग शीघ्र उत्पादक उद्योग होते हैं आशय यह है कि इन उद्योगों में विनियोग करने और उत्पादन आरम्भ होने में अधिक समयान्तर नहीं होता। - आयातों में कमी :
लघु एवं कुटीर उद्योगों का विकास प्रायः श्रम प्रधान तकनीक के आधार पर किया जाता है। इस कारण इन उद्योगों के विकास के लिए आयातों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है और राष्ट्र के मूल्यवान विदेशी विनिमय-भण्डारों की बचत होती है। - उद्योगों का विकेन्द्रीकरण :
इन उद्योगों से देश में उद्योगों के विकेन्द्रीकरण में सहायता मिलती है। बड़े उद्योग कुछ विशेष कारणों से एक ही स्थान पर केन्द्रित हो जाते हैं, लेकिन लघु एवं कुटीर उद्योगों को गाँवों और छोटे कस्बों में भी स्थापित किया जा सकता है। - कम पूँजी व अधिक श्रम की स्थिति में उपयुक्त :
भारत में पूँजी का अभाव है जबकि श्रम शक्ति का बाहुल्य है। चूँकि कुटीर उद्योग में कम पूँजी से ही काम चल जाता है और अधिक लोगों को रोजगार उपलब्ध हो जाता है, इसलिए भारत में कुटीर उद्योगों का विकास किया जाए तो स्त्री-श्रम का भी उपयोग हो सकेगा तथा देश की सम्पत्ति में भी वृद्धि होगी। - कृषकों के खाली समय का सदुपयोग :
देश में कृषि द्वारा केवल विशेष मौसम के लिए रोजगार मिल पाता है। वर्ष में 3-4 महीने तक कृषक लोग बेकार बैठे रहते हैं। यदि कुटीर एवं लघु उद्योगों का विकास हो जाए तो इससे न केवल कृषकों के खाली समय का सदुपयोग होगा वरन् उनकी आय में वृद्धि होगी।। - सरल कार्य-प्रणाली :
कुटीर उद्योगों की स्थापना तथा कार्य-प्रणाली बहुत ही सरल होती है। इनके लिए उच्च कोटि के तकनीकी विशेषज्ञों, प्रबन्धकों, विशाल भवन, विशेष प्रशिक्षण तथा विस्तृत हिसाब-किताब की आवश्यकता नहीं पड़ती है। - बड़े पैमाने के उद्योगों के पूरक :
लघु एवं कुटीर उद्योग बड़े पैमाने के उद्योगों को कच्ची सामग्री एवं अर्द्ध-निर्मित माल उपलब्ध कराते हैं। इस प्रकार इन उद्योगों का विकास बड़े पैमाने के उद्योगों के विकास .. के लिए भी आवश्यक है। - निर्यात व्यापार में महत्त्व :
विगत वर्षों में हथकरघा वस्त्र, हाथी दाँत की वस्तुएँ, ताँबे व पीतल की कलात्मक बर्तन, दरियाँ, कालीन तथा गलीचे, चमड़े के जूते, सिलाई की मशीनें, बिजली के पंखे, साइकिलें आदि कुटीर व लघु उद्योगों द्वारा उत्पादित माल के निर्यात में काफी वृद्धि हुई है। वर्ष 2005-06 में इन उद्योगों का निर्यात में योगदान 1,50,242 करोड़ रुपये रहा है। - आर्थिक विकास में योगदान :
लघु उद्यम क्षेत्र का देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान है। औद्योगिक उत्पादन में 39 प्रतिशत से अधिक और राष्ट्रीय निर्यात से 33 प्रतिशत से अधिक योगदान करके इस क्षेत्र ने राष्ट्र के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भागीदारी निभाई है। अनुमान है कि इस क्षेत्र में 3 करोड़ 10 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है।
प्रश्न 4.
टिप्पणी लिखिए
- चमड़ा उद्योग
- लोहा इस्पात उद्योग(2009)
- सूती वस्त्र उद्योग, (2008, 09)
- सूचना एवं प्रौद्योगिकी।
उत्तर:
1. चमड़ा उद्योग :
यह एक पारम्परिक उद्योग है। चमड़े से कई प्रकार की वस्तुएँ; जैसे-कोट, जर्सी, पर्स, बटुए, थैले, खेल का सामान, खिलौने, कनटोपं, बेल्ट, दस्ताने, जूते व चप्पल आदि बनाये जाते हैं। देश में चमड़े की वस्तुओं का सर्वाधिक उत्पादन तमिलनाडु, कोलकाता, कानपुर, मुम्बई, औरंगाबाद, कोल्हापुर, देवास, जालंधर और आगरा में होता है। चमड़े की वस्तुओं के उत्पादन का 75 प्रतिशत भाग लघु और कुटीर उद्योगों द्वारा उत्पादित किया जाता है।
2. लोहा तथा इस्पात उद्योग एवं :
लोहा-इस्पात उद्योग देश का एक आधारभूत उद्योग है। विनियोग की दृष्टि से यह संगठित क्षेत्र के सबसे महत्त्वपूर्ण एवं विशालतम उद्योगों में से एक है।
भारत में यह उद्योग अति प्राचीन है लेकिन आधुनिक तरीके से लोहे का उत्पादन 1875 में आरम्भ हुआ, जब बंगाल आयरन वर्क्स कम्पनी ने कुल्टी (पश्चिम बंगाल) में अपने संयन्त्र की स्थापना की। परन्तु बड़े पैमाने पर उत्पादन 1907 में जमशेदपुर में टाटा आयरन इण्डस्ट्रीज कम्पनी (टिस्को) की स्थापना के साथ आरम्भ हुआ। भारत में कुल 10 कारखाने हैं जिसमें से 9 सार्वजनिक क्षेत्र में एवं केवल एक निजी क्षेत्र (टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी, जमशेदपुर, पश्चिमी बंगाल) में है। सार्वजनिक क्षेत्र के कारखाने भिलाई, दुर्गापुर, राउरकेला, बोकारो, विशाखापट्टनम् एवं सलेम में है।
इस समय देश में 196 लघु इस्पात संयन्त्र हैं। इनमें से 179 इकाइयाँ चालू हैं तथा शेष बन्द हैं। वर्तमान में इस उद्योग में 90,000 करोड़ रुपये की पूँजी लगी है तथा इसमें 5 लाख लोगों को रोजगार प्राप्त है।
3. सूती वस्त्र उद्योग :
भारत में सूती वस्त्रों की अत्यन्त पुरानी परम्परा है। देश की प्रथम सूती कपड़ा मिल सन् 1818 में कोलकाता में स्थापित की गई थी। देश की सूती कपड़ा मिलें मुख्य रूप से महाराष्ट्र, तमिलनाडु और गुजरात में हैं। यह उद्योग भारत का सबसे बड़ा एवं व्यापक उद्योग है। देश के औद्योगिक उत्पादन में इसका योगदान 14 प्रतिशत है, जबकि देश के कुल निर्यात आय में इसका हिस्सा 19 प्रतिशत है। आयात में इसका हिस्सा 3 प्रतिशत है। यह उद्योग लगभग 9 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान कर रहा है। इस उद्योग में लगभग 5,000 करोड़ रुपये की पूँजी लगी है। सरकार ने कपड़ा आदेश (विकास एवं विनिमय)1993 के माध्यम से कपड़ा उद्योग को लाइसेन्स मुक्त कर दिया।
4. सूचना एवं प्रौद्योगिकी :
सूचना एवं प्रौद्योगिकी उद्योग से आशय उस उद्योग से है, जिसमें कम्प्यूटर और उसके सहायक उपकरणों की सहायता से ज्ञान का प्रसार किया जाता है। इसके अन्तर्गत कम्प्यूटर, संचार, प्रौद्योगिकी और सम्बन्धित सॉफ्टवेयर को शामिल किया जाता है। इसके अन्तर्गत उस सम्पूर्ण व्यवस्था को शामिल किया जाता है, जिसके द्वारा संचार माध्यम और उपकरणों की सहायता से सूचना पहुँचाई जाती है। यह ज्ञान आधारित उद्योग है। वर्ष 2000-01 में इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात 33,138 करोड़ रुपये था जो 2008-09 में बढ़कर 2,35,300 करोड़ रुपये पहुँच गया। भारत में सकल घरेलू उत्पाद में उद्योग का योगदान वर्ष 1999-2000 में 1.2 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2013 में 8 प्रतिशत हो गया है। इससे ज्ञात होता है कि यह उद्योग भारत का सबसे तेज गति से बढ़ता हुआ उद्योग है।
MP Board Class 9th Social Science Chapter 17 अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न
MP Board Class 9th Social Science Chapter 17 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
बहु-विकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
अति लघु उद्योग इकाइयों की अधिकतम विनियोग सीमा है
(i) 5 लाख रुपये
(ii) 15 लाख रुपये
(iii) 20 लाख रुपये
(iv) 25 लाख रुपये
उत्तर:
(iv) 25 लाख रुपये
प्रश्न 2.
वर्तमान में चीनी उत्पादन में भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है?
(i) पहला
(ii) दूसरा
(iii) तीसरा
(iv) चौथा।
उत्तर:
(ii) दूसरा
प्रश्न 3.
विश्व में सीमेण्ट उत्पादन में भारत का कौन-सा स्थान है?
(i) तीसरा
(ii) चौथा
(iii) पाँचवाँ
(iv) छठा।
उत्तर:
(iii) पाँचवाँ
रिक्त स्थान की पूर्ति
- कुटीर उद्योग सिर्फ …………. में चलाये जाते हैं।
- ………. उद्योग भारत का सबसे प्राचीन और प्रमुख उद्योग है।
- जूट के उत्पादन में भारत का विश्व में ………… स्थान है।
- भारत की लगभग …………. प्रतिशत कार्यशील जनसंख्या कृषि पर निर्भर है।
- वर्तमान में लघु उद्योगों की वस्तुओं का देश के कुल निर्यात में ……… प्रतिशत हिस्सा है।
उत्तर:
- ग्रामों
- सूती वस्त्र
- पहला
- 58.4
- 35
सत्य/असत्य
प्रश्न 1.
देश की प्रथम सूती कपड़ा मिल सन् 1818 में कोलकाता में स्थापित की गई थी। (2014)
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 2.
जिन औद्योगिक इकाइयों में 50 लाख रुपये तक की पूँजी लगी हो उन्हें अति उद्योग की श्रेणी में रखा जाता है।
उत्तर:
असत्य
प्रश्न 3.
नेशनल न्यूज प्रिण्ट एण्ड पेपर मिल लिमिटेड नेपानगर (म. प्र.) में है।
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 4.
भारत में लाख का सबसे अधिक उत्पादन छोटा नागपुर पठार में होता है।
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 5.
अनुमान है कि विश्व के चमड़े की कुल आपूर्ति का 20 प्रतिशत चमड़ा भारत में तैयार होता है।
उत्तर:
असत्य
सही.जोड़ी मिलाइए
उत्तर:
- →(घ)
- →(ग)
- →(क)
- →(ङ)
- →(ख)
एक शब्द/वाक्य में उत्तर
प्रश्न 1.
लोहा इस्पात उद्योग को किस वर्ष में लाइसेंस मुक्त कर दिया?
उत्तर:
1991 में
प्रश्न 2.
चीनी उत्पादन में किन दो राज्यों का महत्त्वपूर्ण स्थान है?
उत्तर:
उत्तर प्रदेश एवं महाराष्ट्र
प्रश्न 3.
हथकरघा, खादी उद्योग तथा रेशम उद्योग को किस उद्योग की श्रेणी में रखा गया है?
उत्तर:
ग्राम उद्योग
प्रश्न 4.
देश में काँच बनाने के कारखाने किस राज्य में हैं?
उत्तर:
पश्चिम बंगाल
प्रश्न 5.
भारत में लाख का उत्पादन सबसे अधिक कहाँ होता है?
उत्तर:
छोटा नागपुर का पठार।
MP Board Class 9th Social Science Chapter 17 अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
उद्योगों का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
किसी देश के आर्थिक विकास में उद्योगों की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होती है। उद्योग देश के तीव्र आर्थिक विकास में सहायक होते हैं। उद्योगों के विकास के बिना कोई राष्ट्र समृद्ध नहीं हो सकता है।
प्रश्न 2.
वृहत् उद्योग किसे कहते हैं?
अथवा
बडे पैमाने के उद्योग से क्या आशय है?
उत्तर:
जिन उद्योगों में कारखाना अधिनियम लागू होता है अर्थात् जहाँ अधिक संख्या में श्रमिक कार्य करते हैं व अधिक मात्रा में पूँजी लगी होती है वे उद्योग वृहत् (या बड़े) उद्योग कहलाते हैं।
प्रश्न 3.
मध्यम उद्योगों से क्या आशय है?
उत्तर:
जिन औद्योगिक इकाइयों में प्लाण्ट एवं मशीनरी में पाँच से दस करोड़ रुपये तक की पूँजी लगी होती है, वे औद्योगिक इकाइयाँ मध्यम उद्योगों की श्रेणी में आती हैं। सेवा क्षेत्र वाली इकाइयों के लिए यह सीमा 5 करोड़ रुपये तक रखी गयी है। उदाहरणार्थ-चमड़ा उद्योग, रेशम उद्योग।
प्रश्न 4.
लघु उद्योग किसे कहते हैं?
उत्तर:
वर्तमान में वे सभी औद्योगिक इकाइयाँ लघु उद्योग के अन्तर्गत आती हैं जिनकी अचल सम्पत्ति, संयन्त्र एवं मशीनरी में सीमित तथा सरकार द्वारा स्वीकृत से अधिक पूँजी न लगी हो, साथ ही जिनमें कारखाना अधिनियम लागू नहीं होता।
प्रश्न 5.
कुटीर उद्योगों से क्या आशय है?
उत्तर:
कुटीर उद्योग से आशय ऐसे उद्योगों से है जो पूर्णतया या मुख्यतया परिवार के सदस्यों की सहायता से पूर्णकालिक या अंशकालिक व्यवसाय के रूप में चलाये जाते हैं। ये प्रायः ग्रामीण एवं अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में स्थापित होते हैं तथा अंशकालीन रोजगार प्रदान करते हैं।
प्रश्न 6.
ग्राम उद्योग से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
ये उद्योग ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित किये जाते हैं। ग्रामीण उद्योग दो श्रेणियों में विभाजित किये जा सकते हैं-एक वे हैं जो किसानों द्वारा सहायक धन्धे के रूप में चलाये जाते हैं; जैसे-मुर्गी पालन, करघों पर बुनाई, गाय-भैंस पालन, टोकरियाँ बनाना, रेशम के कीड़े पालना, मधुमक्खियाँ पालना आदि। दूसरे वे हैं जो ग्रामीण कौशल से सम्बन्धित होते हैं; जैसे-मिट्टी के बर्तन बनाना, चमड़े के जूते बनाना, हथकरघा पर कपड़े बुनना आदि।
प्रश्न 7.
देश की प्रथम सूती कपड़ा मिल कब और कहाँ स्थापित की गयी थी?
उत्तर:
देश की प्रथम सूती कपड़ा मिल 1818 में कोलकाता में स्थापित की गई थी।
प्रश्न 8.
सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापित भारत के चार लौह-इस्पात केन्द्र कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
- भिलाई (मध्य प्रदेश)
- दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल)
- राउरकेला (उड़ीसा)
- बोकारो (बिहार)।
MP Board Class 9th Social Science Chapter 17 लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
उद्योग से क्या आशय है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उद्योगों से आशय-जब किसी एक जैसी वस्तु या सेवा का उत्पादन अनेक फर्मों के द्वारा किया जाता है तब ये सभी फर्म मिलकर उद्योग कहलाते हैं; जैसे-लोहा-इस्पात उद्योग के अन्तर्गत दुर्गापुर, राउरकेला, बोकारो तथा टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी सभी शामिल हैं।
‘उद्योग’ की परिधि में वे समस्त उपक्रम आते हैं जिनमें नियोजकों एवं नियोजितों के सहयोग से मानवीय आवश्यकताओं तथा आकांक्षाओं की सन्तुष्टि के लिए एक व्यवस्थित गतिविधि के रूप में वस्तुओं या सेवाओं के उत्पादन का कार्य सम्पन्न किया जाता है।
प्रश्न 2.
भारत में चीनी उद्योग का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चीनी उद्योग-भारत विश्व में गन्ने का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। चीनी के उत्पादन में भी भारत का दूसरा स्थान है। 30 जून, 2016 तक देश में 719 चीनी कारखाने स्थापित हो चुके थे, जबकि वर्ष 1950-51 में इनकी संख्या मात्र 138 थी। स्थापित चीनी मिलों में 326 सहकारी क्षेत्र के अन्तर्गत हैं। चीनी उत्पादन जो 1950-51 में 11.3 लाख टन था, वर्ष 2016-17 में 225-21 लाख टन पहुँच गया। यह मौसमी उद्योग है, अत: इसके लिए सहकारी क्षेत्र उपयुक्त है। देश में चीनी उत्पादन में उत्तर प्रदेश एवं महाराष्ट्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
MP Board Class 9th Social Science Chapter 17 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
उद्योग से क्या आशय है? देश के आर्थिक विकास में उद्योगों की भूमिका क्या है?
उत्तर:
उद्योगों से आशय :
उद्योगों से आशय-जब किसी एक जैसी वस्तु या सेवा का उत्पादन अनेक फर्मों के द्वारा किया जाता है तब ये सभी फर्म मिलकर उद्योग कहलाते हैं; जैसे-लोहा-इस्पात उद्योग के अन्तर्गत दुर्गापुर, राउरकेला, बोकारो तथा टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी सभी शामिल हैं।
‘उद्योग’ की परिधि में वे समस्त उपक्रम आते हैं जिनमें नियोजकों एवं नियोजितों के सहयोग से मानवीय आवश्यकताओं तथा आकांक्षाओं की सन्तुष्टि के लिए एक व्यवस्थित गतिविधि के रूप में वस्तुओं या सेवाओं के उत्पादन का कार्य सम्पन्न किया जाता है।
आर्थिक विकास में उद्योगों की भूमिका :
किसी देश के आर्थिक विकास में उद्योगों की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होती है। उद्योग देश के तीव्र आर्थिक विकास में सहायक होते हैं। बी.एच.येमे के अनुसार, “औद्योगीकरण व्यापक रूप में आर्थिक विकास तथा रहन-सहन की कुंजी माना जाता है। निर्माणी उद्योगों के रूप में, प्रचलित विचारधारा के अनुसार औद्योगीकरण को आर्थिक अस्थिरता एवं निर्धनता को दूर करने की संजीवनी माना गया है।” प्रो. बाइस ने कहा है, “विकास के किसी भी सुदृढ़ कार्यक्रम में औद्योगिक विकास को आवश्यक और अन्तिम रूप से एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी होती है।” अर्थात् उद्योगों के विकास के बिना कोई देश समृद्ध नहीं हो सकता।