MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 9 प्राचीन भारत का इतिहास – MP Board Solutions
Table of content (TOC)
MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 9 प्राचीन भारत का इतिहास
MP Board Class 9th Social Science Chapter 9 पाठान्त अभ्यास
MP Board Class 9th Social Science Chapter 9 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
सही विकल्प चुनकर लिखिए
प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौन-सा नगर सिन्धु सभ्यता से सम्बन्धित नहीं है?
(i) मोहनजोदड़ो
(ii) कालीबंगा
(iii) लोथल
(iv) पाटलिपुत्र।
उत्तर:
(iv) पाटलिपुत्र।
प्रश्न 2.
चन्द्रगुप्त मौर्य के समय कौन-सा विदेशी यात्री भारत आया?
(i) फाह्यान
(ii) ह्वेनसांग
(iii) एरियन
(iv) मेगस्थनीज।
उत्तर:
(i) फाह्यान
सही जोड़ी मिलाइए ‘अ’
उत्तर:
- → (घ)
- → (क)
- → (ख)
- → (ग)
- → (ङ)
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
- जैन धर्म के संस्थापक …………. थे। (2017)
- महात्मा बुद्ध को …………. वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था।
- …………. और ………….. भारत के दो महाकाव्य हैं।
- गुप्तवंश का संस्थापक …………. था।
उत्तर:
- प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव
- बोधि वृक्ष
- रामायण और महाभारत
- श्रीगुप्त।
MP Board Class 9th Social Science Chapter 9 अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
वेदों की संख्या एवं उनके नाम लिखिए। (2014, 16)
उत्तर:
वेद चार हैं। उनके नाम हैं :
- ऋग्वेद
- सामवेद
- यजुर्वेद
- अथर्ववेद।
प्रश्न 2.
सिन्धु सभ्यता के चार प्रमुख नगरों के नाम लिखिए। (2016, 18)
उत्तर:
- मोहनजोदड़ो
- लोथल
- कालीबंगा
- मांडा।
प्रश्न 3.
मेगस्थनीज कौन था? उसके द्वारा रचित ग्रन्थ का नाम लिखिए।
उत्तर:
मेगस्थनीज़ चन्द्रगुप्त के दरबार में राजदूत बनकर आया था। उसने ‘इण्डिका’ नामक ग्रन्थ की रचना की थी।
प्रश्न 4.
प्राचीन भारत के प्रमुख शिक्षा केन्द्रों के नाम लिखिए। (2014, 18)
उत्तर:
प्राचीन भारत के प्रमुख शिक्षा केन्द्र –
- नालन्दा विश्वविद्यालय
- तक्षशिला विश्वविद्यालय
- वल्लभी विश्वविद्यालय
- विक्रमशिला विश्वविद्यालय।
प्रश्न 5.
कौटिल्य (चाणक्य) कौन था? (2018) उसके प्रसिद्ध ग्रन्थ का नाम लिखिए। (2017)
उत्तर:
कौटिल्य (चाणक्य) चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रधानमन्त्री था। उसका वास्तविक नाम विष्णुगुप्त था। चाणक्य ने ‘अर्थशास्त्र’ नामक ग्रन्थ की रचना की थी।
प्रश्न 6.
हूणों के आक्रमणों को विफल करने में कौन-सा गुप्त शासक सफल हुआ?
उत्तर:
हूणों के आक्रमणों को विफल करने में गुप्त शासक स्कन्दगुप्त सफल हुआ।
प्रश्न 7.
विक्रम संवत् किसने चलाया था?
उत्तर:
चन्द्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) ने एक नवीन संवत् को प्रारम्भ किया, जिसे विक्रम संवत् के नाम से जाना जाता है।
MP Board Class 9th Social Science Chapter 9 लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा नगर की खोज किसने की थी? (2015, 17)
उत्तर:
मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा नगर की खोज दयाराम साहनी तथा राखलदास बनर्जी ने की थी। 1921-22 ई. में इन दोनों विद्वानों ने हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में खुदाई कराकर इन नगरों की खोज की। पुरातत्ववेत्ताओं ने पुरातत्व परम्परा के अनुसार इस सभ्यता का नाम इसके सर्वप्रथम ज्ञात स्थल के नाम पर ‘हड़प्पा सभ्यता’ दिया।
प्रश्न 2.
सरस्वती नदी के बारे में प्राप्त नवीन जानकारियों का वर्णन कीजिए। (2008)
उत्तर:
सरस्वती नदी के बारे में की गई खोजों में विष्णु श्रीधर वाकणकर का योगदान महत्त्वपूर्ण है। वैदिककाल में सरस्वती एक बहुत बड़ी नदी थी। इसका उल्लेख वेदों में बार-बार आया है। पिछले 20 वर्षों में हवाई एवं भू-सर्वेक्षणों के माध्यम से सरस्वती नदी के प्रवाह क्षेत्र को रेखांकित करने का प्रयास किया गया है। यह माना गया है कि हिमालय में शिवालिक, श्रृंखलाओं में सरस्वती नदी का उद्गम स्थल रहा होगा, जहाँ से यह अम्बाला, थानेश्वर, कुरुक्षेत्र, पहोवा, सिरसा, हांसी, अग्रोहा, हनुमानगढ़, कालीबंगा होती हुई अनूपगढ़ से सूरतगढ़ तक बहती थी। कालान्तर में भूगर्भीय परिवर्तन के कारण सरस्वती नदी धीरे-धीरे सूख गई और कुछ समय बाद लुप्त हो गई। सरस्वती नदी पर विकसित सभ्यता के विषय में निरन्तर शोध चल रहा है।
प्रश्न 3.
कलिंग युद्ध का भारतीय इतिहास में क्या महत्त्व है? लिखिए। (2018)
अथवा
कलिंग युद्ध किसने जीता था ? कलिंग युद्ध का भारतीय इतिहास में क्या महत्त्व है? (2008)
उत्तर:
अशोक मौर्यवंश का तीसरा और सर्वाधिक प्रसिद्ध सम्राट था। उसने कलिंग से युद्ध किया था। अशोक और कलिंग की सेनाओं के बीच बड़ा भीषण युद्ध हुआ। अन्त में विजय अशोक की हुई। इस युद्ध में डेढ़ लाख लोगों को बन्दी बना लिया गया, एक लाख हताहत हुए और उससे कई गुना अधिक मारे गए। युद्ध की विभीषिका और रक्तचाप देखकर अशोक का हृदय परिवर्तन हो उठा। भयंकर नरसंहार देखकर उसका मन पश्चात्ताप से भर उठा और उसने युद्ध के स्थान पर शान्ति की नीति अपनाई। उसने युद्ध यात्राओं के स्थान पर धर्म यात्राएँ की। उसने युद्धघोष को धर्मघोष में बदल दिया और बौद्ध धर्म का अनुयायी हो गया। कलिंग युद्ध ने अशोक के जीवन को नवीन दिशा प्रदान की।
प्रश्न 4.
चन्द्रगुप्त द्वितीय द्वारा स्थापित वैवाहिक सम्बन्ध का राजनीतिक महत्त्व लिखिए।
उत्तर:
अपने पिता समुद्रगुप्त से प्राप्त साम्राज्य को चन्द्रगुप्त द्वितीय ने अधिक सुदृढ़ और सुरक्षित बनाया। चन्द्रगुप्त ने नागवंश की राजकुमारी कुबेरनागा से विवाह किया। इससे दोनों राजवंशों में मित्रता हुई। उसने अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह वाकाटक नरेश रुद्रसेन द्वितीय के साथ किया। इस सम्बन्ध से चन्द्रगुप्त को शकों पर नियन्त्रण प्राप्त करने में सफलता मिली। यह विवाह सम्बन्ध राजनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुए। कदम्बवंश की राजकन्या का विवाह भी गुप्तवंश में हुआ था। इस विवाह सम्बन्ध द्वारा चन्द्रगुप्त द्वितीय का यश दक्षिण भारत में भी फैल गया। चन्द्रगुप्त द्वितीय के लिये ‘विक्रमादित्य’ उपाधि का उल्लेख मिलता है।
प्रश्न 5.
गुप्तकाल की शासन व्यवस्था की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
मौर्य शासकों की भाँति गुप्तकाल के राजाओं ने भी लोक कल्याण को प्रशासन का मूल आधार बनाया। राजा राज्य का सर्वोच्च अधिकारी था, राज्य की अन्तिम सत्ता उसी के हाथ में थी। राजा की सहायता के लिये मन्त्रिपरिषद् व अन्य पदाधिकारी होते थे। राज्य की आय का प्रमुख स्रोत ‘भूमिकर’ था जिसे ‘भाग’ कहते थे। यह सामान्यतया उपज का 1/6 भाग हुआ करता था। गुप्त प्रशासन तीन भागों में विभाजित था-केन्द्रीय, प्रान्तीय व स्थानीय शासन। गुप्त शासकों का ध्येय जनकल्याण था। इस हेतु उन्होंने औषधालय, चिकित्सालय, धर्मशालाएँ, पाठशालाएँ, सड़कें विश्रामगृह आदि बनवाये।
प्रश्न 6.
हर्ष के साम्राज्य विस्तार के बारे में लिखिए। (2008)
उत्तर:
सम्राट हर्षवर्धन थानेश्वर के शासक प्रभाकर वर्धन का पुत्र था। प्रभाकर वर्धन के बाद उसका पुत्र राज्यवर्धन गद्दी पर बैठा। राज्यवर्धन अपनी बहन राज्यश्री के पति कन्नौज नरेश गृहवर्मा की मदद के लिये मालवा शासक देवगुरु से संघर्षरत रहा और देवगुरु ने गृहवर्मा की हत्या कर दी। राज्यवर्धन ने देवगुरु को पराजित किया किन्तु देवगुरु के मित्र बंगाल नरेश शशांक ने धोखे से राज्यवर्धन का वध कर दिया। इन परिस्थितियों में हर्ष 16 वर्ष की आयु में सिंहासन पर बैठा। उसकी बहन के कोई सन्तान न होने से कन्नौज का राज्य भी उसे ही मिला। इस प्रकार वह थानेश्वर और कन्नौज दोनों का स्वामी हो गया। उसका साम्राज्य उत्तर में हिमालय से दक्षिण में नर्मदा नदी तक, पूरब में बंगाल से सिन्धु तक फैला हुआ था।
MP Board Class 9th Social Science Chapter 9 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
वैदिक सभ्यता का वर्णन कीजिए। (2009, 14)
अथवा
वैदिक सभ्यता में धार्मिक जीवन का वर्णन कीजिए। (2011) [संकेत- धार्मिक जीवन शीर्षक देखें।
उत्तर:
ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद इन चारों वेदों एवं अन्य समकालीन साहित्य लेखन के काल को वैदिक सभ्यता के नाम से जाना जाता है। इसकी विवेचना अग्र प्रकार कर सकते हैं
(1) सामाजिक जीवन :
वैदिक काल का भारतीय समाज आर्य ‘जनों’ से मिलकर बना था। आर्यों के पास हजारों पालतू पशु होते थे। जानवरों के लिये जहाँ चारा पानी उपलब्ध होता था, वहीं ये बस जाते थे। आर्यों के सामाजिक संगठन का मुख्य आधार परिवार या कुटुम्ब था। परिवार का स्वामी या मुखिया सबसे वयोवृद्ध पुरुष होता था। वैदिक समाज में वर्ण व्यवस्था प्रचलित थी। वर्ण चार थे-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र। सामाजिक व्यवस्था के संचालन के लिये आर्यों ने अपने जीवन को सौ वर्ष का मानकर उसे चार आश्रमों में बाँटा था, यथा-ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं सन्यास आश्रम। स्त्रियों को समाज में उच्च स्थान प्राप्त था। दहेज प्रथा, पर्दाप्रथा, बाल विवाह जैसी कुप्रथाएँ प्रचलन में नहीं थीं। सूती, ऊनी, रेशमी वस्त्र उपयोग में लाये जाते थे। स्त्रियाँ शृंगार में विशेष रुचि लेती थीं। चावल, जौ, घी, दूध आर्यों का प्रमुख भोजन था। रथदौड़, घुड़सवारी, आखेट, नृत्य, जुआ, चौपड़ आदि मनोरंजन के साधन थे।
(2) आर्थिक जीवन :
वैदिक सभ्यता ग्रामीण एवं कृषि प्रधान सभ्यता थी। इस समय गेहूँ, जौ, उड़द, मसूर तथा तिल की खेती होती थी। कृषि के साथ पशुपालन अन्य मुख्य व्यवसाय था। घोड़े, गाय, बैल, भेड़, बकरी आदि पालतू पशु थे। गृह उद्योग और दस्तकारी उन्नत अवस्था में थे। बढ़ई, लुहार, सुनार, चर्मकार सभी के कार्यों का यथोचित महत्त्व था। आन्तरिक और बाह्य दोनों प्रकार का व्यापार होता था। वस्तु विनिमय प्रणाली का प्रचलन था। गाय वस्तु विनिमय का प्रमुख साधन थी। गाय के बाद ‘निष्क’ का उपयोग वस्तु विनिमय के लिये किया जाता था।
(3) धार्मिक जीवन :
आर्यों के धार्मिक जीवन की निम्नलिखित विशेषताएँ थीं –
- वैदिक आर्य प्रकृति के उपासक थे। वे प्रकृति के विभिन्न स्वरूपों की पूजा करते थे। सूर्य, चन्द्र, वायु, मेघ, उषा, अदिति प्रमुख देवी-देवता थे।
- प्रत्येक आर्य के लिये यज्ञ का विधान था। उनका विश्वास था कि यज्ञ से देवता प्रसन्न होते हैं। पूजा पद्धति का मुख्य आधार ‘यज्ञ’ थे।
- अनेक देवताओं को पूजते हुये वे एकेश्वरवाद में विश्वास करते थे।
- अश्वमेध, राजसूय, बाजपेय जैसे महायज्ञों का सम्पादन इसी काल में हुआ।
(4) राजनीतिक जीवन :
आर्यों के राजनीतिक जीवन की प्रमुख विशेषताएँ निम्न थीं –
- वैदिक आर्य अनेक ‘जन’ (कबीले) के रूप में संगठित थे। एक ‘जन’ में एक ‘वंश’ या ‘परिवार’ के व्यक्ति होते थे।
- राजनीतिक व्यवस्था का आधार कुटुम्ब था। कुटुम्ब का प्रधान पिता होता था। अनेक कुटुम्बों को मिलाकर एक ‘ग्राम’ बनता था।
- अनेक ग्रामों को मिलाकर ‘विंश’ बनता था। जिसका प्रधान ‘विंशपति’ कहलाता था।
- अनेक विंशों को मिलाकर ‘जन’ बनता था जिसका प्रधान ‘गोप’ होता था।
- उत्तर वैदिक काल में राजा की शक्ति और प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई। राजा के प्रमुख कर्तव्य प्रजा की रक्षा करना, युद्ध करना, शान्ति बनाये रखना तथा प्रजा को न्याय प्रदान करना था।
प्रश्न 2.
सिन्धु सभ्यता (हड़प्पा संस्कृति) की क्या देन है? समझाइए। (2008, 09, 17)
उत्तर:
सिन्धु सभ्यता (हड़प्पा संस्कृति) की प्रमुख देन निम्नलिखित हैं
(1) श्रेष्ठ प्राचीनतम संस्कृति:
हड़प्पा संस्कृति को भारत की श्रेष्ठ प्राचीनतम संस्कृति माना जाता है क्योंकि इस संस्कृति की जानकारी से पूर्व भारत के इतिहास को वैदिक काल से प्रारम्भ माना जाता था। यह दयाराम साहनी तथा राखलदास बनर्जी की ऐतिहासिक खोजों का परिणाम है कि हमें यह ज्ञात हो सका कि भारत में आर्यों के आगमन से पूर्व यहाँ एक नगर सभ्यता फल-फूल रही थी। वास्तव में, हड़प्पा संस्कृति का सम्पूर्ण अध्ययन करने के पश्चात् हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि यह अत्यन्त प्राचीन संस्कृति होने के पश्चात् भी एक विकसित तथा उच्च कोटि की नगर सभ्यता थी।
(2) श्रेष्ठतम सुनियोजित नगर व्यवस्था का प्रारम्भ :
हड़प्पा संस्कृति में ही व्यवस्थित ढंग से नगरों की स्थापना का कार्य प्रारम्भ हुआ था। एक विद्वान के अनुसार हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के नगरों की स्थापना ऐसे सुव्यवस्थित ढंग से की गई थी कि जिसका उदाहरण संसार में हमें और कहीं नहीं मिलता। आधुनिक काल की तरह नगरों में छोटी व बड़ी सड़कों का निर्माण किया गया था।
(3) उच्चतम नगर स्वच्छता :
नगरों की स्वच्छता का ध्यान जितना इस संस्कृति में रखा जाता था उतना तत्कालीन किसी भी सभ्यता में नहीं किया जाता था। नगरों में छोटी व बड़ी नालियों की व्यवस्था की जाती थी।
(4) नागरिक सुविधाओं का ध्यान :
हड़प्पा संस्कृति का नगर-प्रबन्ध भी उत्तम तथा व्यवस्थित ढंग का था। ऐसा किसी भी प्राचीन संस्कृति में देखने को नहीं मिलता। स्थान-स्थान पर जल पीने की व्यवस्था थी तो उचित ढंग से स्नान करने के लिए सार्वजनिक स्नानागारों की भी व्यवस्था थी। यात्रियों के लिए धर्मशालाएँ भी बनीं थीं।
(5) आकर्षक तथा उपयोगी कला का विकास :
वास्तव में भारतीय कला का प्रारम्भ भी इस संस्कृति के काल से प्रारम्भ होता है। भवन निर्माण कला, चित्रकला, मूर्तिकला आदि का विकास यहाँ अपूर्व हुआ था। इस संस्कृति की कला की निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ थीं –
- कला में बनावटीपन का प्रभाव न होकर स्वाभाविकता थी।
- भवनों का निर्माण उपयोगिता को ध्यान में रखकर हुआ था।
- उपयोगिता के साथ-साथ कला में अपूर्व सौन्दर्य तथा आकर्षण भी था।
- संगीत तथा नृत्यकला का भी यहाँ अपूर्व विकास हुआ।
- ताम्रपत्र तथा मुद्रा कला की भी अपूर्व प्रगति हुई थी।
- लेखन कला का भी प्रारम्भ इस सभ्यता से ही हुआ।
(6) विकसित धर्म-हड़प्पाकालीन धर्म एक विकसित धर्म था। उस काल के धर्म का प्रभाव वैदिककालीन धर्म पर पड़ने के साथ-साथ वर्तमान हिन्दू धर्म पर भी पड़ा है। अन्य शब्दों में उस काल की अनेक धार्मिक रीतियाँ आज के धर्म का भी अंग बनी हुई हैं। शिव तथा पृथ्वी माता की पूजा, लिंग पूजा, पीपल पूजा, सर्प पूजा तथा मूर्ति पूजा, वर्तमान हिन्दू धर्म का एक प्रमुख अंग है।
प्रश्न 3.
चन्द्रगुप्त मौर्य की शासन व्यवस्था की विशेषताएँ लिखिए। (2008, 09, 12, 14, 15, 17)
उत्तर :
चन्द्रगुप्त मौर्य की गणना भारत के महानतम शासकों में की जाती है। चन्द्रगुप्त मौर्य महान् विजेता, महान् कूटनीतिज्ञ, कुशल प्रशासक, धर्मपरायण एवं प्रजा हितैषी शासक था। उसके शासन की विशेषताएँ निम्नानुसार हैं –
- सम्राट, साम्राज्य का सर्वोच्च अधिकारी होता था। वह सेना, न्याय-व्यवहार का प्रधान होता था। वह प्रजाहित के कार्यों में संलग्न रहता था।
- राजा की सहायता हेतु मन्त्रिपरिषद् थी।
- चन्द्रगुप्त मौर्य की गुप्तचर व्यवस्था, न्याय व्यवस्था एवं सैन्य संगठन सुदृढ़ था।
- राज्य की आय का प्रमुख साधन भूमिकर था। उपज का 1/6 भाग कर के रूप में लिया जाता था।
- कर एकत्र करने वाला अधिकारी ‘समाहर्ता’ कहलाता था।
- साम्राज्य प्रान्तों में विभाजित थे जो चक्र कहलाते थे। इनका शासन राजकुमार अथवा राजपरिवार के व्यक्तियों द्वारा होता था।
- नगरों का प्रबन्ध करने हेतु छः समितियाँ होती थीं। प्रत्येक में पाँच-पाँच सदस्य होते थे।
- चन्द्रगुप्त मौर्य का सैन्य संगठन सुदृढ़ था। इसकी देखरेख 6 समितियों द्वारा होती थी। ये समितियाँ-नौ सेना समिति, पदाति-सेना समिति, अश्व-सेना समिति, रथ सेना समिति, गज सेना समिति, यातायात व युद्ध सामग्री वाहिनी समिति थी।
- चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन में दण्ड-विधान कठोर था।
- तत्कालीन समय में दो प्रकार के न्यायालय विद्यमान थे –
- धर्मस्थीय (दीवानी) न्यायालय
- कंटक शोधन (फौजदारी) न्यायालय।
प्रश्न 4.
अशोक के धम्म को समझाते हुए उसके धर्म की विशेषताएँ बताइए। (2009, 13, 16)
अथवा
अशोक के धम्म की तीन विशेषताएँ लिखिए। (2018)
उत्तर:
अशोक का धम्म (धर्म)-अपने प्रारम्भिक काल में अशोक हिन्दू धर्म का अनुयायी था परन्तु कलिंग युद्ध के उपरान्त उसने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। अपने लेखों में उसने बौद्धधर्म के मूल सिद्धान्तों का ही नहीं अपितु उसके कुछ नैतिक सिद्धान्तों का प्रचार किया। उसका धम्म सब धर्मों का सार था। अशोक के धम्म की निम्नलिखित विशेषताएँ थीं –
- अशोक के धर्म की प्रमुख विशेषता ‘सार्वभौमिकता’ है, अर्थात् उसने अपने धर्म में सभी धर्मों के सद्गुणों का समावेश किया।
- अशोक ने अपने धर्म में अहिंसा को विशेष महत्त्व दिया। उसने उन यज्ञों को बन्द करवा दिया जिनमें पशुबलि होती थी।
- शोक ने अपने धर्म में अनुशासन तथा शिष्टाचार को भी विशेष महत्त्व दिया। उसने अपने शिलालेखों में उत्कीर्ण किया कि-“माता-पिता की आज्ञा का पालन होना चाहिए तथा इसी प्रकार गुरुजनों की आज्ञा का भी पालन होना चाहिए।”
- अशोक ने सेवकों, मित्रों तथा ब्राह्मणों के साथ सद्-व्यवहार करने पर भी बल दिया।
- अशोक ने धार्मिक आडम्बरों का विशेष विरोध किया तथा सत्य बोलने तथा सद् आचरण पर विशेष बल दिया।
- अशोक का धम्म सर्वमंगलकारी है जिसका मूल उद्देश्य प्राणी का मानसिक, नैतिक तथा आध्यात्मिक उत्थान करना था। उसका धम्म अत्यन्त सरल तथा व्यावहारिक था।
प्रश्न 5.
गुप्तकाल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहा गया है, इस कथन की व्याख्या (2008, 11, 12, 13, 15)
अथवा
गुप्तकाल को भारतीय इतिहास का “स्वर्ण युग” क्यों कहा गया है? (2018)
उत्तर:
गुप्तकाल में भारत की चहुँमुखी उन्नति हुई। इसी कारण इस काल को स्वर्ण युग की संज्ञा दी गई है। गुप्तकाल को स्वर्णयुग कहलाने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –
- महान शासकों का युग :
गुप्तकाल की प्रमुख विशेषता थी कि इस युग में अनेक महान् शासकों ने जन्म लिया। चन्द्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त द्वितीय तथा स्कन्दगुप्त इस युग के महान शासक थे। समुद्रगुप्त द्वारा की गई महान् सैनिक विजयों के कारण उसे ‘भारत का नेपोलियन’ कहा जाता है। चन्द्रगुप्त द्वितीय को ‘विक्रमादित्य’ की उपाधि प्राप्त हुई। स्कन्दगुप्त भी बड़ा वीर और पराक्रमी था। - राजनीतिक एकता का युग :
गुप्तकाल से पूर्व के दीर्घकाल में भारत छोटे-छोटे अनेक राज्यों में विभक्त था। विदेशी शक तथा कुषाणों ने काठियावाड़, गुजरात और महाराष्ट्र प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था। विदेशी शक्तियों का उन्मूलन तथा छोटे-छोटे राज्यों को पराजित कर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना करना गुप्त सम्राटों का ही काम था। - आर्थिक सम्पन्नता का युग :
गुप्तकाल में आर्थिक क्षेत्र में अत्यधिक उन्नति हुई थी। आन्तरिक शान्ति, कुशल प्रशासनिक व्यवस्था तथा यातायात की समुचित व्यवस्था के कारण भारत के आन्तरिक तथा बाह्य व्यापार को पर्याप्त प्रोत्साहन मिला। गुप्तकाल में भारत के चीन, जावा, बर्मा (म्यांमार) तथा रोम आदि देशों से व्यापारिक सम्बन्ध थे।। - लोक-कल्याणकारी राज्य :
गुप्तकाल के शासक केवल निरंकुशता में ही विश्वास नहीं करते थे वरन् उनके अन्दर लोक-कल्याण की भी भावना थी। चीनी यात्री फाह्यान के यात्रा विवरण से स्पष्ट हो जाता है कि गुप्त सम्राट राज्य की आय का एक विशाल भाग जन या लोक-कल्याण में खर्च करते थे। - धार्मिक सहिष्णुता की स्थापना :
गुप्त सम्राट वैष्णव धर्म के अनुयायी थे परन्तु वे बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म का भी आदर करते थे। प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म के अनुसार उपासना तथा पूजा-पाठ की स्वतन्त्रता थी।
कीजिए। - साहित्य का अपूर्व विकास :
गुप्तकाल में साहित्य का अपूर्व विकास हुआ। कालीदास, विशाखदत्त तथा भास इस काल के महान् साहित्यकार थे।। - विज्ञान का विकास :
ज्योतिष, रसायनशास्त्र, गणित तथा खगोलशास्त्र का इस काल में अपूर्व विकास हुआ था। दशमलव प्रणाली की खोज इस काल में ही हुई थी। आर्यभट्ट, वराहमिहिर तथा नागार्जुन जैसे श्रेष्ठ वैज्ञानिक तथा खगोलशास्त्री इस काल में ही हुए थे। - ललित कलाओं का अपूर्व विकास :
गुप्तकाल ललित कलाओं का भी स्वर्ण युग माना जाता है। स्थापत्य कला, मूर्तिकला तथा चित्रकला का इस युग में अपूर्व विकास हुआ। अजन्ता की गुफाओं के अधिकांश चित्र इस युग में ही बनाये गये थे।
प्रश्न 6.
समुद्रगुप्त के विजय अभियान का संक्षिप्त विवरण दीजिए। (2009)
उत्तर:
समुद्रगुप्त गुप्तकालीन भारत का एक महान दिग्विजयी सम्राट था। अपने शासन काल में उसने अनेक राजाओं को परास्त कर अपने साम्राज्य का अपूर्व विस्तार किया। उसकी प्रमुख दिग्विजयें निम्नलिखित थीं
(1) उत्तरी भारत की विजय :
उत्तरी भारत की विजयों का उल्लेख प्रयाग प्रशस्ति में मिलता है। इस प्रशस्ति के अनुसार समुद्रगुप्त ने आर्यावर्त के 9 राज्यों को परास्त कर अपने साम्राज्य में मिला लिया था। ये राज्य थे-
- नागदत्त
- बलवर्मन
- रुद्रदेव
- मतिल
- चन्द्रवर्मन
- गणपति नाग
- नागसेन
- अच्युत
- नंदिन।
(2) दक्षिण भारत की विजय :
उत्तरी भारत पर विजय प्राप्त करने के पश्चात् समुद्रगुप्त ने दक्षिण भारत के लगभग 12 राज्यों को पराजित कर अपने साम्राज्य में न मिलाकर अपनी अधीनता ही स्वीकार करायी तथा वार्षिक कर लेता रहा। समुद्रगुप्त ने यह नीति इस कारण अपनायी क्योंकि दक्षिण के राज्य उसके साम्राज्य से दूर पड़ते थे अतः प्रशासनिक कठिनाइयाँ आ सकती थीं।
(3) आटविक राज्यों पर विजय प्राप्त करना :
अभिलेखों से ज्ञात होता है कि जबलपुर तथा नागपुर के निकट 18 अटवी राज्य थे। इन समस्त राज्यों के राजाओं को पराजित कर अपना सेवक बनाया।
(4) सीमान्त राज्यों की विजय :
समुद्रगुप्त ने सीमान्त राज्यों पर भी अपना प्रभुत्व स्थापित किया। उसने कुछ राज्यों को तो पराजित किया तो कुछ ने बिना युद्ध किये ही उसकी अधीनता स्वीकार कर ली। प्रमुख सीमान्त राज्य निम्नलिखित थे-
- समतट
- दबाक
- कामरूप
- नेपाल
- कर्तुरपुर।।
(5) गणराज्यों की विजय :
इस काल में अनेक गणराज्य भी थे जो गुप्त साम्राज्य के दक्षिण-पश्चिम में स्थित थे। इनमें प्रजातन्त्रात्मक शासन व्यवस्था का प्रचलन था। इन गणराज्यों ने बिना युद्ध किए ही समुद्रगुप्त की अधीनता स्वीकार कर ली। प्रमुख गणराज्य थे-मद्रक, रवरपारिक, मालव, अर्जुनायन, आभीर तथा हनकानिक।
प्रश्न 7.
सम्राट हर्षवर्धन के शासन प्रबन्ध का वर्णन कीजिए। (2008, 09, 10, 16)
अथवा
सम्राट हर्षवर्धन की शासन व्यवस्था की तीन विशेषताएँ लिखिए। (2017, 18)
उत्तर:
सम्राट हर्षवर्धन के शासन प्रबन्ध का वर्णन निम्न प्रकार है –
(1) राजतन्त्रात्मक शासन :
हर्ष के शासन का स्वरूप राजतन्त्रात्मक था। केन्द्रीय शासन में सम्राट का स्थान सर्वोपरि था। वही सेना का प्रधान और सर्वोच्च न्यायाधीश होता था। प्रजा का कल्याण उसका मुख्य उद्देश्य था। सम्राट की सहायता के लिये अनेक मंत्री व सचिव होते थे। मन्त्रिपरिषद् के निर्णय को मानने को सम्राट बाध्य नहीं था।
(2) साम्राज्य की विशालता :
साम्राज्य की विशालता के कारण प्रशासकीय सुविधा हेतु उसे प्रान्तों में विभाजित किया गया। प्रान्त, भुक्ति या देश कहलाते थे। भुक्ति के शासक उपरिक कहलाते थे। इन पदों पर राजवंश के राजकुमार या राजपरिवार के सदस्य ही नियुक्त होते थे। प्रत्येक प्रान्त अनेक विषय (जिलों) में विभाजित था। विषय का शासक विषयपति कहलाता था। यह जिले की विभिन्न गतिविधियों का निरीक्षण करता था। शासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम होती थी।
(3) कठोर दण्ड विधान :
हर्ष के शासनकाल में दण्ड का विधान बहुत कठोर था। कुछ अपराधों के लिये अंग-भंग का दण्ड दिया जाता था। दण्ड विधान कठोर होने से अपराध कम होते थे।
(4) राज्य की आय :
राज्य की आय का प्रमुख साधन भूमिकर था। भूमिकर सामान्य उपज का 1/6 भाग लिया जाता था। अनाज के रूप में कर चुकाने की व्यवस्था थी। इसके अतिरिक्त मण्डी, घाटों, व्यापारियों पर कर व अर्थदण्ड राज्य की आय के प्रमुख साधन थे।
(5) महान् शासक :
हर्ष भारत के महान् शासकों में से एक था। सामान्यतः यह माना जाता है कि हर्षवर्धन का सम्पूर्ण उत्तरी भारत में एकछत्र राज्य था। वह महान् विजेता, कुशल प्रशासक, लोक कल्याणकारी, महान् धर्मपरायण, विद्या-प्रेमी व महान् दानी था।
MP Board Class 9th Social Science Chapter 9 अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न
MP Board Class 9th Social Science Chapter 9 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
बहु-विकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
सिन्धु सभ्यता की खोज डा. दयाराम साहनी ने हड़प्पा नामक स्थल पर कब की थी?
(i) सन् 1901
(ii) सन् 1951
(iii) सन् 1921
(iv) सन् 1961
उत्तर:
(iii) सन् 1921
प्रश्न 2.
मोहनजोदड़ो का शाब्दिक अर्थ क्या है? (2009)
(i) मुर्दो का टीला
(ii) भगवान राम की जन्मस्थली
(iii) महावीर स्वामी का घर
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(i) मुर्दो का टीला
प्रश्न 3.
राजतरंगिणी के लेखक (2008, 09)
(i) कौटिल्य
(ii) पाणिनी
(iii) कल्हण
(iv) हर्ष।
उत्तर:
(iii) कल्हण
प्रश्न 4.
वेदों की संख्या है (2011)
(i) 4
(ii) 6
(iii) 5
(iv) 81
उत्तर:
(i) 4
प्रश्न 5.
सामवेद, यजुर्वेद व अथर्ववेद की रचना किस काल में की गई?
(i) ऋग्वैदिक काल,
(ii) वैदिक काल
(iii) उत्तर काल,
(iv) सिन्धु सभ्यता।
उत्तर:
(ii) वैदिक काल
प्रश्न 6.
जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर कौन थे? (2009)
(i) वर्धमान महावीर स्वामी
(ii) महात्मा बुद्ध
(iii) दिगम्बर जैन
(iv) श्वेताम्बर जैन।
उत्तर:
(i) वर्धमान महावीर स्वामी
प्रश्न 7.
बौद्ध धर्म के संस्थापक का नाम क्या है? (2009)
(i) महावीर जैन
(ii) महात्मा बुद्ध
(iii) शुद्धोधन
(iv) हर्षवर्द्धन।
उत्तर:
(ii) महात्मा बुद्ध
प्रश्न 8.
महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति कहाँ हुई?
(i) पीपल वृक्ष
(ii) बोधि वृक्ष
(iii) बरगद वृक्ष
(iv) नीम वृक्ष।
उत्तर:
(ii) बोधि वृक्ष
प्रश्न 9.
‘मुद्रा राक्षस’ की रचना किसने की?
(i) कौटिल्य
(ii) कालिदास
(iii) विशाखदत्त
(iv) मेगस्थनीज।
उत्तर:
(iii) विशाखदत्त
प्रश्न 10.
‘इण्डिका’ की रचना किस लेखक ने की थी?
(i) कौटिल्य
(ii) कालिदास
(iii) विशाखदत्त
(iv) मेगस्थनीज।
उत्तर:
(iv) मेगस्थनीज।
प्रश्न 11.
यूनानी लेखकों ने अपने ग्रन्थों में चन्द्रगुप्त मौर्य को किस नाम से सम्बोधित किया है?
(i) सेन्ड्रोकोटस
(ii) सेल्यूकस
(iii) बेसेनियो
(iv) एन्टोनियो।
उत्तर:
(i) सेन्ड्रोकोटस
प्रश्न 12.
किस शासक को भारतीय नेपोलियन कहा जाता है? (2008, 17)
(i) स्कन्दगुप्त
(ii) समुद्रगुप्त
(iii) श्रीगुप्त
(iv) चन्द्रगुप्त।
उत्तर:
(ii) समुद्रगुप्त
प्रश्न 13.
चन्द्रगुप्त द्वितीय को किस उपाधि से विभूषित किया गया?
(i) नेपोलियन
(ii) विक्रमादित्य
(iii) हिटलर
(iv) कौटिल्य।
उत्तर:
(ii) विक्रमादित्य
प्रश्न 14.
सम्राट हर्षवर्धन किस शासक का पुत्र था?
(i) राज्यवर्धन
(ii) विजयवर्धन
(iii) प्रभाकर वर्धन
(iv) गृहवर्मा।
उत्तर:
(ii) विजयवर्धन
रिक्त स्थान पूर्ति
- विक्रम संवत् …………. ने चलाया था। (2008)
- सिन्धु सभ्यता की खोज सन् ……… में हुई। (2015)
- मोहनजोदड़ो की खोज …………. ने की थी। (2012)
- ………. में अनेक जनपदों का उल्लेख है। (2012)
- ………. विश्व का प्राचीनतम ग्रन्थ है।
- नंदवंश के शासनकाल में …………. का भारत पर आक्रमण हुआ। (2010)
- मौर्य वंश का अन्तिम शासक …………. था। (2008)
- बुद्ध का जन्म …………. नामक स्थान पर हुआ। (2011)
- अशोक महान ………… का पुत्र था। (2009)
- मोहनजोदड़ो में उत्खनन में एक विशाल …………. मिला है। (2014)
- बौद्ध धर्म के संस्थापक …………. थे। (2016)
उत्तर:
- चन्द्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य)
- 1921 ई.
- राखलदास बनर्जी
- महाभारत
- ऋग्वेद
- चन्द्रगुप्त मौर्य
- वृहद्रथ
- लुम्बिनी
- बिन्दुसार
- स्नानागार
- गौतम बुद्ध।
सत्य/असत्य
प्रश्न 1.
सिन्धु सभ्यता में मुख्य व्यवसाय पशुपालन था। (2008)
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 2.
चाणक्य सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य का गुरु था। (2008)
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 3.
सामवेद विश्व का प्राचीनतम ग्रन्थ है। (2008)
उत्तर:
असत्य
प्रश्न 4.
चन्द्रगुप्त द्वितीय के लिए ‘विक्रमादित्य’ उपाधि का उल्लेख मिलता है। (2011)
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 5.
महात्मा बुद्ध का जन्म लुम्बिनी नामक स्थान पर हुआ था। (2009)
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 6.
वर्द्धमान महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे। (2009)
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 7.
विक्रमादित्य उज्जैन के न्यायप्रिय शासक थे। (2010)
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 8.
चन्द्रगुप्त मौर्य की गणना भारत के महानतम् शासकों में की जाती है। (2012)
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 9.
ऋग्वैदिक काल 1500 ई. पू. से 1000 ई. पू. माना जाता है। (2012)
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 10.
चाणक्य का सम्बन्ध अर्थशास्त्र से है। (2013)
उत्तर:
सत्य
सही जोड़ी मिलाइए
उत्तर:
- → (ग)
- → (घ)
- → (ङ)
- → (क)
- → (ख)
एक शब्द/वाक्य में उत्तर
प्रश्न 1.
महान चरित्र के जीवन से सम्बन्धित विस्तृत काव्य रचना। (2008)
उत्तर:
महाकाव्य
प्रश्न 2.
विक्रम संवत् किसने चलाया? (2008)
उत्तर:
चन्द्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य)
प्रश्न 3.
मौर्य साम्राज्य का संस्थापक कौन था? (2008)
उत्तर:
चन्द्रगुप्त मौर्य
प्रश्न 4.
किसी भी प्रकार का संग्रह नहीं करना। (2008)
उत्तर:
अपरिग्रह
प्रश्न 5.
जैन धर्म के संस्थापक मुनि। (2009, 11)
उत्तर:
महावीर स्वामी
प्रश्न 6.
चन्द्रगुप्त मौर्य के समय कौन-सा विदेशी यात्री भारत आया था?
(2014)
उत्तर:
फाह्यान।
MP Board Class 9th Social Science Chapter 9 अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
प्राचीन भारत के इतिहास का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
प्राचीन भारत के इतिहास का अध्ययन करके ही हम प्राचीन भारतीय संस्कृति की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इसके अध्ययन से ही हमें ज्ञात होता है कि मानव ने पाषाण युग से लौह युग में किस प्रकार प्रवेश किया तथा आध्यात्मिक, कलात्मक तथा राजनीतिक क्षेत्रों की प्रगति की।
प्रश्न 2.
प्राचीन भारतीय इतिहास पर प्रकाश डालने वाले साहित्यिक स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वेद, आरण्यक, उपनिषद्, वेदांग, सूत्र, महाकाव्य, स्मृति, पुराण, बौद्ध साहित्य, जैन साहित्य, मुद्राराक्षस, अर्थशास्त्र, महाभाष्य, अष्टाध्यायी, राजतरंगिणी आदि साहित्यिक स्रोत प्राचीन भारतीय इतिहास पर प्रकाश डालते हैं।
प्रश्न 3.
प्राचीन भारत के अध्ययन के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्रोत क्या है?
उत्तर:
पुरातात्विक सामग्री; जैसे-अभिलेख, शिलालेख, स्तम्भलेख, ताम्रपत्र लेख, भोजपत्र लेख, मूर्तिलेख, मुद्राएँ, स्मारक आदि प्राचीन भारत के अध्ययन के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।
प्रश्न 4.
लोथल तथा कालीबंगा कहाँ स्थित हैं ? यह प्राचीन इतिहास में क्यों प्रसिद्ध हैं?
उत्तर:
लोथल-यह गुजरात में रंगपुर के खण्डहरों से 48 मीटर उत्तर में स्थित है। कालीबंगा-यह राजस्थान के गंगानगर जिले में सरस्वती नदी के किनारे स्थित है। ये दोनों सिन्धु सभ्यता के प्रमुख नगर थे। इन नगरों में खुदाई में प्राप्त वस्तुओं से अनेक बातों का ज्ञान होता है।
प्रश्न 5.
सिन्धु घाटी सभ्यता किसे कहते हैं?
उत्तर:
भारत और पाकिस्तान के उत्तरी पश्चिमी भाग में सिन्धु व उसकी सहायक नदियों की घाटियों में जो नगर सभ्यता विकसित हुई, उसे सामान्यतः सिन्धु घाटी सभ्यता कहते हैं।
प्रश्न 6.
ऋग्वेद के सूक्तों की रचना कहाँ हुई थी?
उत्तर:
ऋग्वेद के सूक्तों की रचना सिन्धु घाटी के तट पर हुई थी।
प्रश्न 7.
वैदिक सभ्यता (काल) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद इन चारों वेदों एवं अन्य समकालीन साहित्य लेखन के काल को वैदिक सभ्यता के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 8.
वैदिक समाज में कौन-कौन से वर्ण थे?
उत्तर:
वैदिक समाज में चार वर्ण थे-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र।
प्रश्न 9.
वैदिक समाज में स्त्रियों की दशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वैदिक समाज में स्त्रियों को उच्च स्थान प्राप्त था। वे उच्च शिक्षा प्राप्त करती थीं तथा समस्त सामाजिक व धार्मिक कार्यों में भाग लेती थीं। दहेज प्रथा, पर्दा प्रथा, बाल-विवाह जैसी कुप्रथाएँ प्रचलन में नहीं थीं।
प्रश्न 10.
उन विदेशी यात्रियों के नाम लिखिए जिनके विवरण प्राचीन भारतीय इतिहास पर प्रकाश डालते हैं ?
उत्तर:
मेगस्थनीज, फाह्यान तथा ह्वेनसांग नामक विदेशी यात्री भारत आये थे। इनके विवरण प्राचीन भारतीय इतिहास पर प्रकाश डालते हैं।
प्रश्न 11.
प्राचीन भारत में अभिलेख किस भाषा में लिखे गये थे?
उत्तर:
प्राचीन भारत में अभिलेख प्राकृत तथा संस्कृत भाषा में लिखे गये थे।
प्रश्न 12.
वैदिक आर्य किसके उपासक होते थे?
उत्तर:
वैदिक आर्य प्रकृति के उपासक थे। वे प्रकृति के विभिन्न स्वरूपों की पूजा करते थे। सूर्य, चन्द्र, वायु, मेघ, उषा, अदिति प्रमुख देवी-देवता थे।
प्रश्न 13.
सिकन्दर कौन था?
उत्तर:
सिकन्दर मकदूनियां के शासक फिलिप का पुत्र था।
प्रश्न 14.
चन्द्रगुप्त के शासन प्रबन्ध का ज्ञान हमें किससे होता है?
उत्तर:
चन्द्रगुप्त के शासन प्रबन्ध का ज्ञान हमें मेगस्थनीज की ‘इण्डिका’ तथा कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र’ से होता है।
MP Board Class 9th Social Science Chapter 9 लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
प्राचीन भारत के ऐतिहासिक कालक्रम के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
भारत की प्राचीन, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परम्परा अत्यन्त समृद्ध एवं गौरवशाली रही है। प्राचीन भारत के इतिहास में सिन्धु एवं सरस्वती सभ्यता अथवा हड़प्पा सभ्यता, वैदिक-सभ्यता, महाकाव्यकाल, बौद्ध एवं जैन धर्म, मौर्य साम्राज्य, गुप्त साम्राज्य एवं हर्ष साम्राज्य शामिल हैं। इन सभ्यताओं एवं राजवंशों की अपनी विशिष्टता रही है। प्राचीन काल से ही भारतीयों में ऐतिहासिक चेतना विद्यमान थी। प्राचीन भारतीय इतिहास पर प्रकाश डालने वाली सामग्री पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। जैसे-साहित्यिक स्रोत, पुरातात्विक स्रोत, विदेशियों का यात्रा विवरण आदि।
प्रश्न 2.
प्राचीन भारतीय इतिहास के निर्माण में कौन-कौन से धार्मिक ग्रन्थ सहायक होते हैं? किन्हीं चार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राचीन भारत के इतिहास के निर्माण में धार्मिक ग्रन्थों की भी विशेष भूमिका है। इनके अध्ययन से तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक तथा राजनीतिक दशा की जानकारी होती है। प्राचीन भारतीय इतिहास पर प्रकाश डालने वाले प्रमुख धार्मिक ग्रन्थ हैं-वेद, पुराण, ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्यक, उपनिषद्, वेदांग, स्मृति, महाभारत, पिटक, जातक तथा परिशिष्टपर्व। चार प्रमुख धार्मिक ग्रन्थ निम्नलिखित हैं –
- वेद :
वेद आर्यों के सर्वाधिक प्राचीनतम ग्रन्थ हैं। वेदों की संख्या चार है-ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, तथा अथर्ववेद। इनमें प्राचीनतम ऋग्वेद है। - ब्राह्मण ग्रन्थ :
ब्राह्मण ग्रन्थों में विभिन्न कर्मकाण्डों का उल्लेख किया गया है। प्रमुख ब्राह्मण ग्रन्थ-ऐतरेय, शतपथ, पंचविश व गोपथ हैं। - उपनिषद् :
उपनिषदों में भारतीय दर्शन तथा बिम्बसार के पूर्व के इतिहास का वर्णन है। - पुराण :
पुराणों की संख्या अठारह है परन्तु विष्णु पुराण, मत्स्य पुराण तथा ब्रह्म पुराण आदि विशेष महत्त्व रखते हैं। इनके अध्ययन से तत्कालीन इतिहास की पर्याप्त जानकारी होती है।
प्रश्न 3.
सिन्धु घाटी सभ्यता का विस्तार क्षेत्र कहाँ तक था?
उत्तर:
सिन्धु सभ्यता का विस्तार क्षेत्र अत्यधिक व्यापक था ? ईसा पूर्व से तीसरी और दूसरी शताब्दी में विश्व भर में किसी भी सभ्यता का क्षेत्र सिन्धु सभ्यता के क्षेत्र से बड़ा नहीं था। प्रो. आर. एन. राव के अनुसार सिन्धु सभ्यता का विस्तार पूर्व से पश्चिम 1,600 किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण 1,100 किलोमीटर क्षेत्र में था। इस सभ्यता का विस्तार पाकिस्तान, दक्षिणी अफगानिस्तान तथा भारत के राजस्थान, गुजरात, जम्मू कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं महाराष्ट्र तक था।
प्रश्न 4.
हड़प्पा संस्कृति के चार प्रमुख नगरों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सिन्धु सभ्यता अथवा हड़प्पा संस्कृति के चार प्रमुख नगर थे-हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, लोथल तथा कालीबंगा। इनका विवरण निम्नलिखित है –
(1) हड़प्पा :
यह नगर पश्चिमी पंजाब के मॉण्टगुमरी जिले में लाहौर से कोई 100 मील की दूरी पर स्थित था। 1921 ई. में आर. बी. दयाराम ने इसकी खुदाई करायी थी। यह नगर सिन्धु सभ्यता का सबसे बड़ा नगर था। इसमें समानान्तर चतुर्भुज के आकार का एक दुर्ग था जिसमें छः कोठार मिले हैं। हड़प्पा के निवासी पक्के मकानों में रहते थे।
(2) मोहनजोदड़ो :
यह भी सिन्धु सभ्यता का प्रमुख नगर था। 1922 ई. में आर. डी. बनर्जी ने इसकी खोज की थी। यह सिन्ध प्रान्त के लरकाना जिले में स्थित है। मोहनजोदड़ो का शाब्दिक अर्थ है-‘मृतकों का टीला’ इस नगर का यह नाम इस कारण पड़ा क्योंकि इस नगर की खुदाई में सात तहें मिलीं अत: यह सात बार बना और सात बार नष्ट हुआ। इस नगर का निर्माण एक निश्चित योजना के अनुसार किया गया था। सड़कों तथा नालियों का समुचित प्रबन्ध था। यहाँ के प्रत्येक मकान में स्नानागार भी होता था।
(3) लोथल :
पुरातत्वविदों के अनुसार यह नगर एक बन्दरगाह था। यह गुजरात में खम्भात की खाड़ी के ऊपर स्थित था। यहाँ अनेक प्रकार के आभूषण, मुद्राएँ तथा मिट्टी के बर्तन भी मिले हैं।
(4) कालीबंगा :
यह नगर राजस्थान के गंगानगर जिले में स्थित है। यहाँ के भवन तथा उनकी दीवारें, गोल कुएँ तथा चौड़ी सड़कें अपने ढंग की हैं। खुदाई में प्राप्त बर्तन, ताँबे के औजार, चूड़ियाँ, मिट्टी की मूर्तियाँ तथा खिलौने विशेष दर्शनीय हैं।
प्रश्न 5.
सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों के सामाजिक और आर्थिक जीवन का विवरण दीजिए।
उत्तर:
(1) सामाजिक जीवन :
सिन्धु घाटी का समाज ‘मातृ प्रधान’ था। व्यवसाय के आधार पर समाज चार भागों में विभाजित था-विद्वान, योद्धा, व्यवसायी तथा मजदूर। यहाँ के निवासी शाकाहारी होने के साथ-साथ माँसाहारी भी थे। गेहूँ और जौ की रोटी विशेष रूप से खायी जाती थी। माँस मुख्यतया सूअर और भेड़ का खाया जाता था। वस्त्र ऊनी तथा सूती दोनों प्रकार के प्रयोग किये जाते थे। स्त्री और पुरुष दोनों ही शालों का प्रयोग करते थे। स्त्री तथा पुरुष दोनों ही अंगूठियाँ, कड़े, कंगन, कण्ठहार, कुण्डल आदि आभूषणों को धारण करते थे। सिन्धुवासी मनोरंजन प्रेमी थे। मनोरंजन के प्रमुख साधन थे-नृत्य, संगीत, जुआ खेलना, शिकार खेलना तथा चौपड़ खेलना।
(2) आर्थिक जीवन :
सिन्धु घाटी के निवासियों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। गेहूँ, जौ, कपास, मटर तथा तिल आदि की खेती मुख्यतया होती थी। फलों में खरबूज, तरबूज, खजूर तथा नारियल आदि उगाये जाते थे। पशुपालन का भी प्रचलन था। गाय, भैंस, भेड़, बकरी आदि प्रमुख रूप से पाले जाते थे। कुछ इतिहासकारों के अनुसार सिन्धुवासी विश्व के सूत कातने तथा वस्त्र निर्माण करने वाले प्रथम लोग थे। यहाँ धातुओं के सुन्दर आभूषण बनाये जाते थे तथा सीप, शंख, हाथी दाँत आदि के भी आभूषण बनाये जाते थे। विदेशी व्यापार भी होता था, जो थल तथा जल दोनों मार्गों से होता था।
प्रश्न 6.
सिन्धु सभ्यता के विनाश के चार कारण लिखिए।
उत्तर:
सिन्धु सभ्यता अथवा हड़प्पा संस्कृति के विनाश के निम्नलिखित कारण हैं –
- कुछ विद्वानों के मत में किसी बाहरी जाति के आक्रमण ने इस सभ्यता का विनाश कर दिया था।
- प्रसिद्ध भूगर्भशास्त्री साहनी के मत में सिन्धु सभ्यता के विनाश का कारण जल प्लावन था।
- कुछ इतिहासकारों के मत में किसी शक्तिशाली भूकम्प ने इस सभ्यता का विनाश कर दिया था।
- कुछ विद्वानों के मत में सिन्धु प्रदेश की जलवायु में परिवर्तन आने से इस सभ्यता का विनाश हो गया। इस मत के समर्थक हैं अमलानन्द घोष।
- अनेक विचारकों का यह भी मत है कि किसी संक्रामक रोग ने इस सभ्यता के विनाश में योगदान दिया।
- इस सभ्यता का विनाश का कारण सिन्धु नदी में तीव्र बाढ़ का आना भी माना जाता है।
प्रश्न 7.
वैदिक काल से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वैदिक काल भारतीय इतिहास का वह काल माना जाता है, जिस काल में वेद तथा उनसे सम्बन्धित ग्रन्थों की रचना हुई थी। वैदिक काल को दो भागों में विभाजित किया गया है
- ऋग्वैदिक काल, तथा
- उत्तर वैदिक काल
(1) ऋग्वैदिक काल :
ऋग्वैदिक काल में ऋग्वेद की रचना हुई थी। अन्य शब्दों में जिस काल में ऋग्वेद की रचना हुई थी उस काल को ही ऋग्वैदिक काल कहते हैं।
(2) उत्तरवैदिक काल :
ऋग्वैदिक काल में केवल ऋग्वेद की रचना की गयी थी परन्तु उत्तर वैदिक काल में सामवेद, अथर्ववेद के अतिरिक्त ब्राह्मण ग्रन्थों, उपनिषद एवं आरण्यक की रचना भी हुई थी।
प्रश्न 8.
वैदिक सभ्यता की आश्रम व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वैदिककालीन आर्यों ने मानव की आयु को 100 वर्ष का मानकर उसे 25-25 वर्षों के निम्नलिखित चार आश्रसों में विभाजित किया-
- ब्रह्मचर्य आश्रम (जन्म से 25 वर्ष) :
इस काल में आर्य ब्रह्मचर्य जीवन तथा विद्यार्थी जीवन का पालन करते थे। - गृहस्थ आश्रम (25 से 50 वर्ष) :
ब्रह्मचर्य जीवन के पश्चात् आर्य विवाह कर गृहस्थ जीवन व्यतीत करते थे। - वानप्रस्थ आश्रम (50 से 75 वर्ष) :
गृहस्थ आश्रम के पश्चात् आर्य सांसारिक चिन्ताओं से मुक्त होने के लिए वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश करते थे। इस काल में व्यक्ति अपने परलोक को सुधारने का प्रयास करता था। - संन्यास आश्रम (75 से 100 वर्ष) :
यह आश्रम जीवन के अन्तिम काल से सम्बन्धित होता था। इस काल में मनुष्य परिवार व समाज से अलग होकर अपना समस्त समय ईश्वर चिन्तन तथा मोक्ष प्राप्ति के प्रयासों में लगाता था।
प्रश्न 9.
जैन धर्म के प्रमुख सिद्धान्तों को लिखिए।
उत्तर:
जैन धर्म के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं –
(1) ईश्वर में अविश्वास-जैन धर्म ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करता। महावीर स्वामी के अनुसार विश्व का निर्माता ईश्वर नहीं है।
(2) स्याद्वाद-महावीर स्वामी के मत में प्रत्येक वस्तु के अनेक पक्ष होते हैं। अतः इसे अनेक दृष्टिकोण से देखना आवश्यक है।
(3) कर्म की प्रधानता-महावीर स्वामी ने कर्म की प्रधानता पर बल दिया, उनके मत में प्रत्येक व्यक्ति को अपने अच्छे व बुरे कर्मों का फल अवश्य मिलता है।
(4) त्रिरत्न-महावीर स्वामी के अनुसार निर्वाण या मोक्ष प्राप्ति के लिए निम्नलिखित तीन सिद्धान्तों को ध्यान में रखना चाहिए-
- सम्यक् श्रद्धा
- सम्यक् ज्ञान
- सम्यक् आचरण।
(5) अहिंसा पर विशेष बल :
जैन धर्म अहिंसा पर विशेष बल देता है।
प्रश्न 10.
महात्मा बुद्ध के प्रमुख सिद्धान्त क्या थे?
अथवा
महात्मा बुद्ध के चार आर्य सत्य कौनसे हैं?
अथवा
बौद्ध धर्म के अष्टांगिक मार्ग की आठ बातें कौन-सी हैं? (2015) [संकेत-दुःख निरोध के उपाय शीर्षक में देखें।]
उत्तर:
बौद्ध धर्म की चार विशेषताएँ अथवा चार आर्य सत्य निम्नलिखित हैं –
(1) दुःखमय संसार-बुद्ध के अनुसार यह विश्व दुःखमय है।
(2) दुःख समुदाय-बुद्ध के मत में दुःख का मूल कारण तृष्णा, मोह तथा माया है।
(3) दुःख निरोध-गौतम बुद्ध के अनुसार तृष्णा पर विजय प्राप्त करके दुःखों से भी मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।
(4) दुःख निरोध के उपाय-बुद्ध के अनुसार दुःखों पर विजय प्राप्त करने के लिए अष्टांग मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जिसमें निम्नलिखित बातें आती हैं-
- सम्यक् दृष्टि
- सम्यक् संकल्प
- सम्यक् भाषा
- सम्यक् आजीव
- सम्यक् व्यायाम
- सम्यक् कर्म
- सम्यक् ध्यान
- सम्यक् समाधि।
प्रश्न 11.
मौर्यकालीन इतिहास जानने के प्रमुख साधनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मौर्यकालीन इतिहास जानने के प्रमुख साधन निम्नलिखित हैं –
- धार्मिक साहित्य :
धार्मिक साहित्य में जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म का साहित्य तत्कालीन सामाजिक तथा राजनीतिक दशा पर प्रकाश डालता है। अन्य ग्रन्थों में दीपवंश तथा महावंश मौर्यकालीन सामाजिक तथा राजनीतिक दशा पर विशेष प्रकाश डालते हैं। - विशाखदत्त का मुद्राराक्षस :
यह संस्कृत साहित्य का प्रसिद्ध नाटक है। इसके अध्ययन से चन्द्रगुप्त, कौटिल्य, नन्दवंश तथा मगध की क्रान्ति आदि के विषय में जानकारी मिलती है। - कौटिल्य का अर्थशास्त्र :
कौटिल्य सम्राट चन्द्रगुप्त का मन्त्री, परामर्शदाता तथा सहायक था। उसने अर्थशास्त्र नामक ग्रन्थ की रचना की थी। इस ग्रन्थ में तत्कालीन राजनीति तथा प्रशासनिक सिद्धान्तों व न्याय प्रणाली आदि का उल्लेख है। - मेगस्थनीज की इण्डिका :
मेगस्थनीज को सैल्यूकस ने अपना राजदूत बनाकर चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में भेजा था। उसके द्वारा लिखित पुस्तक ‘इण्डिका’ मौर्यकालीन शासन व्यवस्था पर व्यापक प्रकाश डालती है। इण्डिका में मौर्यकालीन अर्थव्यवस्था का भी व्यापक उल्लेख किया गया है। - अशोक के शिलालेख :
अशोक ने अनेक चट्टानों तथा स्तम्भों पर धर्म लेख खुदवाये थे। इन लेखों में अशोक द्वारा किये गये धर्म प्रचार तथा शासन व्यवस्था सम्बन्धी नियमों का वर्णन मिलता है।
प्रश्न 12.
भारत पर सिकन्दर के आक्रमण की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सिकन्दर अपने विश्व विजय अभियान के सम्बन्ध में भारत आया था। वह मकदूनियां के शासक फिलिप का पुत्र था। पिता की मृत्यु के बाद 20 वर्ष की उम्र में सिंहासन पर बैठा। वह असाधारण महत्त्वाकांक्षाओं वाला शासक था। फारस को परास्त करने के उपरान्त वह ‘सोने की चिड़िया’ कहे जाने वाले भारत में प्रविष्ट हुआ। सिकन्दर को एक जन-जातीय शासक हस्ती जिसे यूनानी एस्ड्रस कहते हैं, के विरुद्ध लड़ना पड़ा, जिन्होंने सिकन्दर का जमकर प्रतिरोध किया। हस्ती के वीरगति को प्राप्त करने के बाद उनकी रानी एवं अन्य स्त्रियों ने अन्तिम क्षण तक अपने देश की रक्षा का प्रण लेकर युद्ध में भाग लिया।
अंततः विजय सिकन्दर को मिली। सिकन्दर आगे बढ़ा और तक्षशिला के शासक आम्भी ने सिकन्दर के सामने आत्मसमर्पण कर दिया लेकिन झेलम प्रदेश के शासक पोरस ने आत्मसमर्पण से इन्कार कर दिया। पोरस और सिकन्दर में घमासान युद्ध हुआ, लेकिन जीत सिकन्दर की हुई। बाद में सिकन्दर ने पोरस की वीरता व स्वाभिमान को देखते हुए उसके साथ एक राजा के समान व्यवहार किया और उसका राज्य लौटा दिया।
प्रश्न 13.
मौर्य साम्राज्य के पतन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
मौर्य समाज के पतन के निम्नलिखित कारण थे –
- अशोक ने ब्राह्मणों को अपनी धार्मिक नीति के द्वारा असन्तुष्ट कर दिया था। यज्ञों में पशुबलि पर रोक लगाना तथा महामात्रों की नियुक्ति ब्राह्मणों में से न करना इसके उदाहरण हैं।
- सम्राट अशोक के उत्तराधिकारी अयोग्य थे अत: वे विशाल मौर्य साम्राज्य को सुरक्षित नहीं रख सके।
- अशोक की शान्तिवादी तथा अहिंसा की नीति ने मौर्य साम्राज्य की सेना को अत्यधिक निर्बल बना दिया था। दीर्घकाल तक अशोक द्वारा युद्ध न किये जाने के कारण मौर्य सैनिक अकर्मण्य हो गये थे।
- अशोक की दान प्रवृत्ति ने राजकोष को खाली कर दिया था। इसके अतिरिक्त अशोक ने स्तूपों, बिहारों, चैत्यों तथा स्तम्भों के निर्माण में भी अपार धन व्यय कर वित्तीय संकट उत्पन्न कर दिया था।
- प्रजा में राष्ट्रीय भावना का अभाव।
- मौर्यों के अन्तिम शासक वृहद्रथ का उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने वध कर दिया। उपर्युक्त कारणों से मौर्य साम्रज्य का पतन हो गया।
प्रश्न 14.
चन्द्रगुप्त प्रथम के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
घटोत्कच के उपरान्त उसके पुत्र चन्द्रगुप्त (प्रथम) ने गुप्त साम्राज्य की बागडोर सँभाली। चन्द्रगुप्त के लिये ‘महाराजाधिराज’ की उपाधि का उल्लेख मिलता है। चन्द्रगुप्त प्रथम ने लिच्छवी वंश की राजकुमारी कुमार देवी से विवाह कर अपनी राजनीतिक स्थिति को सुदृढ़ बनाया। चन्द्रगुप्त ने 320 ई. में ‘गुप्त संवत्’ की स्थापना की थी। चन्द्रगुप्त प्रथम ने 335 ई. तक शासन किया था। उसने अपने शासनकाल में ही अपने पुत्र समुद्रगुप्त को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया था।
प्रश्न 15.
“समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा जाता है।” क्यों?
उत्तर:
समुद्रगुप्त नेपोलियन के समान ही वीर योद्धा, साहसी, पराक्रमी तथा निर्भीक शासक था। स्मिथ के शब्दों में-“जिस प्रकार नेपोलियन ने एक महान योद्धा और विजेता के समान बाहुबल तथा रण-कौशल से अन्य राजाओं को धूल में मिला दिया था, उसी प्रकार समुद्रगुप्त ने भी वीरता और साहस के साथ समस्त भारत पर विजय प्राप्त कर अपने को एक महान योद्धा और सेनानायक सिद्ध कर दिया था।” स्मिथ के इस कथन से स्पष्ट हो जाता है कि समुद्रगुप्त नेपोलियन के समान ही एक महान योद्धा, महान सेनानायक तथा एक विशाल साम्राज्य निर्माता था।
प्रश्न 16.
फाह्यान कौन था? यह भारत कब आया था? उसने भारत के विषय में क्या लिखा है?
उत्तर:
फाह्यान चीन का निवासी तथा बौद्ध भिक्षु था। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के शासन काल में वह बौद्ध धर्म का अध्ययन करने भारत आया था। लगभग 6 वर्ष तक वह भारत में रहा। इस काल में उसने भारत की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक दशा का निरीक्षण कर एक सजीव विवरण प्रस्तुत किया।
फाह्यान के अनुसार, गुप्त काल में भारत में आन्तरिक शान्ति थी। चोर लुटेरों का भय नहीं था। निर्धन तथा अनाथ लोगों को राज्य की ओर से सहायता दी जाती थी। साधारण दण्ड व्यवस्था थी। राजद्रोहियों का सीधा हाथ काट लिया जाता था। फाह्यान के अनुसार, साधारण जनता का आर्थिक स्तर अच्छा था। मनुष्य सदाचारी थे तथा परस्पर सहयोग का जीवन व्यतीत करते थे।
प्रश्न 17.
आर्यभट्ट के विषय में आप क्या जानते हैं? उसने विज्ञान, गणित और नक्षत्र विद्या के क्षेत्र में क्या योगदान दिया?
उत्तर:
आर्यभट्ट गुप्तकाल का एक महान वैज्ञानिक तथा गणित का एक विशेषज्ञ था, उसका विज्ञान, गणित तथा नक्षत्र विद्या के क्षेत्र में निम्नलिखित योगदान था –
- आर्यभट्ट ने सर्वप्रथम सिद्ध किया कि पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है।
- आर्यभट्ट ने चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण के कारणों का पता लगाया।
- आर्यभट्ट ने दशमलव पद्धति का आविष्कार किया।
- अंकगणित तथा ज्यामिति के क्षेत्र में आर्यभट्ट ने अनेक खोजें की।
MP Board Class 9th Social Science Chapter 9 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
सिन्धु घाटी सभ्यता अथवा हड़प्पा सभ्यता के लोगों के सामाजिक जीवन का विवरण दीजिए।
उत्तर:
सामाजिक जीवन मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में खुदाई से प्राप्त सामग्री तथा स्रोतों से सिन्धु घाटी के निवासियों की सामाजिक स्थिति का ज्ञान होता है। सिन्धु घाटी के निवासियों के सामाजिक जीवन का वर्णन निम्न शीर्षकों में किया जा सकता है
(1) सामाजिक संगठन :
सिन्धु घाटी का समाज व्यवसाय के आधार पर चार भागों में विभाजित था-
- विद्वान तथा शिक्षित वर्ग
- योद्धा या सैनिक वर्ग
- व्यापारी तथा दस्तकार
- श्रमिक। समाज में वर्ण-व्यवस्था का अभाव था तथा समाज की इकाई परिवार थी। इतिहासकारों के अनुसार सिन्धु सभ्यता का समाज ‘मातृप्रधान’ था।
(2) भोजन :
इतिहासकार चाइल्ड के अनुसार सिन्धुवासियों का प्रमुख भोजन गेहूँ, जौ, चावल तथा दूध था। सब्जियों तथा फलों का भी सेवन किया जाता था। फलों में खजूर प्रमुख रूप से खाया जाता था। माँस खाने का भी प्रचलन था। गाय, भेड़, मछली तथा मुर्गे आदि का माँस ही खाया जाता था।
(3) वेश-भूषा :
सिन्धु सभ्यता के किसी भी क्षेत्र में तत्कालीन समय का कोई भी वस्त्र उपलब्ध नहीं हुआ। अतः ऐसी दशा में खुदाई में प्राप्त मूर्तियों का अवलोकन करके ही वेश-भूषा की जानकारी प्राप्त की गयी है। मूर्तियों को देखकर ज्ञात होता है कि सिन्धुवासी शरीर पर दो कपड़े धारण करते थे। प्रथम वस्त्र को बायें कन्धे के ऊपर तथा दाहिनी भुजा के नीचे से निकालकर पहना जाता था, जिससे सीधा हाथ उचित ढंग से कार्य कर सके। दूसरा वस्त्र जो शरीर के नीचे पहना जाता था, वर्तमान धोती के समान होता था। इतिहासकारों के मत में स्त्रियों व पुरुषों के वस्त्रों में विशेष अन्तर नहीं था। सूती वस्त्र अधिक मात्रा में पहने जाते थे परन्तु ऊनी वस्त्रों का भी प्रचलन था।
(4) आभूषण :
सिन्धु-सभ्यता के निवासियों में स्त्री व पुरुष दोनों ही आभूषण पहनने में रुचि लेते थे। आभूषण, सोने, चाँदी, हाथी-दाँत आदि के बनाये जाते थे। ताँबे, मिट्टी, सीप आदि के आभूषण निर्धन व्यक्ति पहनते थे। सोने के आभूषण अत्यधिक आकर्षक होते थे। मार्शल के अनुसार-“सोने के आभूषणों की चमक तथा रचना को देखकर ऐसा ज्ञात होता है कि ये आधुनिक बाड स्ट्रीट (जो कि लन्दन में है) के किसी सुनार की दुकान से लाये गये हैं न कि पाँच हजार वर्ष पूर्व किसी प्रागैतिहासिक घर से।” हार, बाजूबन्द, अंगूठियाँ, कड़े, कुण्डल तथा बालियाँ स्त्री और पुरुष दोनों ही पहनते थे।
(5) सौन्दर्य प्रसाधन :
खुदाई में प्राप्त सामग्री से ज्ञात होता है कि सिन्धु सभ्यता की स्त्रियाँ काजल, सुरमा, सिन्दूर तथा दर्पण व कंघी का प्रयोग अपने सौन्दर्य विकास के लिए करती थीं। इतिहासकार मैके (Mackay) के अनुसार इस काल की स्त्रियाँ लिपिस्टिक का भी प्रयोग करती थीं। स्त्रियाँ केश सज्जा का भी ध्यान रखती थीं।
(6) आमोद-प्रमोद के साधन :
सिन्धु घाटी के निवासी अनेक क्रिया-कलापों से अपना मनोरंजन करते थे। खुदाई में अनेक पाँसे प्राप्त हुए हैं जिनसे ज्ञात होता है कि यहाँ के निवासी जुआ खेलने में विशेष रुचि लेते थे। अन्य आमोद के साधन थे-शिकार करना, नृत्य करना, गाना तथा बजाना। तबले, ढोल तथा तुरही के चित्र मुद्राओं पर बने मिले हैं।
(7) मृतक संस्कार :
खुदाई में प्राप्त अवशेषों का निरीक्षण करने से स्पष्ट होता है कि यहाँ तीन प्रकार से शवों का अन्तिम संस्कार होता था
- शवों को जैसे का तैसा दफनाना।
- शव का पशु-पक्षियों के सम्मुख खाने को डाल देना।
- दाह संस्कार करने के पश्चात् अस्थियों को भूमि में गाढ़ देना
(8) स्त्रियों की दशा :
मातृदेवी की उपासना करना इस बात का प्रमाण है कि सिन्धुवासी स्त्रियों को विशेष सम्मान देते थे। दूसरे यहाँ के परिवार मातृसत्तात्मक होते थे जिनमें स्त्रियों का स्थान ऊँचा होता था।
प्रश्न 2.
सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों के आर्थिक जीवन के बारे में अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
आर्थिक जीवन सिन्धु घाटी के आर्थिक जीवन की निम्नलिखित विशेषताएँ थीं –
- कृषि :
सिन्धु घाटी के निवासियों का प्रमुख व्यवसाय कृषि थी। जिस प्रकार मिस्र में नील नदी ने वरदान का कार्य किया उसी प्रकार सिन्धु नदी ने भी अपने अपार जल से इस सभ्यता के विकास में योग दिया। गेहूँ, जौ, चावल तथा कपास की मुख्यतया खेती होती थी। फलों में नींबू, अनार, खजूर तथा केला आदि उगाये जाते थे। - पशुपालन :
कृषि के साथ-साथ इस सभ्यता के निवासियों का अन्य प्रमुख व्यवसाय पशु-पालन था। खुदाई में प्राप्त अस्थि-पिंजरों से तथा मुद्राओं पर अंकित चित्रों से स्पष्ट होता है कि यहाँ के निवासी गाय, भैंस, बैल, भेड़, बकरी आदि प्रमुखतया पालते थे। घोड़े से यहाँ के निवासी अपरिचित थे। - शिकार :
शिकार का भी एक व्यवसाय के रूप में चलन था। माँस प्राप्त करने के लिए पशुओं का शिकार किया जाता था। पशुओं की खाल तथा अस्थियों से अनेक वस्तुओं का निर्माण होता था। - वस्त्र-उद्योग :
वस्त्र-उद्योग पर्याप्त उन्नति पर था। एक विद्वान के अनुसार सिन्धुवासी सम्भवतः विश्व के सूत कातने तथा वस्त्र बुनने वाले प्रथम लोग थे। वस्त्र सूती तथा ऊनी दोनों प्रकार के बुने जाते थे। - अन्य उद्योग :
नगरों की खुदाई में विशाल संख्या में मिट्टी के बर्तन मिले हैं जिनमें प्याले, सुराहियाँ, मटके तथा नादें प्रमुख हैं। कुम्हार चाकों पर बर्तन बनाते थे तथा उन पर सुन्दर चित्रकारी करते थे। सिन्धु सभ्यता में धातुओं के भी सुन्दर आभूषण बनाये जाते थे। - धातुओं का उपयोग :
खुदाई में प्राप्त सोने, चाँदी के आभूषण तथा ताँबा, काँसा आदि के अस्त्र-शस्त्र तथा बर्तनों से स्पष्ट हो जाता है कि सिन्धु निवासी सोना, चाँदी, ताँबा, रांगा तथा काँसा आदि धातुओं से परिचित थे। - व्यापार :
सिन्धु घाटी के निवासी भारत के विभिन्न भागों के साथ व्यापार करने के साथ-साथ विश्व के अन्य देशों से भी व्यापार करते थे। विदेशों से व्यापार थल तथा जल दोनों ही मार्गों से होता था। थल मार्ग के लिए ऊँटों, बैलों तथा बैलगाड़ियों का प्रयोग होता था। जल मार्गों के लिए नावों तथा जहाजों का प्रयोग होता था। नावें नदियों में प्रयोग की जाती थीं परन्तु जहाजों का प्रयोग समुद्र में किया जाता था। सुमेरिया, ईरान तथा मिस्र से सिन्धुवासियों के घनिष्ठ व्यापारिक सम्बन्ध थे।
प्रश्न 3.
अशोक को महान् सम्राट क्यों कहा जाता है? संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
अथवा
इतिहास में अशोक का क्या स्थान है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अधिकांश इतिहासकारों के मत में अशोक भारत का ही नहीं वरन् विश्व के महान् सम्राटों में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। प्रसिद्ध इतिहासकार एच. जी. वेल्स के अनुसार, “इतिहास में प्रसिद्ध सहस्रों महान् राजाओं, सम्राटों, धर्मावतारों और राजेश्वरों में अशोक का नाम अलग और एक तारे के समान चमकता है।” निम्नलिखित कारणों से अशोक को एक महान् सम्राट कहा जाता है।
- आदर्श व्यक्तित्व :
अशोक का व्यक्तित्व अत्यन्त प्रभावशाली तथा महान् था। उसकी योग्यताओं तथा प्रतिभाओं को पहचानकर ही बिन्दुसार ने अपने साम्राज्य के विद्रोहों को दबाने के लिए भेजा तो उसने इस क्षेत्र में अपूर्व सफलता प्राप्त की। इसके अतिरिक्त अशोक तत्कालीन सम्राटों की तरह भोगविलास का जीवन नहीं व्यतीत करता था। उसके व्यक्तित्व में सादगी तथा कर्तव्यनिष्ठा का सुन्दरतम समन्वय था। - महान् विजेता :
अशोक एक महान् विजेता था। उसके पिता बिन्दुसार ने कलिंग को जीतने का प्रयास किया था किन्तु सफल नहीं हो पाया था परन्तु अशोक ने अपने पराक्रम से कलिंग विजय प्राप्त की। - महान् धर्म विजेता :
अशोक युद्ध विजेता होने के साथ-साथ एक महान् धर्म विजेता भी था। कलिंग युद्ध के पश्चात् उसने धर्म विजय का अभियान प्रारम्भ किया तथा बौद्ध धर्म के प्रचार में व्यापक सफलता प्राप्त की। - लोक-कल्याणकारी शासक :
अशोक एक लोक-कल्याणकारी शासक था। उसने जनता के कल्याण के लिए चिकित्सालयों तथा धर्मशालाओं का निर्माण करवाया था। - धार्मिक सहिष्णुता का प्रतिपादक :
अशोक बौद्ध धर्म का अनुयायी था परन्तु उसने अपनी प्रजा पर इस धर्म को लादने का कभी भी प्रयास नहीं किया तथा धार्मिक सहिष्णुता की नीति को अपनाकर सब धर्मों की अच्छाइयों का समन्वय किया। अशोक सब धर्मों को आदर की दृष्टि से देखता था। - कुशल प्रशासक :
अशोक का साम्राज्य अत्यन्त विशाल था, परन्तु उसने अपने साम्राज्य का शासन प्रबन्ध बड़ी कुशलता तथा व्यवस्था से संचालित किया था। अशोक ने कलिंग युद्ध के पश्चात् अपने शासन में दो प्रमुख सिद्धान्तों का समावेश किया-(1) नैतिक आचरण पर बल देना, (2) लोक कल्याण की भावना।
उपर्युक्त विवरणों से स्पष्ट हो जाता है कि अशोक एक अद्वितीय महान् सम्राट था। डॉ. मुखर्जी के अनुसार, “प्रत्येक युग और प्रत्येक देश में अशोक जैसा सम्राट पैदा नहीं होता।”
प्रश्न 4.
गुप्त साम्राज्य के पतन के प्रमुख कारणों का वर्णन कीजिए। (2010)
अथवा
गुप्त साम्राज्य के पतन के कोई तीन कारण लिखिए। (2017)
उत्तर:
- दुर्बल तथा अयोग्य उत्तराधिकारी :
समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य तथा स्कन्दगुप्त के पश्चात् जितने भी गुप्त सम्राट हुए वे सब दुर्बल तथा अयोग्य थे और उनमें इतनी क्षमता तथा योग्यता नहीं थी कि वे अपने पूर्वजों के साम्राज्य को जैसा का तैसा बनाये रखते। - उत्तराधिकार के निश्चित नियमों का न होना :
गुप्तकाल में उत्तराधिकार का कोई निश्चित नियम न था परिणामस्वरूप सिंहासन प्राप्ति के लिए राजकुमारों में परस्पर संघर्ष और गृह कलह होते थे। राजमहल संघर्षों तथा षड्यन्त्रों के केन्द्र बन गये थे। इस प्रकार के संघर्षों ने गुप्त साम्राज्य के पतन में विशेष योगदान दिया। - आन्तरिक कलह :
चन्द्रगुप्त द्वितीय के पश्चात् उत्तराधिकार नियमों के अभाव के कारण राज्य में आन्तरिक,कलह तथा संघर्ष की भावना का अपूर्व विकास हुआ जिसके कारण गुप्त साम्राज्य को गहरा आघात लगा तथा उसका पतन हो गया। - साम्राज्य का अत्यधिक विशाल होना :
समुद्रगुप्त तथा चन्द्रगुप्त द्वितीय ने अपनी दिग्विजयों तथा युद्धप्रियता से एक दृढ़ तथा विशाल साम्राज्य की स्थापना कर ली थी। इतने विशाल साम्राज्य को कुशलता तथा दृढ़ता के साथ अपने नियन्त्रण में समुद्रगुप्त तथा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ही रख सके परन्तु उनके बाद के गुप्त शासक अपनी अयोग्यता तथा दुर्बलता के कारण उसे अपने नियन्त्रण में नहीं रख सके। - सीमा सुरक्षा की उपेक्षा करना :
चन्द्रगुप्त द्वितीय के पश्चात् जितने भी गुप्त सम्राट हुए उन्होंने अपनी सीमा सुरक्षा की ओर ध्यान नहीं दिया। इससे विदेशी आक्रमणकारियों को उत्तरी-पश्चिमी सीमान्त प्रदेश में से आक्रमण करने का अवसर एवं प्रोत्साहन प्राप्त हुआ। यह गुप्त साम्राज्य के लिए घातक सिद्ध हुआ। - दयनीय आर्थिक दशा :
चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के शासनकाल के पश्चात् गुप्त साम्राज्य की आर्थिक दशा अत्यन्त शोचनीय हो गयी थी। समुद्रगुप्त तथा चन्द्रगुप्त द्वितीय ने अपने शासनकाल में सोने के सिक्के चलाये थे परन्तु कुमारगुप्त तथा स्कन्दगुप्त के काल में चाँदी तथा ताँबे के सिक्के चलाये गये। इस प्रकार यह निष्कर्ष निकलता है कि गुप्तकाल की आर्थिक स्थिति दिन-प्रतिदिन शोचनीय होती गयी। - हूणों के आक्रमण :
इतिहासकारों के अनुसार गुप्त साम्राज्य के पतन का प्रमुख कारण हूणों के आक्रमण थे। यह सत्य है कि स्कन्दगुप्त के शासनकाल तक के सभी सम्राटों ने हूणों के आक्रमणों को विफल कर दिया था परन्तु उसके शासनकाल के पश्चात् गुप्तकाल के निर्बल शासक हूण आक्रमणों से गुप्त साम्राज्य की रक्षा नहीं कर सके।