names of coordination sphere , समन्वय मण्डल का का नामकरण क्या होता हैं

names of coordination sphere , समन्वय मण्डल का का नामकरण क्या होता हैं

जाने names of coordination sphere , समन्वय मण्डल का का नामकरण क्या होता हैं ? 

उपसहसंयोजन यौगिकों की नाम पद्धति (Nomenclature of coordination compounds)

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उपसहसंयोजन यौगिकों की संरचना आरम्भ में अज्ञात थी और इसलिए इन यौगिकों को सामान्यतः उन्हें बनाने वाले व्यक्तियों के नाम से जाना जाता था। उदाहरण के लिए, [Pt(NH3)4] [PCI4] को मैगनस लवण (Magnus salt). NH4[Cr(NH3)2(NCS) ] को राइने लवण (Reineck salt) नाम दिया गया था। बाद में, संकुलों को उनके रंगों के आधार पर बताया जाने लगा। रंगों के नाम रोमन भाषा से लिये गये थे। उदाहरण के लिए, नारंगी [Co(NH3)6lCl3 के लिए ल्यूटिओकोबाल्टिक क्लोराइड (Luteo = नारंगी), नीलरूग्ण [Co(NH3)5 CI]CI2 के लिए परप्यूरियोकोबाल्टिक क्लोराइड (purpureo = नीलरुग्ण). बैंगनी (purple) सिस – [Co(NH3) 4 Cl2 ]C1 लवण के लिए वायोलियोकोबाल्टिक क्लोराइड (violeo = बैंगनी) नाम प्रचलित थे। लेकिन उपसहसंयोजन पदार्थों की संख्या बढ़ने पर इस प्रकार का नामकरण अनुपयोगी हो गया। इसके अतिरिक्त, उपसहसंयोजन यौगिकों की रासायनिक संघटनाओं के बारे में भी इस प्रकार के नामों से कोई सूचना नहीं मिलती है। इसलिए नामकरण की एक तार्किक तथा सुव्यवस्थित प्रणाली का विकास आवश्यक समझा गया।

नामकरण की प्रथम बुद्धि संगत पद्धति वर्नर द्वारा प्रस्तावित की गई थी। लेकिन भिन्न-भिन्न प्रकार के इतनी अधिक संख्या में उपसहसंयोजन यौगिक बनाये जा चुके हैं कि उनके नामकरण के लिए IUPAC ने अकार्बनिक नामकरण समिति का गठन किया जिसके द्वारा 1971 में प्रतिपादित सामान्य नियम तथा बाद में 1986, 1994 1998 व 2005 में उनमें किये गये संशोधनों का उल्लेख नीचे किया गया है-

  1. संकुल लवणों में आयनों का नाम व क्रम – सामान्य लवणों की भाँति ये पदार्थ भी धनायन व ऋणायनों से बने हो सकते हैं जिनमें सामान्यतः एक आयन तथा कभी-कभी दोनों प्रकार के आयन संकुल प्रकृति के होते हैं। सामान्य लवणों के नामकरण के नियमों की भाँति यहां भी धनायन का नाम पहले तथा ऋणायन का नाम कुछ स्थान छोड़कर बाद में लिखा जाता है तथा धनायन व ऋणायनों की संख्या कभी भी इंगित नहीं की जाती है, इस प्रकार,

CaCl2 (सामान्य लवण)    कैल्सियम क्लोराइड

K3[Al(C2O4)3]      पोटैशियम ट्राइऑक्सेलेटोऐलुमिनेट (III)

[Cu(NH3)4]SO4      टेट्राऐम्मीनकॉपर (II) सल्फेट

जिस प्रकार CaCl2 का नाम कैल्सियम क्लोराइड ही लिखते हैं कैल्सियम डाइक्लोराइड नहीं, उसी प्रकार K3[Al(C2O4)3] में धनायन के लिए ट्राइपोटैशियम लिखना गलत है।

  1. सामान्य आयनों की नाम पद्धति

सामान्यतः संकुल लवणों में एक आयन सामान्य प्रकृति का होता है। सामान्य अकार्बनिक लवणों के विलयनों में पाये जाने वाले आयनों को सामान्य आयन कहते हैं। उदाहरण के लिए Na2SO4, KNO3. Mg3(PO4)2. CaCl2 आदि लवणों के विलयनों में पाये जाने वाले K”, Na, Mg2+ Ca2+ आदि धनायन तथा CI, NO3-, SO4 2- PO4 3- आदि ऋणायन सामान्य आयनों की श्रेणी में आते हैं। इस प्रकार के आयन यदि संकलों के भाग हैं तो उनका नामकरण भी सामान्य लवणों की भांति किया जाता है। उदाहरण के लिए, उपर्युक्त संकुलों में सामान्य धनायन K+ को पोटैशियम तथा SO2 – ऋणायन को सल्फेट नाम दिया गया है।

  1. समन्वय मण्डल (Coordination sphere) का नामकरण

सामान्यतः एक संकुल अपने तीन अवयवों द्वारा जाना जाता है-लिगण्ड, केन्द्रीय धातु तथा आयनिक आवेश। अतः समन्वय मंडल का नाम इस प्रकार से लिखा जाता है जिससे इन तीनों के बारे में जानकारी प्राप्त हो सके। समन्वय मण्डल के नामकरण हेतु निम्न नियम काम में लिये जाते हैं-

(i) समन्वय मण्डल आयनिक रूप में हो या उदासीन आण्विक रूप में, लिगण्ड तथा धातु के मध्य कोई स्थान छोडे बिना पूरी उपसहसंयोजन प्रजाति का नाम एक शब्द में लिखा जाता है तथा समन्वय मण्डल पर आयनिक आवेश ज्ञात करने के लिए धातु के नाम के आगे उसकी ऑक्सीकरण अवस्था रोमन अंक में लिख दी जाती है।

(ii) सर्वप्रथम लिगण्डों के नाम उनकी संख्या सहित लिखे जाते हैं तथा धातु का नाम उसकी ऑक्सीकरण अवस्था सहित बाद में लिखा जाता है।

(iii) लिगण्डों के नाम का क्रम : यदि समन्वय मंडल में एक से अधिक प्रकार के लिगण्ड पाये जाते है तो लिगण्डों के आवेश, संकुलता तथा संख्या को महत्व न देते हुए उनके नाम अंग्रेजी वर्णमाला के क्रम में उनके मध्य स्थान छोड़े बिना ही लिखे जाते हैं। क्रम निर्धारण में लिगण्डों की संख्या प्रदर्शित करने वाले उपसर्गों की भी कोई भूमिका नहीं होती है।

(iv) लिगण्डों की संख्या : प्रत्येक प्रकार के लिगण्डों की संख्या एक यूनानी उपसर्ग (Greek prefix) द्वारा बताई जाती है, लेकिन एक लिगण्ड के लिए कोई उपसर्ग काम में नहीं लेते हैं । उपसर्गों का प्रयोग इस प्रकार किया जाता है- दो के लिए डाई, तीन के लिए ट्राइ, चार के लिए टेट्रा, पाँच के लिए पेन्टा तथा छ: के लिए हेक्सा | बहुदन्तुक लिगण्डों में तथा जिन उपसर्गों के उपयोग से किसी प्रकार की भ्रांति की आशंका हो तो उनकी संख्या बतलाने के लिए बिस (bis), ट्रिस (tris), टेट्राकिस (tetrakis) इत्यादि उपसर्गों द्वारा क्रमशः दो, तीन तथा चार लिगण्डों को प्रदर्शित किया जाता है। इस प्रकार के लिगण्डों के नाम को उपसर्ग के पश्चात् कोष्ठक में रख दिया जाता है।

(v) लिगण्डों की नामपद्धति : लिगण्डों के नाम उन आयनों या अणुओं के आधार पर लिखे जाते हैं जिनसे ये प्राप्त होते हैं। समन्वय मण्डल आवेशित हो या आण्विक लिगण्डों के नाम समान र से लिखे जाते हैं। लिगण्डों पर आवेश के आधार पर इनके मूल नाम में कुछ परिवर्तन कर दिया जाता है। इस सम्बन्ध में नियम निम्न प्रकार हैं-

(a) ऋणायनी लिगण्ड : इन लिगण्डों के आयनिक नामों में इस प्रकार परिवर्तन किया जाता है जिससे अन्त में 0 अक्षर आ जाये। सामान्यतः ऋणायनों के नाम के अन्त में ide, ite, — ate आदि आते हैं। जब ये आयन लिगण्ड के रूप में कार्य करते हैं तो इन अन्तसर्गों (suffixes) से अन्त का e हटाकर उसके स्थान पर रख दिया जाता है जिससे अन्त में क्रमश: -ido, ito, ato आदि प्राप्त होते हैं। 2005 से पूर्व कुछ -ide से अन्त होने वाले ऋणयनी लिगण्डों के नामों को अपवाद के रूप में ride हटाकर ० लगाकर लिखने की अनुमति थी परन्तु 2005 के पश्चात् सभी ऋणायनों के नाम से -९ के स्थान पर ० रख कर नाम लिखे जाते हैं। इस प्रकार पहले जहाँ क्लोराइड को क्लोरो लिखा जाता था अब क्लोरिडो लिख जाता है। कुछ सामान्य ऋणायन लिगण्डों के नाम सारणी-3.6 में दिए गए हैं।

मेथिल (– CH3), ऐथिल ( – C2H5), फेनिल ( C6H5) इत्यादि सामान्य हाइड्रोकार्बन मूलक क्रियाशील धातु में बंधित होने पर ऋणायन की भाँति आचरण करते हैं। परन्तु उपसहसंयोजन क्षेत्र में इनकी उपस्थिति एक मूलक के रूप में ही लिखी जाती है तथा लिगण्डों के रूप में प्रयुक्त होने पर ही इन मूलकों के नाम में कोई परिवर्तन लाए बिना इन्हें क्रमशः मेथिल, ऐथिल व फेनिल नाम दिया जाता है ।

(b) उदासीन लिगण्ड : उदासीन लिगण्डों को बिना कोई बदलाव किये स्वतंत्र अणु वाला नाम दिया जाता है। उदाहरण के लिए, H2NCH2 CH2 NH2 लिगण्ड के लिए एथेन-1,2-डाइऐमीन (प्रचलित नाम एथिलीनडाइऐमीन, en), C5H5N के लिए पिरिडीन तथा CH3NH2 के लिए मेथेनऐमीन नाम हैं। कुछ अति सामान्य उदासीन लिगण्डों के लिए विशेष नाम दिए जाते हैं, – NH3 के लिए ऐम्मीन (ammine), (कार्बनिक ऐमीनों (amine) से विभेद करने के लिए), H2O के लिए ऐक्वा (aqua). CO के लिए कार्बोनिल तथा NO के लिए नाइट्रोसिल नाम दिये जाते हैं। इसी क्रम मे O2 को डाईऑक्सीजन तथा N2 को डाइनाइट्रोजन लिखा जाता है।

(iii) धनावेशित लिगण्ड : धनावेशित लिगण्डों के नाम धनायन की भाँति ही बिना परिवर्तन के लिखे जाते हैं। जिस अणु से ये धनायनी लिगण्ड प्राप्त होते हैं उस अणु के नाम में परिवर्तन कर अन्तर्ग jium लगाने पर धनायनी लिगण्ड का नाम प्राप्त होता है। उदाहरणार्थ हाइड्राजीन, NH2. NH2 से प्राप्त धनायन NH2 NH3 ‘लिगण्ड का नाम हाइड्राजीनियम होगा। इसी प्रकार, H3 O+ का नाम हाइड्रॉनियम है ।

उदाहरणार्थ-

Na2[Fe(CN)5NO]

सोडियम पेन्टासायनिडोनाइट्रोसिलफैरेट(II)

(iv) धातु का नाम लेखन : लिगण्डों के नाम उनकी संख्या सहित उपर्युक्त नियमों के आधार पर लिखकर बाद में धातु का नाम लिखते हैं। यदि उपसहसंयोजन प्रजाति धनायनी या उदासीन तो केन्द्रीय परमाणु का धातु वाला नाम लिखा जाता है। लेकिन, उपसहसंयोजन प्रजाति ऋणायनी रूप में होने पर धातु के नाम या मूल के अन्त में -ate लगा देते हैं। उदाहरण के लिए, यदि समन्वय मण्डल के केन्द्र में Co है तथा समन्वय मण्डल एक धनायन है या अणु है तो धातु का नाम कोबाल्ट लिखा जायेगा। इसी प्रकार, धनीय तथा आण्विक समन्वय मण्डल के केन्द्र में Pt होने पर परमाणु का नाम प्लेटीनम लिखा जायेगा। लेकिन यदि समन्वय मण्डल ऋणायनी है तो धातु के नाम के आगे -ate अन्तसर्ग (suffix) लगा दिया जाता है। इस प्रकार संकुल ऋणायन में कोबाल्ट को कोबाल्टेट (cobaltate) तथा प्लेटीनम को प्लेटीनेट (platinate) लिखा जाता है।

संकुल ऋणायन में कुछ धातुओं के लातिनी (Latin) नाम लिखे जाते हैं। उदाहरण के लिए यदि संकुल ऋणायन में Fe है उसका नाम आयरनेट (Ironate) न लिखकर फैरेट ( ferrate) लिखा जाता है। ऐसी धातुओं के ऋणायनी संकुलों में नाम सारणी 3.7 में दिये गये है। संकुल आयनों के लिखने के पश्चात् आयन शब्द भी लिख दिया जाता है।

उदाहरणार्थ                       ऋणात्मक समन्वय मण्डल

Na3[Ag(S2O3)2] – सोडियम डाईथायोसल्फेटोआर्जेन्टेट (I)

Na[Ag(S2O3)]    सोडियम थायोसल्फोटोआर्जेन्टेट (I)

[Ni(CN)4]2-     टेट्रासायनिडोनिकलेट (II) आयन

K3[Fe(CN)6]   पोटैशियम हेक्सासायनिडोफैरेट (III)

उदासीन समन्वय मण्डल

[Pt(NH3)2Cl2]   डाइऐम्मीनडाइक्लोरिडोप्लेटीनम (II)

[Fe(C5H5)2]   बिस(साइक्लोपेन्टाडाईनायल ) आयरन (II)

[Cu(acac)2]    बिस(ऐसीटिलऐसीटोनेटो) कॉपर (II)

[Cu(CH3NH2)2C12] – डाइक्लोरिडोबिस (मेथेनऐमीन) कॉपर(II)

[Ni(CO)4]   टेट्राकार्बोनिलनिक(0)

धनीय समन्वय मण्डल

[Mn(H2O)6]Cl2    हैक्साऐक्वामैंगनीज(II) क्लोराइड

[Pt(NH3)2(PPh3)2]Cl डाइऐम्मीनबिस(ट्राईफेनिलफॉस्फीन)प्लेटीनम(II) क्लोराइड

[Co(NH3)4Cl2]+      टेट्राऐम्मीनडाइक्लोरिडोकोबाल्ट (III) आयन

[Pt(NO2)(en)Cl(NH3)2]Cl2 – डाइऐम्मीनक्लोरिडोएथिलीनडाईऐमीननाइट्रीटोप्लेटीनम(IV) क्लोराइड

संकुल धनायन तथा संकुल ऋणायनों से निर्मित यौगिकों के नाम प्राप्त करने के लिए दोनों प्रकार के आयनों के नाम पृथक-पृथक शब्दों के रूप में उपर्युक्त नियमों के आधार पर लिखे जाते हैं जैसा कि कुछ उदाहरणों द्वारा नीचे बताया गया है।

[Cr(NH3)6][C0(CN)6] – हेक्साऐम्मीनक्रमियम (III) हेक्सासाइनिडोकोबाल्टेट(III)

[Co(NH3)5SO4]2[Zn(OH)4] – पेन्टाऐम्मीनसल्फेटोकोबाल्ट (III) टेट्राहाइड्रॉक्सिडोजिंकेट (II)

[Pt(NH3)4]2[PtCl4]   टेट्राऐम्मीनप्लेटीनम (II) टेट्राक्लोरिडोप्लेटीनेट (II)

(iv) धातु की ऑक्सीकरण अवस्था : केन्द्रीय धातु की ऑक्सीकरण अवस्था रोमन अंकों में प्रदर्शित की जाती है। केन्द्रीय धातु यदि परमाण्वीय अवस्था अर्थात् शून्य ऑक्सीकरण अवस्था में है तो उसे 0 द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाने वाले अंकों को धातु के पश्चात् कोष्ठक में रखा जाता है।

उपर्युक्त नियमों को स्पष्ट करने के लिए कुछ संकुल तथा उनके नाम नीचे दिये गये हैं-

[Fe(CN)6]4-   हेक्सासयनिडोफैरेट(II) आयन

= Na2[PtCl4]   सोडियम टेट्राक्लोरिडोप्लेटीनेट (II)

धातु की ऑक्सीकरण अवस्था का सीधा सम्बन्ध समन्वय मण्डल पर आवेश के साथ है क्योंकि समस्त लिगण्डों पर आवेश तथा धातु की ऑक्सीकरण अवस्था का योग समन्वय मण्डल के आयनिक आवेश के समान माना जाता है। उदाहरणार्थ,

[Fe(CN)6]4-पर आयनिक आवेश

यदि Fe की ऑक्सीकरण अवस्था x है तो

x – 6 = – 4 या x = +2     (CN लिगण्ड पर आवेश = 1)

आण्विक संकुल तथा आण्विक लिगैण्ड पर शून्य आवेश माना जाता है।

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