दो ध्रुवीयता का अंत |
एकध्रुवीय
विश्व दो ध्रुवीयता विश्व बहुध्रुवीयता विश्व सोवियत प्रणाली सोवियत संघ
के विघटन के कारण सोवियत संघ के विघटन के परिणाम शॉक थैरेपी दो ध्रुवीयता
का अंत
अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में ध्रुवीयता :- विभिन्न स्तरों पर अन्य राज्यों के मामले को प्रभावित करने और शक्ति के वितरण के आधार पर बाँटा गया है।
ध्रुवीयता का अर्थ :- शक्ति का ध्रुवीकरण
एकध्रुवीय व्यवस्था :- एकध्रुवीय व्यवस्था को पूरे विश्व में उच्चतम आर्थिक , सैन्य , सांकृतिक , सैन्य और राजनीतिक प्रभाव वाले
प्रभुत्वकारी है राज्य के संदर्भ में परिभाषित किया गया है।
एकध्रुवीय प्रभुत्वकारी है।
नोट :- यह शक्ति के संतुलन के सिद्धांत के खिलाफ जाता है क्योंकि यह व्यवस्था को संतुलित करने के लिए कोई अन्य शक्ति नही होगी।
दो ध्रुवीयता व्यवस्था :- दो ध्रुवीयता व्यवस्था दो राज्य के वैश्विक मामलों , मुद्दों और संबंधो को प्रभावित कर सकते है।
दो राज्यों के बीच शक्ति के वितरण को इंगित करती है।
नोट :- शीतयुद्ध का युग अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था जो यू.एस.ए और यू.एस.एस.आर के प्रभुत्व में थी।
बहुध्रुवीय व्यवस्था :- बहुध्रुवीय व्यवस्था कई शक्तियों के अस्तित्व को शक्ति के ध्रुवों के रूप में दर्शाती है।
एकल नेतृत्व की अनुपस्थिति नही है।
नोट :- यह इंगित करता है कि शक्ति एक हाथ में केंद्रीत नही है, अपितु कई खिलाड़ियों के बीच वितरित है।
सोवियत संघ :-
• रूस में 1917 में समाजवादी क्रान्ति हुई ।
• समाजवाद के आदर्शों और समतामूलक समाज की जरूरत से प्रेरित थी।
• यह क्रांति पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ थी.
• इस क्रांति के बाद सोवियत संघ (USSR) अस्तित्व में आया.
• समाजवादी खेमे के देश ‘ दूसरी दुनिया ‘ कहा जाता है।
• सोवियत राजनीतिक प्रणाली की धुरी कम्युनिस्ट पार्टी थी।
• अर्थव्यवस्था योजनाबद्ध और राज्य के नियंत्रण में थी।
• सोवियत संघ 15 गणराज्य को मिलाकर बना था.
1) रूस
2) यूक्रेन
3) जॉर्जिया
4) बेलारूस
5) उज़्बेकिस्तान
6) आर्मेनिया
7) अज़रबैजान
8) कजाकिस्तान
9) किरतिस्थान
10) माल्डोवा
11) तुर्कमेनिस्तान
12) ताजीकिस्तान
13) लताविया
14) लिथुनिया
15) एस्तोनिया
सोवियत प्रणाली क्या थी?
दूसरे
विश्वयुद्ध के बाद सोवियत संघ महाशक्ति के रूप में उभरा सोवियत प्रणाली
पूंजीवादी व्यवस्था का विरोध तथा समाजवाद के आदर्शों से प्रेरित थी।
1) विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था
2) सोवियत संघ की संचार प्रणाली बहुत उन्नत थी।
3) उसके पास विशाल ऊर्जा- संसाधन था।
4)सोवियत संघ का घरेलु उपभोक्ता -उद्योग भी बहुत उन्नत था।
5) आवागमन की अच्छी सुविधाए उपलब्ध था।
6) मिल्कियत का प्रमुख रूप राज्य का स्वामित्व था।
7) उत्पादन के साधनों पर राज्य का स्वामित्व था।
8)सोवियत संघ में बेरोजगारी नही थी। न्यूनतम जीवन स्तर की सुविधा थी।
9) स्वास्थ्य सुविधा , शिक्षा और लोक कल्याण की रियायती दर पर मुहैया कराती है।
10) सोवियत प्रणाली में नियोजित अर्थव्यवस्था थी।
सोवियत संघ के विघटन के कारण
1. अंदरूनी कमजोरी :- सोवियत संघ की राजनीतिक-आर्थिक संस्थाएँ अंदरूनी कमजोरी के कारण लोगों की आकांक्षाओं को पूरा नही कर सकी।
2. अर्थव्यवस्था गतिरुद्ध :- सोवियत संघ में कई सालों तक अर्थव्यवस्था गतिरुद्ध रही। इससे उपभोक्ता-वस्तुओं की बड़ी कमी हो गई।
3. परमाणु हथियार :- सोवियत संघ ने अपने संसाधनों का अधिकांश परमाणु हथियार और सैन्य साजो-सामान पर लगाया।
4. कम्युनिस्ट पार्टी :- सोवियत संघ पर कम्युनिस्ट पार्टी ने 70 सालों तक शासन किया और यह पार्टी अब जनता के प्रति जवाबदेह नही रह गई थी।
5. नौकरशाही का शिकंजा :- सोवियत प्रणाली पर नौकरशाही का शिकंजा कसता चला गया। यह प्रणाली सत्तावादी होती गई और नागरिकों का जीवन कठिन होता चला गया।
6. आर्थिक रूप से पिछड़ा :- आर्थिक रूप से पिछड़े जाने के कारण सोवियत संघ के प्रति राष्ट्रवादी असंतोष पैदा हो गया।
सोवियत संघ के विघटन के परिणाम
• शीतयुद्ध का संघर्ष समाप्त हो गया।
• एक ध्रुवीय विश्व अर्थात अमरीकी वर्चस्व का उदय।
• हथियारों की होड़ की समाप्ति।
• रूस सोवियत संघ का उत्तराधिकारी बना।
• विश्व राजनीति में शक्ति संबन्ध परिवर्तित हो गए।
• 15 नए देशों का उदय।
दूसरी दुनिया :-
• समाजवादी खेमे के देशों को दूसरी दुनिया कहते हैं।
• इस खेमे के नेता समाजवादी सोवियत गणराज्य था।
• इसमें शामिल देशो की राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था को सोवियत प्रणाली की तर्ज पर ढाला गया।
पहली दुनिया :-
• पूंजीवादी खेमे के देशों को पहली दुनिया कहते हैं।
• इस खेमे के नेता संयुक्त राज्य अमेरिका था।
• इसमें शामिल देशों की राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था को मार्शल प्लान के तर्ज पर ढाला गया।
तीसरी दुनिया :-
• गुटनिरपेक्ष और तटस्थ देशों को
तीसरी दुनिया कहते हैं।
• एशिया , अफ्रीका , लैटिन अमेरिका आदि ।
• आर्थिक रूप से गरीब और गैर-औद्योगिक थे, यह विकासशील देशों को तीसरी दुनिया का देश कहा जाता है।
मिखाइल गोर्बाचेव :-
1980 के दशक में मिखाइल गोर्बाचेव ने राजनीतिक सुधारों तथा लोकतंत्रीकरण
को अपनाया उन्होंने पुर्नरचना। (पेरेस्त्रोइका)व खुलापन (ग्लासनोस्त) के
नाम से आर्थिक सुधार लागू किए।
• मिखाइल गोर्बाचेव 1980 के दशक में सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव बने।
• मिखाइल गोर्बाचेव ने देश के अंदर आर्थिक-राजनीतिक सुधारों और लोकतंत्रीकरण की नीति चलायी।
•
1991 में बोरिस येल्तसिन के नेतृत्व में पूर्वी यूरोप के देशों ने तथा रूस
, यूक्रेन व बेलारूस ने सोवियत संघ की सम्पति की घोषणा की।
• रूस को सोवियत संघ का उत्तराधिकारी बनाया गया ।
शॉक थेरेपी
• शॉक थेरेपी का अर्थ आघात पहुंचाकर उपचार करना।
•
1991 में जब सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस , मध्य एशिया के गणराज्य और
पूर्वी यूरोप के देशों में पूंजीवाद की ओर एक खास मॉडल अपनाया गया।
• विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा निर्देशित शॉक थेरेपी का मॉडल अपनाया गया।
• सोवियत संघ के दौर की हर संरचना से पूरी तरह निजात पाने के लिए पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की ओर पूरी तरह मुड़ना था।
• शॉक थेरेपी की सर्वोपरि मान्यता थी कि मिल्कियत का सबसे प्रभावी रूप निजी स्वामित्व होगा।
• राज्य की संपदा के निजीकरण , व्यावसायिक , खेती , उधोगों को राज्य की नियंत्रण से निजी हाथों में सौपा गया।
शॉक थेरेपी के परिणाम
• शॉक थेरेपी से पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो गई।
• रूस में , पूरा का पूरा राज्य-नियंत्रित औद्योगिक ढाँचा चरमरा उठा।
• 90 प्रतिशत उधोगों को निजी हाथों या कम्पनियों को बेचा गया।
• उधोगों की औने-पौने दामों में बेच दिया गया इसे ‘ इतिहास की सबसे बड़ी गराज-सेल ‘ कहा जाता है।
• रूसी मुद्रा ‘ रूबल ‘ के मूल्य में नाटकीय ढंग से गिरावट आई।
• मुद्रास्फीति इतनी ज्यादा बढ़ी की लोगों की जमापूंजी जाती रही।
• समाज कल्याण की पुरानी व्यवस्था नष्ट हो गया जिसके ज्यादातर लोग ग़रीबी में पड़ गए।
• आर्थिक विषमता बढ़ी जिससे खाद्यान्न संकट हो गया और माफिया वर्ग का उदय हुआ।
• इन सभी देशों के संविधान हड़बड़ी में तैयार किया गया जिसमें संसद को कमजोर और राष्ट्पति को ज्यादा शक्तियां दी।
साम्यवादी सोवियत अर्थव्यवस्था तथा पूँजीवादी अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अंतर
सोवियत अर्थव्यवस्था
1. राज्य द्वारा पूर्ण नियंत्रण
2. योजनबद्ध अर्थव्यवस्था
3. व्यक्तिगत पूंजी का अस्तित्व नही
4. समाजवादी आदर्शो से प्रेरित
5. उत्पादन के साधनों पर राज का स्वामित्व।
अमेरिका अर्थव्यवस्था
1.राज्य का न्यूनतम हस्तक्षेप
2. प्रतियोगिता पर आधारित
3. व्यक्तिगत पूंजी की महत्ता
4. अधिकतम लाभ के पूंजीवादी सिद्धांत
5. उत्पादन के साधनों पर बाजार का नियंत्रण।
अरब स्प्रिंग
• 21 वीं शताब्दी में पश्चिम एशियाई देशों में लोकतंत्र के लिए विरोध प्रदर्शन और जन आंदोलन शुरू हुए।
• ऐसे ही आंदोलन को अरब स्प्रिंग के नाम से जाना जाता है।
• इसकी शुरूआत ट्यूनीशिया में 2010 में मोहम्मद बउजिजि के आत्मदाह के साथ हुई।
• ट्यूनीशिया उत्तरी अफ्रीका का एक देश है।
• यहां पर तानाशाही सरकार थी ।
• तानाशाही देश होने की वजह से यहां लोगों पर अत्याचार होते थे।
• यहां मीडिया पर पाबंधी थी और वह सरकार के खिलाफ कुछ भी दिखा नही सकता थ।
• विरोध करने का कारण
• जनता का असंतोष
• गरीबी
• तानाशाही
• भ्र्ष्टाचार
• बेरोजगारी
• मानव अधिकार उल्लंघन
अरब स्प्रिंग के परिणाम
1. अरब क्रांति सफल नही हुई।
2. इसका लाभ केवल ट्यूनीशिया में हुआ।
3. कुछ देशों में सैन्य शासन और ज़्यादा मजबूत हो गया।
4. अरब क्रांति की वजह से लीबिया और सीरिया पूरी तरह से तबाह हो गए।
5. प्रसादी अरब और अन्य देशों ने स्थिति को बड़ी समझदारी से संभाल लिया।
मध्य पूर्व का संकट
अफगानिस्तान :- ( 1979-89) अफगानिस्तान विश्व युद्ध एवं शीतयुद्ध दोनों से अलग रहा
• 1960 में अफगानिस्तान के राजा जाहिर शाह द्वारा कुछ राजनीतिक बदलाव किए गए।
• 1973 में राजा के चचेरे भाई दाऊद खान ने उन्हें हटा दिया
• वह खुद अफगानिस्तान के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री बन गए।
बाल्कन क्षेत्र :-
• बाल्कन गणराज्य यूगोस्लाविया गृहयुद्ध के कारण कई प्रान्तों में बँट गया।
• जिसमें शामिल बोस्निया -हर्जेगोविना , स्लोवेनिया तथा क्रोएशिया ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया।
बाल्टिक क्षेत्र :-
• बाल्टिक क्षेत्र के लिथुआनिया ने मार्च 1990 में अपने आप को स्वतंत्र घोषित किया।
• एस्टोनिया , लातविया और लिथुआनिया 1991 में संयुक्त राष्ट्रसंघ के सदस्य बने।
मध्य एशिया :-
• मध्यएशिया के तजाकिस्तान में 10 वर्षों तक यानी 2001 तक गृहयुद्ध चला।
• अजरबैजान , अर्मेनिया , यूक्रेन , किर्गिजस्तान, जार्जिय में भी गृहयुद्ध की स्थिति है।
• मध्य एशियाई गणराज्यों में पेट्रोल के विशाल भंडार है।
• इसी कारण से यह क्षेत्र बाहरी ताकतों और तेल कंपनियों की प्रतिस्पर्धा का अखाड़ा भी बन गया है।
पूर्व साम्यवादी देश और भारत
• पूर्व साम्यवादी देशों के साथ भारत के संबंध अच्छे हैं
• रूस और भारत दोनों का सपना बहुध्रुवीय विश्व का है।
• 2001 में भारत और रूस द्वारा 80 द्विपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर हुए हैं।
• संयुक्त राष्ट्रसंघ जैसी संस्थाओं द्वारा फ़ैसले किए जाएं तथा इन संस्थाओं को मजबूत बनाया जाए।
• सामूहिक सुरक्षा , क्षेत्रीय सम्प्रभुता , स्वतंत्र विदेशी नीति।
• अंतरार्ष्ट्रीय झगड़ो को वार्ता द्वारा हल किया जाए।
• रूस से तेल का आयात । परमाण्विक योजना तथा अंतरिक्ष बढ़ाने की कोशिश ।
•भारत और रूस के संबंध
1. बांग्लादेश संकट तथा भारत-सोवियत मैत्री संधि :–
•
बांग्लादेश के संकट 1971 में पाकिस्तनी शासकों की अदूरदर्शिता के कारण
उत्पन्न हुआ।वर्तमान बांग्लादेश पाकिस्तान का एक प्रांत था पूर्वी
पाकिस्तान था।
• जब पाकिस्तान युद्ध की तैयारी कर रहा
था और अमेरिका उसका साथ देने के लिए कटिबद्ध था, तब भारत के पास सिवा इसके
कोई मार्ग नही बचा था कि वह सोवियत संघ की सहायता ले।
• इन परिस्थितियों में अगस्त 1971 में भारत-सोवियत के बीच शांति , मैत्री और सहयोग संधि पर हस्ताक्षर किए गए।
आलोचना – यह संधि भारत की गुट-निरपेक्षता की नीति की अवहेलना थी।
2. शीत युद्ध के बाद :-
•
बोरिस येल्तसिन के नेतृत्व में नवोदित रूसी गणराज्य ने भारत को मित्रता और
सहयोग की उसी नीति पर चलते रहने का आश्वासन दिया जिस पर कई दशकों से
भारत-सोवियत मैत्री-संबंध आधारित थे।
•एक नई मैत्री संधि रूस के राष्ट्रपति येल्तसिन तथा भारत के प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने 1993 में हस्ताक्षर किए।
• 1993 में रूस के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन की भारत यात्रा ने भारत-रूस संबंधो में उत्पन्न शंकाओं को दूर कर दिया।
• 1994 में भारत के प्रधानमंत्री वी.पी.नरसिंह ने रूस की यात्रा की इस यात्रा ने भारत-रूस मैत्री का एक नया अध्याय आरम्भ किया।
•1997 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री एच.डी. देव गौड़ा ने भारत-रूस शिखर सम्मेलन में भाग लिया।
3. राजनीतिक संबंध :-
•
भारत और रूस के बीच सोवियत संघ के पतन के बाद पहली बड़ी राजनीतिक पहल 2000
में दोनों देशों के बीच हस्ताक्षरित रणनीतिक साझेदारी के साथ शुरू हुई।
•
राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने हिंदू में उनके द्वारा लिखे गए एक लेख में
कहा , “रणनीतिक पर घोषणा” अक्टूबर 2000 में हस्ताक्षरित भारत और रूस के बीच
साझेदारी वास्तव में एक ऐतिहासिक कदम बन गई।
• पूर्व
प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने भी राष्ट्रपति पुतिन की 2012 की भारत यात्रा
के दौरान दिए गए भाषण में अपने समकक्ष के साथ सहमति व्यक्त की, “राष्ट्रपति
पुतिन भारत के एक महत्वपूर्ण मित्र हैं और भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी के
मूल वास्तुकार हैं।
• दोनों देश संयुक्त राष्ट्र , ब्रिक्स , जी20 और एससीओ में साझा राष्ट्रीय हित के मामलों पर घनिष्ठ सहयोग करते हैं ।
•
रूस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत को स्थायी सीट प्राप्त करने
का भी पुरजोर समर्थन करता है और एपेक में शामिल होने का मुखर समर्थन किया
है ।
• इसके अलावा, इसने सार्क में पर्यवेक्षक की स्थिति के साथ शामिल होने में भी रुचि व्यक्त की है जिसमें भारत एक संस्थापक सदस्य है।
4. आर्थिक संबंध :-
•
दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार प्रमुख मूल्य श्रृंखला क्षेत्रों
में केंद्रित है । इन क्षेत्रों में मशीनरी , इलेक्ट्रॉनिक्स , एयरोस्पेस ,
ऑटोमोबाइल , वाणिज्यिक शिपिंग , रसायन , फार्मास्यूटिकल्स , उर्वरक ,
परिधान , कीमती पत्थर , औद्योगिक धातु , पेट्रोलियम उत्पाद , कोयला , उच्च
अंत चाय और कॉफी उत्पाद जैसे अत्यधिक विविध खंड शामिल हैं।
•
2002 में द्विपक्षीय व्यापार 1.5 अरब डॉलर था और 2012 में 7 गुना बढ़कर 11
अरब डॉलर हो गया और दोनों सरकारों ने 2025 तक 30 अरब डॉलर का द्विपक्षीय
व्यापार लक्ष्य निर्धारित किया।
• 5. सैन्य संबंध :-
• सोवियत संघ कई दशकों तक रक्षा उपकरणों का एक महत्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता था, और यह भूमिका रूसी संघ को विरासत में मिली है।
•
रूस 68%, यूएसए 14% और इज़राइल 7.2% भारत के प्रमुख हथियार आपूर्तिकर्ता
हैं (2012-2016), और भारत और रूस ने नेवल फ्रिगेट , केए -226 टी के निर्माण
के लिए समझौतों पर हस्ताक्षर करके अपने मेक इन इंडिया रक्षा निर्माण सहयोग
को गहरा किया है।
• ट्विन-इंजन यूटिलिटी हेलीकॉप्टर
(संयुक्त उद्यम (जेवी) रूस में 60 और भारत में 140 बनाने के लिए), ब्रह्मोस
क्रूज मिसाइल (50.5% भारत और 49.5% रूस के साथ संयुक्त उद्यम) में
भारत-रूस सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।
• 2012 में,
दोनों देशों ने रक्षा पीएसयू हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स द्वारा लाइसेंस के तहत
उत्पादित किए जाने वाले 42 नए सुखोई के लिए राष्ट्रपति पुतिन की भारत
यात्रा के दौरान 2.9 बिलियन डॉलर के रक्षा सौदे पर हस्ताक्षर किए।
•
अक्टूबर 2018 में, भारत ने रूस के साथ पांच S-400 Triumf सतह से हवा में
मार करने वाली मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदने के लिए 5.43 बिलियन अमेरिकी
डॉलर के ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए ।
.विज्ञान और प्रौद्योगिकी :-
•
विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में चल रहा सहयोग भारत और रूस दोनों
के लिए इस क्षेत्र में सबसे बड़ा सहयोग कार्यक्रम है। ILTP को भारतीय पक्ष
से विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग और विज्ञान अकादमी , विज्ञान और शिक्षा
मंत्रालय , और उद्योग और व्यापार मंत्रालय द्वारा समन्वित किया जाता है।
•
रूसी पक्ष से सारस डुएट एयरक्राफ्ट, सेमीकंडक्टर उत्पाद, सुपर कंप्यूटर,
पॉली-वैक्सीन, लेजर विज्ञान और प्रौद्योगिकी, भूकंप विज्ञान, उच्च शुद्धता
सामग्री, सॉफ्टवेयर और आईटी और आयुर्वेद का विकास आईएलटीपी के तहत सहयोग के
कुछ प्राथमिकता वाले क्षेत्र हैं।
7. ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग :-
•
भारत-रूस द्विपक्षीय संबंधों में ऊर्जा क्षेत्र एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है।
2001 में, ओएनजीसी-विदेश ने रूसी संघ में सखालिन-I तेल और गैस परियोजना
में 20% हिस्सेदारी का अधिग्रहण किया , और इस परियोजना में लगभग 1.7 बिलियन
अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है।
8. सांस्कृतिक क्षेत्र में सहयोग :-
•
संस्कृति के क्षेत्र में भारत-रूस संबंध ऐतिहासिक हैं। भारत में नवंबर
2003 में दिल्ली, कोलकाता और मुंबई में रूसी संस्कृति दिवस आयोजित किए गए।
• रूस में “भारतीय संस्कृति के दिन” रूस में सितंबर से अक्टूबर 2005 तक आयोजित किए गए थे।
•
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के मुख्यमंत्री ने 28 मई 1 जून 2006 से
“मॉस्को में दिल्ली के दिन” कार्यक्रम में भाग लेने के लिए एक
प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया।
• “भारत में रूस का वर्ष” 2008 में आयोजित किया गया था। इसके बाद “वर्ष” था। रूस में भारत का” 2009 में।
Final Words
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