Rectification : दिष्टकरण किसे कहते हैं परिभाषा क्या है उदाहरण प्रकार लिखिए

दिष्टकरण : परिभाषा, उदाहरण और प्रकार

दिष्टकरण (Rectification) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें प्रत्यावर्ती धारा (AC) को दिष्ट धारा (DC) में बदला जाता है। इसे AC से DC परिवर्तन भी कहा जाता है।

परिभाषा:

दिष्टकरण वह प्रक्रिया है जिसमें प्रत्यावर्ती धारा (AC) की दिशा को एक निश्चित दिशा में बदलकर उसे दिष्ट धारा (DC) में बदला जाता है।

उदाहरण:

  • ट्रांसफॉर्मर: ट्रांसफॉर्मर AC वोल्टेज के स्तर को बदलने के लिए उपयोग किया जाता है।
  • डायोड: डायोड एक अर्धचालक उपकरण है जो AC तरंग के केवल एक हिस्से को अनुमति देता है, जिससे DC तरंग बनती है।
  • रेक्टिफायर: रेक्टिफायर एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जो AC को DC में बदलने के लिए डायोड और अन्य घटकों का उपयोग करता है।

दिष्टकरण के प्रकार:

  1. अर्धतरंग दिष्टकरण: AC तरंग के केवल एक हिस्से को DC में बदलता है।
  2. पूर्ण तरंग दिष्टकरण: AC तरंग के दोनों हिस्सों को DC में बदलता है।

दिष्टकरण के उपयोग:

  • इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को बिजली देने के लिए: कई इलेक्ट्रॉनिक उपकरण DC पर चलते हैं, जैसे कि मोबाइल फोन, लैपटॉप, और टीवी।
  • बैटरी चार्ज करने के लिए: बैटरी DC पर चार्ज होती हैं, इसलिए उन्हें चार्ज करने के लिए AC को DC में बदलने की आवश्यकता होती है।
  • विद्युत ऊर्जा को नियंत्रित करने के लिए: DC का उपयोग विद्युत ऊर्जा को नियंत्रित करने के लिए किया जा सकता है, जैसे कि मोटरों की गति को नियंत्रित करना।

अधिक जानकारी:

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अध्याय 3 : दिष्टकरण तथा विद्युत शक्ति प्रदायक (Rectification and Power Supply)

 दिष्टकरण (RECTIFICATION)

विद्युत धाराएँ दो प्रकार की होती हैं – (i) दिष्ट धारा (direct current) या dc जिसका मान समय के साथ परिवर्तित नहीं होता है तथा जो एक निर्दिष्ट दिशा में ही प्रवाहित होती है। (ii) प्रत्यावर्ती धारा ( alternating current) या ac जिसका मान तथा दिशा दोनों समय पर निर्भर करते हैं तथा समय के साथ आवर्ती रूप से परिवर्तित होते हैं। प्रत्यावर्ती धारा का जनन (generation), संचरण (transmission ) तथा वितरण (distribution) सुविधा से तथा कम खर्चीला होने के कारण दिष्ट धारा की अपेक्षा अत्यधिक उपयोग किया जाता है । परन्तु सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में दिष्ट धारा या वोल्टता की आवश्यकता होती है । दिष्ट धारा को सैलों से या दिष्टकरण युक्ति से प्राप्त कर सकते हैं।

दिष्टकरण (Rectification) वह युक्ति है जिससे प्रत्यावर्ती वोल्टता को दिष्ट वोल्टता में परिवर्तित किया जाता है। दिष्टकरण द्वारा प्राप्त वोल्टता या धारा एक दिशीय अवश्य होती है परन्तु उसका मान समय के साथ परिवर्तित होता है। निर्गत वोल्टता व धारा स्पंदमान (pulsating) होती है। स्पंदमान दिष्ट वोल्टता को प्रत्यावर्ती वोल्टता तथा दिष्ट वोल्टता के मिश्रण के रूप में माना जा सकता है। इसमें से प्रत्यावर्ती भाग को विशिष्ट परिपथों की सहायता से निकाल देते हैं फिर दिष्ट वोल्टता प्राप्त हो जाती है। स्पंदमान दिष्ट वोल्टता में से प्रत्यावर्ती भाग को निकाल देने के लिए जिन परिपथों का उपयोग किया जाता है उन्हें ऊर्मिहारी फिल्टर (smoothing filter) कहते हैं। फिल्टर परिपथ प्रेरकत्व कुण्डलियों तथा संधारित्रों के संयोजन से बनाये जा सकते हैं। निर्गत दिष्ट वोल्टता लोड परिवर्तन से परिवर्तित होती है, लोड पर निर्भरता दूर करने के लिये अच्छे विद्युत प्रदायक (power supply) में अंत में वोल्टता नियंत्रक (regulator) प्रयुक्त किया जाता है। विद्युत प्रदायक का ब्लॉक आरेख चित्र (3.1-1) में प्रदर्शित है।

दिष्टकारी (RECTIFIER)

दिष्टकरण प्रदान करने वाले विद्युत उपकरण को दिष्टकारी (Rectifier) कहते हैं। दिष्टकारी में PN संधि डायोड (diode) के अभिलाक्षणिक गुण एकक दिशिक (unidirectional) चालन युक्ति का उपयोग किया जाता है जिसमें धारा प्रवाह हेतु एक दिशा में अत्यल्प प्रतिरोध तथा विपरीत दिशा में अत्यधिक प्रतिरोध उत्पन्न होता है।

दिष्टकारी (rectifier) मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं- (i) अर्द्ध तरंग दिष्टकारी जिसमें निविष्ट प्रत्यावर्ती धारा या वोल्टता का केवल आधा चक्र अर्थात् अर्द्ध तरंग उपयोग में आती है। शेष अर्द्ध तरंग अनुपयोगी रहती है। (ii) पूर्ण तरंग दिष्टकारी जिसमें निविष्ट प्रत्यावर्ती धारा या वोल्टता के सम्पूर्ण तरंग का उपयोग होता है।

अर्द्ध तरंग दिष्टकारी (HALF WAVE RECTIFIER)

अर्द्ध तरंग दिष्टकारी का परिपथ चित्र (3.3-1) में दर्शाया गया है। इसमें प्रत्यावर्ती वोल्टता के स्रोत को ट्रांसफार्मर के प्राथमिक कुण्डली से जोड़ते हैं और द्वितीयक कुण्डली के श्रेणी क्रम में डायोड तथा लोड प्रतिरोध RL लगा देते

हैं।

जब ट्रांसफार्मर की प्राथमिक कुण्डली पर प्रत्यावर्ती वोल्टता V = Ep sin cot का निवेश करते हैं तो द्वितीयक कुण्डली में विद्युत चुम्बकीय प्रेरण द्वारा V =nEpsin or वोल्टता प्रेरित हो जाती है, यहाँ n ट्रांसफार्मर के द्वितीयक व प्राथमिक कुण्डलियों में फेरों की संख्या का अनुपात है। जैसा कि चित्र (3.3-2) में दर्शाया गया है कि प्रत्यावर्ती वोल्टता V, के धनात्मक अर्द्ध भाग के लिए द्वितीयक कुण्डली के A सिरे पर धनात्मक वोल्टता तथा B सिरे पर ऋणात्मक वोल्टता रहता है। इस स्थिति में PN सन्धि डायोड अग्र दिशिक बायस हो जाने के कारण परिपथ में धारा i प्रवाहित होती है। इसके विपरीत V, वोल्टता के ऋणात्मक भाग के लिए द्वितीयक कुण्डली के A सिरे पर ऋणात्मक वोल्टता तथा B सिरे पर धनात्मक वोल्टता रहता है। इस स्थिति में PN सन्धि डायोड पश्च दिशिक बायस हो जाने के कारण परिपथ में धारा प्रवाहित नहीं होती है। अत: PN डायोड के बाह्य परिपथ में लगे प्रतिरोध R में केवल निविष्ट वोल्टता V; के आधे चक्र के लिए धारा प्रवाह होता है। निर्गम वोल्टता VoiR का तरंग रूप चित्र (3.3-2) के अनुसार प्राप्त होता है। यह निर्गम वोल्टता सदैव धनात्मक होती है परन्तु समय के सापेक्ष नियत नहीं होती है अर्थात् स्पंदमान दिष्ट वोल्टता प्राप्त होती है।

माना अग्र दिशिक बायस में डायोड का प्रतिरोध R तथा ट्रांसफार्मर के द्वितीयक कुण्डली का प्रतिरोध R, है तो लोड प्रतिरोध में से प्रवाहित धारा का मान

(a) स्पंदमान धारा या वोल्टता का औसत मान (Average value of pulsating current/voltage) चूँकि धारा । एकक दिशिक परिवर्ती धारा है इसलिए समय के सापेक्ष परिवर्ती धारा का औसत मान

अतः RL प्रतिरोध के सिरों पर औसत वोल्टता

(b) स्पंदमान धारा तथा वोल्टता का वर्ग माध्य मूल मान (RMS values of pulsating current and voltage) एक पूर्ण चक्र के लिए धारा के वर्ग के औसत के वर्गमूल को धारा का वर्ग माध्य मूल मान Irms कहते हैं, अर्थात्

इसलिए निर्गत वोल्टता का वर्ग माध्य मूल मान

………………………….(6)

(c) दिष्टकारी की दक्षता (Efficiency of a rectifier)

इलेक्ट्रॉनिकी एवं ठोस प्रावस्था युक्तियाँ किसी दिष्टकारी की दक्षता को निर्गत दिष्ट शक्ति तथा निविष्ट प्रत्यावर्ती शक्ति के अनुपात द्वारा ज्ञात करते हैं।

दिष्टकारी की दक्षता n = निर्गत दिष्ट शक्ति  = निविष्ट प्रत्यावर्ती शक्ति x100%

………………………(7)

लोड प्रतिरोध RL में निर्गत दिष्ट शक्ति समी. (3) से

निविष्ट प्रत्यावर्ती शक्ति ट्रांसफार्मर के द्वितीयक कुण्डली के प्रतिरोध R, डायोड के प्रतिरोध R तथा लोड प्रतिरोध R में धारा प्रवाह के कारण क्षय शक्ति के योग के बराबर होती है।

निविष्ट प्रत्यावर्ती शक्ति

समीकरण ( 5 ) से Irms का मान रखने पर

निविष्ट प्रत्यावर्ती शक्ति

……………………………………..(9)

दिष्टकारी की दक्षता

…..(10)

इस समीकरण से स्पष्ट है कि RL के मान में वृद्धि करने पर दिष्टकारी की दक्षता में वृद्धि की जा सकती है। दिष्टकारी की दक्षता अधिकतम 40.6% हो जाती है।

(d) ऊर्मिका गुणांक (Ripple factor ) 

दिष्टकारी से प्राप्त निर्गत वोल्टता या धारा एक दिशीय अवश्य होती है परन्तु समय के सापेक्ष नियत नहीं होती

है। निर्गत धारा या वोल्टता में शेष स्पंदन (pulsations) ऊर्मिका (ripple) कहलाते हैं। दिष्टकारी की निर्गत वोल्टता या धारा की मसृणता (smoothing) का मापन दिष्ट घटक के सापेक्ष ऊर्मिका (प्रत्यावर्ती घटकों) के प्रभावी मान से किया जाता है। निर्गत धारा या वोल्टता में ऊर्मिका (प्रत्यावर्ती घटकों) के प्रभावी मान व दिष्ट घटक के मान का ऊर्मिका गुणांक (ripple factor) कहलाता है। अर्थात्

R = निर्गत प्रत्यावर्ती घटकों का प्रभावी मान/ निर्गत औसत या दिष्ट घटक का मान ………………………….(11)

यदि निर्गत प्रत्यावर्ती घटकों का प्रभावी मान Iac है व निर्गत दिष्ट घटक Idc है तो

दिष्ट घटक की शक्ति + प्रत्यावर्ती घटकों की शक्ति

………………..(13)

अर्धतरंग दिष्टकारी के लिए समीकरण (3) तथा ( 5 ) से Idc तथा Irms का मान रखने पर

………………………….(14)

अतः अर्द्ध तरंग दिष्टकारी में प्रत्यावर्ती धारा घटक दिष्ट धारा के औसत मान से अधिक होता है इसलिए बिना फिल्टर के अर्द्ध तरंग दिष्टकारी एक अच्छी युक्ति नहीं है।

(e) वोल्टता नियमन (Voltage regulation) समीकरण (4) से स्पष्ट है कि दिष्टकारी की निर्गत दिष्ट वोल्टता Edc लोड प्रतिरोध R पर निर्भर करती है अर्थात् लोड प्रतिरोध RL या दिष्ट धारा Idc में परिवर्तन होने से निर्गत वोल्टता स्थिर नहीं रह पाती है । लोड धारा से निर्गत वोल्टता में परिवर्तन का वोल्टता नियमन से मापन करते हैं। वोल्टता नियमन दिष्टकारी के लोड परिपथ से लोड हटाने पर (R1 = ∞) (No load) निर्गत वोल्टता का पूर्ण लोड ( full load) की उपस्थिति में निर्गत वोल्टता के सापेक्ष अनुपातिक परिवर्तन को व्यक्त करता है ।

प्रतिशत वोल्टता नियमन =

………………….(15)

यहाँ VNL = लोड प्रतिरोध RL की अनुपस्थिति (RL = 0) में निर्गत वोल्टता

VFL = लोड प्रतिरोध RL की उपस्थिति में निर्गत वोल्टता

आदर्श शक्ति प्रदायक के लिए वोल्टता नियमन का मान शून्य होना चाहिए अर्थात् निर्गत दिष्ट वोल्टता लोड धारा पर निर्भर नहीं करनी चाहिए । परन्तु समीकरण (4) से,

……………(16)

उपरोक्त समीकरण से व्यक्त होता है कि अर्द्ध तरंग दिष्टकारी एक स्थिर वोल्टता स्रोत E = Em/π कार्य करता है जिसका आन्तरिक प्रतिरोध (internal resistance) R के तुल्य होता है। इसका तुल्य परिपथ चित्र (3.3-3) में दर्शाया गया है

इस प्रकार समीकरण (16) से स्पष्ट है कि लोड धारा की अनुपस्थिति में दिष्ट वोल्टता Em /π  के बराबर होता है और दिष्ट धारा Idc के वृद्धि होने से दिष्ट वोल्टता Edc का मान रेखीय रूप से कम होता है जैसा कि चित्र (3.3–4) में दर्शाया गया है।

………………….(17)

(f) प्रतीप शिखर वोल्टता ( Peak inverse voltage)

) यह वह अधिकतम वोल्टता है जो डायोड पर, विद्युत चालन न होने की अवस्था में, उपस्थित होती है। डायोड में इस अधिकतम् वोल्टता को सहन करने की क्षमता होनी चाहिये ।

अर्ध-तरंग दिष्टकारी में चालन न होने की अवस्था में डायोड पर अधिकतम वोल्टता आरोपित (निविष्ट) प्रत्यावर्ती वोल्टता के शिखर मान Em के तुल्य होती है। अतः अर्ध तरंग दिष्टकारी के लिये

प्रतीप शिखर वोल्टता PIV = Em

(g) ननिर्गत वोल्टता या धारा के आवृत्ति घटक (Frequency components of output voltage or current) स्पंदमान निर्गत धारा (या वोल्टता) के फुरिये विश्लेषण के द्वारा आवृत्ति घटक प्राप्त किये जा सकते हैं। फूरिये प्रमेय के अनुसार निर्गत धारा

अर्ध-तरंग दिष्टकारी के लिये निर्गत धारा

i का मान रख कर समाकलन से

अतः निर्गत स्पंदमान धारा के लिये फुरिये श्रेणी है

….(19)

इस श्रेणी का प्रथम पद dc मान या औसत मान है। द्वितीय पद की आवृत्ति निविष्ट प्रत्यावर्ती वोल्टता की आवृति के बराबर है व इसका शिखर मान Im/2 है अन्य पद द्वितीय संनादी, चतुर्थ संनादी आदि निरूपित करते हैं।

नोट:

  • दिष्टकरण के बारे में अधिक जानकारी के लिए, आप ऊपर दिए गए लिंक पर जा सकते हैं।
  • यदि आपके कोई प्रश्न हैं, तो कृपया पूछने में संकोच न करें।

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