Full Wave Rectifier : पूर्ण तरंग दिष्टकारी की कार्यविधि समझाइए परिभाषा क्या लिखिए

पूर्ण तरंग दिष्टकारी (Full Wave Rectifier)

परिभाषा:

पूर्ण तरंग दिष्टकारी एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जो प्रत्यावर्ती धारा (AC) के दोनों अर्धचक्रों को दिष्ट धारा (DC) में बदलता है। यह अर्ध-तरंग दिष्टकारी से अधिक कुशल है, जो केवल AC के एक अर्धचक्र को DC में बदलता है।

कार्यविधि:

पूर्ण तरंग दिष्टकारी में मुख्य रूप से चार डायोड होते हैं, जो एक पुल (bridge) की तरह व्यवस्थित होते हैं। यह पुल AC तरंग के दोनों अर्धचक्रों को DC में बदलने के लिए उपयोग किया जाता है।

कार्यप्रणाली:

  1. जब AC तरंग का धनात्मक अर्धचक्र होता है, तो डायोड D1 और D3 चालू होते हैं, और डायोड D2 और D4 बंद होते हैं।
  2. धारा स्रोत से, धारा डायोड D1 से होकर लोड R1 में प्रवाहित होती है।
  3. डायोड D3 से होकर धारा लोड R2 में प्रवाहित होती है।
  4. जब AC तरंग का ऋणात्मक अर्धचक्र होता है, तो डायोड D2 और D4 चालू होते हैं, और डायोड D1 और D3 बंद होते हैं।
  5. धारा स्रोत से, धारा डायोड D2 से होकर लोड R1 में प्रवाहित होती है।
  6. डायोड D4 से होकर धारा लोड R2 में प्रवाहित होती है।

इस प्रकार, AC तरंग के दोनों अर्धचक्रों को DC में बदल दिया जाता है।

पूर्ण तरंग दिष्टकारी के लाभ:

  • यह अर्ध-तरंग दिष्टकारी से अधिक कुशल है।
  • यह DC तरंग में कम तरंग (ripple) पैदा करता है।
  • यह अधिक शक्ति प्रदान करता है।

पूर्ण तरंग दिष्टकारी के उपयोग:

  • इसका उपयोग इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को बिजली देने के लिए किया जाता है, जैसे कि मोबाइल फोन, लैपटॉप, और टीवी।
  • इसका उपयोग बैटरी चार्ज करने के लिए किया जाता है।
  • इसका उपयोग विद्युत ऊर्जा को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।

अधिक जानकारी:

पूर्ण तरंग दिष्टकारी ( FULL WAVE RECTIFIER ) 

पूर्ण तरंग दिष्टकारी में प्रत्यावर्ती धारा के दोनों अर्ध तरंग भागों का उपयोग किया जाता है जिससे उसकी दिष्टकारण दक्षता बढ़ जाती है तथा ऊर्मिका गुणांक व वोल्टता नियमन का मान कम होता है। इस दिष्टकारी में दो सर्वसम् PN सन्धि डायोड को परिपथ में संयोजित करते हैं जैसा कि चित्र (3.4 -1 ) में दर्शाया गया है। इस संयोजन में निविष्ट प्रत्यावर्ती वोल्टता के एक अर्ध भाग का दिष्टकरण एक डायोड करता है व दूसरे अर्ध-भाग का दिष्टकरण दूसरे डायोड द्वारा होता है।

प्रत्यावर्ती वोल्टता स्रोत Vi= Ep sin f को ट्रांसफार्मर की प्राथमिक कुण्डली से जोड़ दिया जाता है। द्वितीयक कुण्डली के दोनों सिरों A या B को PN सन्धि डायोडों D1 तथा D2 के P टर्मिनलों से जोड़ते हैं। डायोडों D1 तथा D2 के N-टर्मिनलों को परस्पर जोड़ कर इस उभयनिष्ठ बिन्दु P तथा ट्रांसफार्मर की द्वितीयक कुण्डली के मध्य निष्कासी बिन्दु (centre tap) C के मध्य लोड Rl जोड़ दिया जाता है।

प्रत्यावर्ती वोल्टता Vi,= Ep sin f को ट्रांसफार्मर की प्राथमिक कुण्डली में निविष्ट करने पर द्वितीयक कुण्डली में प्रेरण द्वारा प्रत्यावर्ती वोल्टता Vs = n Ep sin t = Es sin t उत्पन्न हो जाता है जहाँ n ट्रांसफार्मर के द्वितीयक तथा प्राथमिक कुण्डलियों में फेरों की संख्या का अनुपात है। इस प्रत्यावर्ती वोल्टता के कारण वोल्टता चक्र के आधे समय के लिए मध्य निष्कासी बिन्दु को शून्य वोल्टता का निर्देश बिन्दु मानने पर A सिरा धनात्मक रहता है तथा B ऋणात्मक । इस स्थिति में D1डायोड अग्र बायसित तथा D2 डायोड उत्क्रम बायसित हो जाता है और इसके फलस्वरूप D1 डायोड द्वारा धारा i1 प्रवाहित होती है। वोल्टता चक्र के शेष आधे समय के लिये B सिरा धनात्मक हो जाता है तथा A ऋणात्मक । फलतः यह D1 डायोड को अग्र बायसित तथा D2 डायोड को उत्क्रम बायसित कर देता है जिसके कारण D2 डायोड द्वारा धारा i2 प्रवाहित होती है। प्रत्येक डायोड पर आरोपित वोल्टता द्वितीयक कुण्डली पर प्राप्त कुल वोल्टता की आधी होती है अर्थात् प्रत्येक डायोड पर आरोपित वोल्टता V = 

प्रत्यावर्ती वोल्टता Vs के पहले

आधे चक्र में D1डायोड तथा दूसरे आधे चक्र में D2 डायोड से धारा प्रवाहित होती है परन्तु लोड प्रतिरोध RL से पूरे ही दिशा में धारा का प्रवाह होता है। पूर्ण तरंग दिष्टकारी में निविष्ट तथा निर्गत वोल्टताओं के तरंग रूप चक्र एक चित्र (3.4-2) में दर्शाये गये हैं। Vo1 डायोड D1 के दिष्टकरण से प्राप्त निर्गत वोल्टता है Vo2 डायोड D2 द्वारा दिष्टकऱण से प्राप्त वोल्टता है तथा परिणामी वोल्टता V0 है।

माना अग्र दिशिक बायस में डायोड का प्रतिरोध Rf तथा ट्रांसफार्मर की द्वितीयक कुण्डली के अर्ध भाग (AC या BC) का प्रतिरोध Rs है यदि R = Rf + Rs हो तो लोड प्रतिरोध से प्रवाहित धारा का मान

जब 0 <t < T/2

(

a) स्पंदमान धारा और वोल्टता का औसत मान (Average value of pulsating current and voltage)-

लोड में परिणमित धारा i = i1 + i2 एक दिशिक परिवर्ती धारा हैं इसलिए समय के सापेक्ष परिवर्ती धारा का

औसत मान

अतः लोड प्रतिरोध RL पर औसत वोल्टता

………………..(4)

(b) स्पंदमान धारा तथा वोल्टता का वर्ग माध्य मूल मान (RMS values of pulsating current and voltage)- निर्गत स्पंदमान धारा का वर्ग माध्य मूल मान

 …(5)

लोड प्रतिरोध RL पर वोल्टता का वर्ग- माध्य मूल मान

(c) पूर्ण-तरंग दिष्टकारी की दक्षता (Efficiency of full wave rectifier)

= दिष्टकारी की दक्षता n  = निर्गत दिष्ट शक्ति / निविष्ट प्रत्यावर्ती शक्ति

पूर्ण तरंग दिष्टकारी से निर्गत दिष्ट शक्ति = Pde / Pac

तथा निविष्ट प्रत्यावर्ती शक्ति

पूर्ण तरंग दिष्टकारी की अधिकतम दक्षता 81.2% होगी जब लोड प्रतिरोध RL की तुलना में डायोड तथा कुण्डली का प्रतिरोध नगण्य होता है (R << RL) इसकी दिष्टकारी दक्षता अर्द्ध तरंग दिष्टकारी की दक्षता से दुगुनी होती है।

(d) ऊर्मिका गुणांक (Ripple factor) दिष्टकारी का उद्देश्य प्रत्यावर्ती वोल्टता में स्थायी दिष्ट वोल्टता उत्पन्न करना होता है परन्तु दिष्टकारी के निर्गम में दिष्ट वोल्टता के साथ-साथ कुछ मात्रा में प्रत्यावर्ती वोल्टता भी प्राप्त होती है जिसका परिमाण ऊर्मिका गुणांक द्वारा ज्ञात कर सकते हैं।

ऊर्मिका गुणांक की परिभाषानुसार  r = प्रत्यावर्ती धारा का प्रभावी मान /औसत या दिष्ट धारा का मान

पूर्ण तरंग दिष्टकारी के लिये Irms तथा Idc का मान रखने पर

(e) वोल्टता नियमन (Voltage regulation) 

समीकरण (4) से

यह समीकरण वोल्टता नियमन समीकरण कहलाता है। इससे ज्ञात होता है कि दिष्टकारी एक स्थिर वोल्टता स्रोत E= 2Em/π के समान कार्य करता है जिसका आन्तरिक प्रतिरोध R के तुल्य होता है। इसका तुल्य परिपथ चित्र  (3.4-3) में दर्शाया गया है।

समीकरण (13) से यह ज्ञात होता है कि लोड प्रतिरोध R की अनुपस्थिति में (RL = ० ) अधिकतम् दिष्ट 2Em/π वोल्टता  होती है।

(f) प्रतीप शिखर वोल्टता (Peak inverse voltage) 

पूर्ण तरंग दिष्टकारी में जब एक डायोड चालन अवस्था में होता है तो दूसरे डायोड के N- टर्मिनल पर अधिकतम् + Em वोल्टता उत्पन्न होती है व उसी समय उसके P टर्मिनल पर – Em। अत: इस डायोड पर प्रतीप शिखर वोल्टता 2Em होती है। इसी प्रकार दूसरे डायोड के चालन की अवस्था में पहले डायोड पर भी प्रतीप वोल्टता का शिखर मान 2Em होता है। अतः पूर्ण तरंग दिष्टकारी में प्रत्येक डायोड के लिये

PIV = 2Em

(g) निर्गत वोल्टता या धारा के आवृत्ति घटक (Frequency components of output voltage or current)

निर्गत स्पंदमान वोल्टता या धारा का 0 से T/ 2 व T/ 2 से T समय में प्रारूप एकसा होता है।

अर्थात् से T/2 समय में धारा, Im sin T से प्राप्त धारा से कलांतर रखती है। अतः अर्ध-तरंग दिष्टकारी के लिये प्राप्त फूरिये श्रेणी के उपयोग से

इस प्रकार दिष्ट घटक Idc = 2Im/π निविष्ट वोल्टता की आवृत्ति वाला प्रथम संनादी अनुपस्थित है केवल सम Π संनादी उपस्थित होते हैं। इसी प्रकार की स्थिति निर्गत वोल्टता के लिये होती है।

नोट:

  • यदि आपके कोई प्रश्न हैं, तो कृपया पूछने में संकोच न करें।

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